नई दिल्ली। मेजर ध्यानचंद जिनकी वजह से भारत को हॉकी में तीन बार गोल्ड मेडल हासिल हुआ और भारतीय हॉकी ने उस दौर में दुनिया पर अपना दबदबा बनाया जब जर्मनी जैसे देशों का बोलबाला था, 29 अगस्त को जब उनका जन्मदिन था, तो उनके फैंस ने उन्हें खूब याद किया।
मेजर ध्यानचंद की याद में ही 29 अगस्त को नेशनल स्पोर्ट्स डे मनाया जाता है और खेलकूद के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ लोगों को पुरस्कृत किया जाता है।
नरेंद्र मोदी ने भी याद किया दद्दा को
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके जन्मदिन पर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। मेजर ध्यानचंद जिनकी हॉकी स्टिक पर एक बार रिसर्च तक की बात विदेशी देशों ने कर डाली थी, ने सिर्फ 14 वर्ष की आयु में हॉकी थामी।
Our tributes to the legendary Major Dhyan Chand on National Sports Day. His determination & dedication towards sports continues to inspire.
— Narendra Modi (@narendramodi) August 29, 2014
इसके बाद उन्होंने देश में हॉकी को उस मुकाम तक पहुंचा दिया था, जो आज शायद इस खेल के लिए सिर्फ एक सपना बनकर रह गया है। तीन ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले मेजर ध्यानंद ने तीनों बार देश को हॉकी का गोल्ड मेडल दिलाया था।
हॉकी के जादू ध्यानचंद की वजह से भारत को वर्ष 1928 में एम्स्टरडम ओलंपिक, वर्ष 1932 में एंजिल्स ओलंपिक और वर्ष 1936 में बर्लिन ओलंपिक 1936 में देश को गोल्ड मेडल दिलाया था।
हिटलर को भी कर दिया था इंकार
सिर्फ सोलह वर्ष की आयु में भारतीय सेना का गौरव बनने वाले मेजर ध्यानचंद का हॉकी से लगाव किस कदर था, इसे बताने की कोई जरूरत नहीं है।
मेजर ध्यानचंद और हॉकी से जुड़े यूं तो तमाम किस्से आपको सुनने को मिलेंगे लेकिन एक किस्सा ऐसा है जो न सिर्फ इस खेल के लिए उनके प्रेम को साबित करता है बल्कि देश के लिए उनके समर्पण भाव को भी बताता है।
यह किस्सा वर्ष 1936 के बर्लिन ओलंपिक का है।हॉकी के फाइनल में 15 अगस्त 1936 को भारत और जर्मनी आमने-सामने थे। भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराया था। उस समय एडोल्फ हिटलर जर्मनी पर शासन कर रहे थे।
कई लोग मान बैठे थे कि हिटलर के शहर बर्लिन में जर्मनी को हराना भारत के लिए असंभव है।
भारत की निडर जीत ने हिटलर को भी हैरान कर दिया था। उस समय भारतीय टीम के पास स्पाइक वाले जूते भी नहीं थे और रबड़ के जूतों में खेलने वाले भारतीय खिलाड़ी लगातार फिसल रहे थे।
तब मेजर ध्यानचंद ने एक तरीका खोजा और नंगे पैर खेलना शुरू किया। बस फिर क्या था, जो भारतीय टीम फर्स्ट हाफ में जर्मनी से पिछड़ रही थी, वह सेकेंड हाफ में जर्मनी पर हावी होने लगी। जर्मनी की बुरी हालत देख हिटलर मैदान छोड़कर चले गए।
अगले दिन जब हिटलर ने भारतीय कप्तान ध्यानचंद को मिलने के लिए बुलाया तो काफी डर गए कि आखिर तानाशाह ने उन्हें क्यों बुलाया है।
लंच करते हुए हिटलर ने उनसे पूछा कि वे भारत में क्या करते हैं? ध्यानचंद ने बताया कि वे भारतीय सेना में मेजर हैं। इस बात को सुनकर हिटलर बहुत खुश हुए और उन्होंने ध्यानचंद के सामने जर्मनी की सेना से जुड़ने का प्रस्ताव रख दिया।
ध्यानचंद अचानक से मिले प्रस्ताव से हैरान थे। उन्होंने अपनी भावनाओं को चेहरे पर नहीं आने दिया और विनम्रता से हिटलर के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।
मेजर ध्यानचंद ने वर्ष 1948 में 43 वर्ष की उम्र में हॉकी को अलविदा कह दिया था लेकिन आज भी लोग उन्हें और उनके खेल का जिक्र हरपल करते हैं।