क्यों बरपाया कुदरत ने पुणे में कहर
यह प्रकृति से छेड़छाड़ की संज्ञा दी जा सकती है। क्योंकि प्रकृति से छेड़छाड़ से मानवीय जीनव शैली पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। बीबीसी ने अभी हाल ही में पर्यावरणविदों से बातचीत पर आधारित एक रिपोर्ट दी है कि पुणे में कुदरत के पीछे मानवीय जरूरतों के लिए की जा रही गतिविधियों से ही इस तरह की तबाही पुणें में मची। पहाड़ी इलाकों में अकसर रियल स्टेट कम्पनियां व सरकारी प्रोजेक्ट के कारण पहाड़ों को समतल करने के लिए पहाड़ों को काटा जा रहा है।
हजारों हैक्टेयर जंगल काट लिए गए
पर्यावरण जानकारों के मुताबिक पुणे में पहड़ियां लगातार काटी जा रही हैं। इसके अलावा वहां हजारों हैक्टेयर क्षेत्र में फैले जंगल को भी नुकसान पहुंचाया गया है। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक 2007 से अब तक पहाड़ी क्षेत्र को समतल बनाने के लिए कटाई की जा चुकी है। इसके अलावा प्लॉट काटकर हाउसिंग प्रोजेक्ट के लिए बिल्डरों को बेच दिया जाता है।
यह भी है मुख्य कारण
पर्यावरणविद् सैली पलांडे दातार ने बताया है कि पुणे के पहाड़ी क्षेत्र के इस इलाके में जनजाति समुदाय के लोग रहते हैं। यहां के लोग पहले चावल या बाजरा की खेती कई वर्षों से परम्परागत खेती के रूप में करते आ रहे थे। लेकिन अब कई परिवार गेहूं की खेती करने लगे हैं। इसके लिए पहाड़ी क्षेत्र को समतल भी बनाया जाता है।
बांध दशक पुराना
पुणे में बांध है जो एक दशक पहले बना था। पर्यावरण जानकार मानते हैं कि मलीण गांव के भिंड बांध के नजदीकी क्षेत्र में जलभराव होता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि बांध के आस-पास के क्षेत्र में अगर जलभराव ज्यादा होता है तो वहां की जमीन धंसने की आशंका ज्यादा होती है।
ऐसा नहीं है कि एक ही उदाहरण है इससे पहले भी पुणे में इन्हीं वजहों से कुदरत का कहर देखने को मिला है।
केस-1
2006
से
2007
की
बीच।
सिद्धागडवादी
और
साहारमाच
गांव
में
भूस्खलन
हुआ
था।
जिसमें
सौ
से
ज्यादा
मवेशी
दब
गए
थे।
केस-2
पिछले
साल
ही
पुणे
में
कटराज
पहाड़ियों
पर
अवैध
निर्माण
चल
रहा
था।
अचानक
आई
भारी
बारिश
ने
तीन
लोगों
की
जान
ले
ली
थी।