दिल्ली में जारी रहेगा ई-रिक्शा पर प्रतिबंध, 11 को होगा फैसला
मसौदा के अनुसार इन नियमों को तैयार करने में दो महीने का समय लग सकता है, क्योंकि प्रक्रियागत औपचारिकताएं पूरी करनी होगी और इस तरह के नियम बनाने में प्रभावी रायशुमारी करनी होगी। न्यायमूर्ति बीडी अहमद और न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल की खंडपीठ मामले की सुनवाई शुक्रवार को ही एक बार फिर करेगी। मसौदा के अनुसार, ई-रिक्शा 25 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलेगा और अधिकतम चार व्यक्तियों व 50 किलोग्राम का समान ढो सकता है। दिशानिर्देश के अनुसार, "सरकार द्वारा उल्लेखित मोटर वाले तिपहिया वाहन का मोटर-वाहन अधिनियम के तहत नियमन करने से सड़क पर इसकी व्यवहार्यता तय करना तथा पंजीयन आसान हो जाएगा।
ई-रिक्शा के पंजीयन का तीन साल में नवीनीकरण हो सकेगा, पंजीयन सिर्फ वैध लाइसेंस वाले चालकों के वाहन का किया जा सकेगा। मोटर वाहन अधिनियम के तहत दुर्घटना के पीड़ितों को मुआवजा मिलेगा। मसौदे में यह भी कहा गया है कि यह हजारों लोगों को रोजगार दे रहा है, जो मानवचालित रिक्शा की जगह इलेक्ट्रिक से चलने वाला रिक्शा चला रहे हैं। इसके मुताबिक तकनीक के सुधार के साथ समाज में वाहनों को सुविधाजनक बनाने की मांग बढ़ी है। इसलिए मानव चालित रिक्शा की जगह वहनीय और सुविधाजनक ई-रिक्शा का विकल्प होना चाहिए।
न्यायालय ने पहले ई-रिक्शा पर प्रतिबंध लगा दिया था और इसका कहना था कि अनियंत्रित संचालन की वजह से यह यातायात और आम नागरिकों के लिए गतिरोध पैदा करता है। ई-रिक्शा के संचालन की अनुमति मांगते हुए केंद्र सरकार ने कहा था कि 50,000 ई-रिक्शा संचालकों का परिवार इससे जुड़ा है और दिल्ली के लाखों लोगों की परेशानी बढ़ रही है, जो कुछ मील की दूरी तय करने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। यातायात पुलिस ने कहा था ई-रिक्शा का पंजीयन न होने तथा इसका बीमा न होने की वजह से इसकी सवारी करने वाले लोगों को चोट लगने या उनकी मौत पर कोई मुआवजा नहीं मिलेगा। इसका यह भी कहना था कि इसका नियमन मोटर वाहन अधिनियम के तहत न होने से पुलिस चालकों के खिलाफ मुकदमा नहीं चला सकती।