बाल मजदूरों का दर्द समझिये नरेंद्र मोदी जी
नई दिल्ली (विवेक शुक्ला)। हालांकि देश में विदेशी निवेश लाने से लेकर इसे स्वच्छ करने की कोशिशें तेज हो गई है, पर केन्द्र सरकार की नाक के नीचे राजधानी में देश के नौनिहाल जमकर मेहनत करके दो वक्त की रोटी कमा पाते हैं। बेहतर होगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इन नौनिहालों के संबंध में भी सोचें। राजधानी के नरेला स्थित नई अनाज मंडी परिसर में बाल श्रम हो रहा है। यहां पर तेज आंधी में गिरी दीवार का निर्माण कार्य चल रहा है।
इन कार्य को अंजाम देने के लिए बाल श्रमिकों का सहारा लिया जा रहा है। मौके पर पूछताछ में पता चला कि इस कार्य की जानकारी ठेकेदार व मंडी प्रशासन को भी है।
दरअसल बाल श्रम अधिनियम में न्यायालय द्वारा कड़ाई किए जाने के बावजूद हालातों में सुधार होते दिखाई नहीं दे रहा है। आलम यह है कि बाल श्रम के मामले में दिल्ली सरकार के श्रम विभाग समेत निजी एजेसियों द्वारा की जाने वाली छापेमारी ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। अभी हाल ही में भले ही दिल्ली के चांदनी चौक इलाके से करीब 2 दर्जन बाल मजदूर मुक्त करा लिए गए हो लेकिन इनकी तादाद पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। देखा जाए तो राजधानी में बाल श्रमिकों की तादाद आज 1 लाख के भी ऊपर पहुंच गई है। आने वाले दिनों में बाल मजदूरों की तादाद प्रशासन के लचर रवैये के चलते कहां तक जाएगी। यह कह पाना भी काफी मुश्किल हो गया है।
बताया जाता है कि इस साल अब तक सैकड़ों की तादाद में बाल मजदूर राजधानी में चल रहे निजी व सरकारी कार्यालयों, फैक्ट्रियों, गोदामों, होटलों व अन्य जगहों पर से वयस्कों की भांति कार्य करते पाए गए हैं। कुछ समय पहले गांधी नगर इलाके में जींस की फैक्ट्री से 23 बाल मजदूर मुक्त कराए गए थे। वहीं खजूरी इलाके में बादाम तोडऩे के गोदाम से करीब 1 दर्जन बाल मजदूर मुक्त कराए गए थे।
हैरत तो यह है कि बाल श्रम अधिनियम के तहत बच्चों को काम पर रखने वालों को 20 हजार रुपए का जुर्माना तुरंत भुगतान पकड़े जाने के बाद करना पड़ सकता है। साथ ही ऐसा करते दोबारा पाये जाने व्यावसयिक लाइसैंस निरस्त होने के साथ-साथ दोगुने जुर्माने का प्रावधान हैं। बावजूद इसे औनी-पौनी दिहाड़ी पर अपने फायदे के लालच में काम पर लगाने वालों की कोई खास कमी नहीं है। ऐसे में देश का भविष्य कहलाने वाले बच्चों का बचपन बाल मजदूरी की अवस्था में अंधकार की गर्त में खिंचता नजर आ रहा है।