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तो टूट जाएंगे सारे गठबंधन, खुल जाएंगी मजबूरी की बेड़ियां

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मुंबई। चार राज्यों के चुनावी दंगल का बिगुल बज गया है लेकिन इसकी गूंज महाराष्ट्र में ही सुनाई दे रही है। सबकी निगाहे इस बार महाराष्ट्र में जाकर टिक गई हैं। कांग्रेस-एनसीपी और भाजपा-शिवसेना गठबंधन में चल रही कलह में उलझे पार्टियों के आलाकमान यह फैसला नहीं कर पा रहे हैं कि कितनी सीटों पर किस पार्टी को चुनाव लड़ना चाहिए। एनसीपी ने कांग्रेस 124 सीटों के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है तो वहीं शिवसेना की ओर से दिया गया 126 सीटों के प्रस्ताव भाजपा ने साफ तौर पर मना कर दिया है।

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गौरतलब है कि मोदी सरकार की ओर से रेलवे भाड़ा बढ़ाए जाने के बाद महाराष्ट्र शिवसेना ने जमकर विरोध किया था। जिस पर कड़ी टिप्पणी भी की थी। इस पर महाराष्ट्र भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने बैठक कर शिवसेना के साथ गठबंधन तोड़ लेने के लिए अलाकमान पर दबाव बनाने का अति उत्साहित फैसला किया था। लेकिन नरेंद्र मोदी और दिल्ली में बैठे वरिष्ठ नेताओं की रजामंदी नहीं मिल पाने के काऱण गठबंधन को बरकरार रखने के लिए कहा गया था।

तभी से भाजपा गठबंधन को लेकर एक अजीब सी उलझन में है। भाजपा न ही शिवसेना के साथ गठबंधन विवाद को खत्म कर पा रही है तोड़ पाने का निर्णय कर पा रही है। ऐसे संकेत हैं कि भाजपा के कार्यकर्ता लगातार गठबंधन तोड़ने को लेकर दबाव बनाए हुए हैं लेकिन दिल्ली भाजपा इसे पूरी तरह से हार-जीत के तराजू पर तौल कर देख रही है।

अब जरा कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के बीच सीटों के बंटवारे के विवाद पर नजर डालें तो यही उलझन कांग्रेस के साथ भी है। कांग्रेस न गठबंधन तोड़ने के लिए आगे बढ़ी है और न ही सीटों के बंटवारे को शांत करने के लिए कोई पहल की है।

अगर विश्लेषण के तहत कहा जाए तो यह उलझन चुनावों की हार जीत का सही से आकलन नहीं कर पाने की वजह से है। दोनो बड़ी राष्ट्रीय पार्टी आशंका के घेरे में है। चुनाव के नतीजों के बाद दोनो बड़ी पार्टियां नतीजों के आधार पर गठबंधन तोड़ने और बरकरार रखने पर एक कड़ा फैसला कर सकती हैं?

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English summary
Alliance controversy between BJP-shivsena and congress-NCP May break after election result.
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