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ब्रिटेन के खुले समाज में चुनौती बनती इस्‍लामिक सोसाइटी

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Islamic challenges for British societies, Britain
शताब्दियों से, लोग ब्रिटेन को सबसे आधुनिक देशों में से एक मानते रहे हैं, यहां की सभ्‍यता, समाज, रहन-सहन, कानून का शासन, व्‍यक्तिगत स्‍वतंत्रता और लोकतंत्र, सब कुछ दुनिया के बाकी देशों के लिए अनुकरणीय रहा है। लेकिन 21वीं सदी के शुरूआत में जैसे-जैसे सारी दुनिया आगे बढ़ने लगी, ब्रिटेन की यह खास छवि धूमिल होती चली गई। जो ब्रिटेन, आधुनिकता की तस्‍वीर वाला था, उसके कई परिक्षेत्रों पर इस्‍लामी मौलवियों द्वारा प्रशासन होने लगा।

ब्रिटिश इंडियन जर्नलिस्‍ट एडना फर्नांडिस ने लिखा कि ब्रिटेन के एक गांव क्रिस्‍लहर्स्‍ट में भारत के दारूम उलूम देवबंद की तरह ही दारूल उलूम मदरसा मॉडल विकसित किया गया है जिसके उद्देश्‍य ऐसे लीडर्स को तैयार करना है जो कि मुस्लिमों का नेतृत्‍व कर सकें। इन मदरसों में बताया जाता है कि संगीत, ड्रामा और आधुनिक विदेशी भाषाएं सीखना इस्‍लाम के खिलाफ है साथ ही प्‍यार और बदला आधारित कहानियां लिखने वाले शेक्‍सपियर के साहित्‍य को भी हराम माना गया है। लीसेस्‍टर में स्थित इस्‍लामिक संस्‍था 'दारूल इफ्ता' के मुफ्ती मोहम्‍मद इब्‍न अदम ने एक फतवा जारी किया है, जिसके अनुसार टैक्‍सी चलाना इस्‍लाम में हराम है क्‍योंकि इसमें बैठा यात्री हो सकता है कि पब जा रहा हो। अक्‍सर दिये जाने वाले इस तरह के फतवे आधुनिक समाज के मौलिक आधार और व्‍यक्तिगत स्‍वतंत्रता को मुंह चिढ़ाते हुए से प्रतीत होते हैं।

2008 में, वेस्‍ले पैक्‍सटन के एक शिक्षक संघ ने चेतावनी दी थी कि धार्मिक स्‍कूल, ब्रिटेन में अलगाव पैदा करने का कारण बन सकते है। इसके अलावा, उन्‍होने इस बात की भी आशंका जताई थी कि ''धार्मिक स्‍कूलों में बढ़ोत्‍तरी का मतलब अधिक से अधिक इस्‍लामिक स्‍कूलों का बढ़ना है।'' ब्रिटेन में इस समय लगभग 166 मदरसे है जो अलगाव पैदा कर रहे है। पाकिस्‍तान और अन्‍य देशों से आने वाले मौलानाओं के द्वारा यहां मस्जिद और मदरसों को स्‍थापित किया गया है जो बरेलवी, देवबंदी, अहमदी, शिया जैसी सांप्रदायिक तर्जो पर चलाए जा रहे है। ब्रिटेन के विश्‍वविद्यालयों के द्वारा कैम्‍पस इवेंट पर लिंग पृथक्‍करण प्रचलन को अनुमोदित कर दिया गया। मुसलमान छात्र, विज्ञान की कक्षा से बाहर निकल आते है और कहते है कि यह कुरान के खिलाफ है।

इस्‍लामी शरीयत कानून को ब्रिटिश कानून के समानांतर ही मौलवियों के द्वारा लागू किया जाता है। कांस्‍टेबुलरी के मुख्‍य निरीक्षक, टॉम विन्‍सर ने हाल ही में चेतवानी दी है कि मुस्लिम किसी भी गंभीर मुद्दे जैसे - ऑनर किलिंग, यौन हमले और हत्‍या आदि होने पर पुलिस को नहीं बुलाते है बल्कि वह शरिया आधारित न्‍याय प्रणाली पर अधिक विश्‍वास करते है। पिछले महीने ही, रिबका डावसन को गवाह के रूप में कोर्ट के सामने खड़ा होना था, जिसने अपना चेहरा दिखाने से मना कर दिया और एक पूरा लबादा या बुर्का पहनने की अनुमति मांगी, हालांकि, जब उसे गवाही के लिए बुर्के को उतारने के लिए कहा गया तो वह कोर्ट के कठघरे में खड़ी नहीं रही बल्कि दूसरे स्‍थान पर उसने अपनी पहचान करवाई। डावसन परिवर्तित मुसलमान है, मुसलमान धीरे -धीरे अपने घरौंदो का निर्माण कर रहे है। अप्रवासी एक क्षेत्र में बसते है, आसपड़ोस के लोग अपना घर बेच देते है और वो लोग आसपास के घरों में ही रहने लग जाते है। लंदन में मुस्लिमों की संख्‍या बढ़ने लगी है और बर्मिंघम, ब्रैडफोर्ड, लीड्स, मैनचेस्‍टर, ओल्‍डम, डियूसबुरी और लीसेस्‍टर के क्षेत्रों में इनकी संख्‍या काफी अधिक है, यह जानकारी पाकिस्‍तान मूल के ब्रिटिश पत्रकार साजि़द इकबाल ने अपने लेख में दी थी।

कथित तौर पर, ब्रिटेन में 85 शारिया कोर्ट चलती हैं जो अपराधियों को उनके अपराध की सज़ा देता है, यह पूरी कोर्ट ब्रिटेन के शादी, वसीयत, बच्‍चे की कस्‍टडी, बहुपत्‍नी प्रथा आदि के नियमों के बिल्‍कुल विपरीत है। 2008 में ब्रिटेन की सरकार के द्वारा 5 शरिया कोर्ट को अनुमति प्रदान की गई थी, जो बर्मिंघम, ब्रैडफोर्ड, मैनचेस्‍टर और न्‍येूटन में स्थित है, इनके बारे सरकार की शर्त थी कि वह ब्रिटिश न्‍यायिक प्रणाली का ही पालन करेगें। अनौपचारिक रूप से, मदरसों और मस्जिदों के द्वारा भी नियम और कानून लागू किए जाते है जिन्‍हे मौलवियों द्वारा बढ़ाया जाता है। पिछले दिसम्‍बर, तीन मुस्लिम युवकों को लंदन की सड़कों पर लोगों पर हमला करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। ये मुस्लिम युवा लड़कियों के छोटी स्‍कर्ट पहनने और युगलों के हाथ में हाथ डालकर चलने पर आपत्ति जताते हैं।

लंदन की सड़कों पर, सजग मुस्लिम युवाओं को नो-गो एरिया में जाने के लिए इनर्फोस किया जाता है जो शरिया जोन्‍स के रूप में बने हुए है। पिछले दिसम्‍बर, दर्जनों मुस्लिम पुरूषों और महिलाओं ने लंदन ब्रिक लेन में विरोध जताया और मांग की, कि शराब बेचने वाली सभी दुकानों और रेस्‍टोरेंट को बंद किया जाए। पाकिस्‍तानी परिवारों के लोग अपनी बेटियों को लेकर वापस अपने मुल्‍क चले गए और बिना उनकी अनुमति के उनकी शादी करवा दी। कई बार तो मुस्लिम परिवार अपनी लड़कियों को किसी गैर-धर्म में शादी कर लेने के कारण मार भी डालते है। ब्रिटिश जेलों में, इस्‍लामवादी, कैदियों को इस्‍लाम बदलने के बारे में बताते है और इस्‍लामिक शरिया कोड लागू करने की मांग करते है। 2010 में, लॉन्‍ग लॉर्टिन रिपोर्ट में आधिकारिक तौर पर बताया गया कि गैर मुस्लिमों को वेस्‍टर्न म्‍यूजिक चलाने के लिए मना किया जाता है और उन्‍हे उनके मोबाइल से लड़कियों की तस्‍वीर हटाने को कहा जाता है।

अप्रैल 2013 में, एक ब्रिटिश मुस्लिम महिला जो कि पाकिस्‍तानी गायक जुनैद ज़मशेद की रिश्‍तेदार थी, उसने इस्‍लाम छोड़ दिया और राइटर के तौर पर अपना नाम लायला मुराद लिखने लगी। आधुनिक ब्रिटेन में ऐसा होना कोई नई बात नहीं है। मुस्लिमों में बहुपत्‍नी प्रथा भी ज्‍यादा है जिसमें उन्‍हे एक से ज्‍यादा जीवनसाथी चुनने की आजादी होती है, इस बारे में मैट्रीमोनियल कन्‍सल्‍ट मिज़ान राज़ा बताते है कि उनके पास सैकड़ों कॉल्‍स दूसरी या तीसरी शादी करने के लिए आते है। 2013 के अंत तक, ब्रिटेन में मुस्लिमों की संख्‍या, 3.3 मिलियन हो गई जो कि यूके की 5.2 प्रतिशत आबादी है। ब्रिटेन में मुस्लिम युवाओं की तादाद काफी ज्‍यादा है जिनमें से कई तो 25 साल की उम्र से कम के है। इस बारे में चिंता जताई जा रही है कि अगले पांच सालों में अगर ऐसा ही हाल रहा तो लंदन, मिनी इस्‍लामाबाद बन जाएगा और वहां के कल्‍चर और संस्‍कृति की हानि होगी। ऐसा होने पर ब्रिटेन की खुली और मॉर्डन सोसायटी के दशकों पीछे चले जाने का भी खतरा है।

(समाचार पत्र 'द न्‍यू इंडियन एक्‍सप्रेस' में प्रकाशित एक लेख)

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English summary
Emerging Islamic societies are becoming a big challenge for British culture, How? Read here.
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