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मोदी-राजनाथ की इलेक्शन स्ट्रैटजी में अंत में ही क्यों आये भागवत?

By Ajay Mohan
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चुनावी शोर थम गया, प्रचार खत्म हो गया, सारी रैलियां पूरी हो गई और तब जाकर पहले नरेंद्र मोदी ने आरएसएस प्रमख मोहन भागवत से मुलाकात की और अब राजनाथ सिंह उनसे मिलने पहुंचे हैं। जरा सोचिये आखरि ऐसे क्या कारण हैं, जो भाजपा की इलेक्शन स्ट्रैटजी में इस बार मोहन भागवत सबसे अंत में आये? आखिर इस मुलाकात में क्या चर्चा हो रही है।

पहले सवाल का जवाब है मुस्ल‍िम वोट। जी हां नरेंद्र मोदी और राजनाथ सिंह ने सार्वजनिक रूप से आरएसएस का इन्वॉल्वमेंट अंत में इसलिये रखा, क्योंकि वो नहीं चाहते थे कि मुस्ल‍िम वोट कटें। सिर्फ यही एक मात्र कारण है, जिसमें आरएसएस को अंत में रखा गया।

दूसरे सवाल का जवाब बेहद रोचक है। मुलाकातों में क्या हो रहा है, इस बात का खुलासा अध‍िकारिक रूप से तो नहीं किया गया है, लेकिन हां सूत्रों की मानें तो बंद कमरे में अगली सरकार और भाजपा के बुजुर्ग नेताओं की जिम्मेदारियों पर चर्चा की जा रही है।

झंडेवालान में स्थ‍ित संघ कार्यालय में मौजूद संघ के एक कार्यकर्ता के अनुसार मोदी और राजनाथ पूरी रिपोर्ट देने पहुंचे हैं। इस बैठक में संघ प्रमुख मोहन भागवत मौजूद नहीं थे, उनकी जगह भईया जी जोशी और सुरेश सोनी मौजूद थे। वार्ता में खास तौर से इसमें यह चर्चा हो रही है, कि भाजपा के बुजुर्ग नेताओं को किस प्रकार की जिम्मेदारियां अगली सरकार में दी जायें। सूत्रों के अनुसार राजनाथ ने संघ प्रमुख को वो आंकड़े मुहैया कराये हैं, जिन पर भाजपा को जीत पक्की दिखाई दे रही है।

इन आंकड़ों के अनुसार भाजपा को इस बार 252 सीटें मिलती दिख रही हैं, जबकि पूरे एनडीए को 300 से ज्यादा सीटें मिलेंगी। राजनाथ को अंदाजा है कि मोदी की लहर के चलते भाजपा को 28 और सीटें मिल सकती हैं, लेकिन अभी भरोसा इसलिये नहीं क्योंकि उन 28 पर अन्य दलों का वर्चस्व वर्षों से कायम है।

राजनाथ क्यों रिपोर्ट कर रहे हैं आरएसएस को

अगर आप आरएसएस की डायरेक्टरी उठाकर देखें तो उसके अंतिम चरण में उन संगठनों के नाम, नंबर व पते हैं, जो आरएसएस से संबद्ध हैं। उस लिस्ट में भाजपा का नाम होना यह दर्शाता है कि भाजपा, आरएसएस की एक विंग है, न कि इसके विपरीत। जाहिर सी बात है अपने मातृ संगठन को रिपोर्ट तो करना ही पड़ेगा।

दूसरा सबसे बड़ा कारण है भाजपा के वोट पक्के करने में आरएसएस का इन्वॉल्वमेंट। भाजपा में जब भी टिकट फाइनल किये जाते हैं तब आरएसएस के क्षेत्र प्रचारक, शहर प्रचारक और ब्लॉक प्रचारक से कैंडिडेट के बारे में राय ली जाती है। अगर निगेटिव फीडबैक होता है, तो भाजपा उसे टिकट नहीं देती है। जाहिर सी बात है, जब आरएसएस के फीडबैक के आधार पर टिकट दिया है, तो उसका रिपोर्टकार्ड देना तो बनता ही है।

अंत में सबसे महत्वपूर्ण यह कि नरेंद्र मोदी, मुरली मनोहर जोशी, लाल कृष्ण आडवाणी, से लेकर तमाम बड़े भाजपायी नेता आरएसएस के कार्यकर्ता हैं। अगली सरकार में मोदी की सीट तो पक्की है, लेकिन बाकी को कहां-कहां बिठाया जायेगा, इस निर्णय में भागवत की राय जरूर ली जायेगी और भाजपा वही काम कर भी रही है।

भाजपा का कॉन्फीडेंस

ऐन वक्त पर आरएसएस प्रमुख और अटल बिहारी वाजपेयी से मुलाकात और मुलाकात साफ तौर पर भाजपा का अगली सरकार बनाने का कॉन्फीडेंस दर्शा रही है। ऐसे में कल यानी 12 मई को वोट डालने जा रहे वोटरों के जहन पर भी प्रभाव पड़ सकता है, जो लोग भाजपा को वोट नहीं भी देने जा रहे होंगे, इस खबर को पढ़ने के बाद जरूर देंगे।

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English summary
Why Atal Bihari Vajpayee and RSS chief Mohan Bhagwat came last in Rajnath Singh and Narendra Modi's election strategy.
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