नई दिल्ली। क्रिकेट के मास्टर ब्लास्टर और वर्ष 2013 में क्रिकेट को अलविदा कहने वाले सचिन तेंदुलकर को आखिरी क्षणों में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। लेकिन अब इस बात का खुलासा हुआ है कि पीएमओ की ने सचिन की बजाय हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न से नवाजने का फैसला कर लिया था।
यूपीए सरकार ने आखिरी मौकों पर अपना फैसला बदला और हॉकी के फैंस को निराश कर दिया। मेजर ध्यानचंद ही वह शख्स हैं जिनकी वजह से भारत को वर्ष 1928, 1932 और 1936 के ओलंपिक खेलों में हॉकी में स्वर्ण पदक हासिल हुए थे। अंग्रेजी समाचार चैनल हेडलाइंस टुड की ओर से इस सच से पर्दा हटाया गया।
तय हो गया था दद्दा का नाम
मेजर ध्यानचंद को उनके चाहने वाले दद्दा के नाम से जानते हैं। पिछले वर्ष 16 जुलाई को यूपीए सरकार में खेल मंत्री जीतेंद्र सिंह की ओर से हॉकी के जादूगर दद्दा का नाम भारत रत्न के लिए प्रस्तावित किया गया। इस पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मोहर भी लगा दी थी।
पीएमओ के आतंरिक सूत्र बताते हैं कि ध्यानचंद का नाम पिछले वर्ष अगस्त 2013 तक पुरस्कार के लिए पूरी तरह से तय था। चैनल की ओर से पीएमओ को भेजे गए ई-मेल्स में यह सच सामने आया है कि कैसे सरकार ने ध्यानचंद को किनारे कर पुरस्कार के लिए सचिन तेंदुलकर को तवज्जो दी थी।
गौरतलब है कि भारत के इतिहास में यह पहला मौका था जब किसी खिलाड़ी को भारत रत्न से नवाजा गया था। यूपीए सरकार पर यह आरोप भी लग थे कि उसने वोट बैंक की खातिर पुरस्कार के नियमों को तुरंत बदला और सचिन को पुरस्कार से सम्मानित किया था।
सचिन के रिटायरमेंट ने बदल दिया खेल
लेकिन जैसे ही पिछले वर्ष सचिन तेंदुलकर ने अपने रिटायरमेंट का ऐलान किया, सारा खेल बदल गया। अचानक ही 14 नवंबर को पीएमओ की ओर से खेल और युवा मामलों के मंत्रालय से सचिन तेंदुलकर का बायोडाटा मांगा गया।
मंत्रालय ने आदेश का पालन करते हुए सिर्फ एक ही दिन के अंदर तेंदुलकर का बायोडाटा पीएमओ को मुहैया करा दिया। खास बात यह है कि यूपीए सरकार को एक साथ एक ही दिन के अंदर प्रमुख वैज्ञानिक सीएनआर राव और तेंदुलकर को भारत रत्न देने की मंजूरी चुनाव आयोग की ओर से दे दी गई।
इस पूरे मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार ने इस पूरे मुद्दे को काफी दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है। उनका कहना है कि मेजर ध्यानचंद के खिलाफ राजनीतिक साजिश रची गई।