यादें: पास कर ली थी सिविल सेवा परीक्षा लेकिन देशसेवा में झोंक दी पूरी ज़िदगी
बेंगलोर। इतिहास अपने पन्नों में पक्की स्याही समेट सकता है पर कच्ची यादें नहीं। ऐसा ही कुछ हम सोचते-विचारते और मानते आए हैं अपने-हमारे नेता जी सुभाषचंद्र बोस के लिए। जितना जोश-जुनून उनकी ज़िंदगी और ज़िंदादिली में था उतना ही सन्नाटा उनकी मौत और मौत की वज़ह को लेकर भी बना रहा।
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भारत
के
स्वतंत्रता-संग्राम
नायकों
में
से
एक
नेताजी
सुभाषचंद्र
बोस
ने
भारत
की
आजादी
के
लिए
अपना
वो
सबकुछ
न्यौछावकर
कर
दिया
जिसकी
वजह
से
वे
उस
दौर
को
बेहद
बेहतरी
से
जी
सकते
थे।
आज
यानि
18
अगस्त
के
दिन
ही
नेताजी
की
मृत्यु
की
खबर
आई
थी।
DW
रिपोर्ट
ने
भी
आज
उन्हें
तहे
दिल
से
याद
किया
है।
-
बोस
राष्ट्रीय
स्तर
के
नेता
होने
के
अलावा
एक
सैनिक
और
माने
हुए
कूटनीतिज्ञ
भी
कहे
गए।
उनका
जन्म
23
जनवरी
1897
को
उड़ीसा
के
कटक
में
हुआ
था।
बोस
ने
दूसरे
विश्व
युद्ध
के
दौरान
आजादी
हासिल
करने
के
लिए
ब्रिटेन
का
मुकाबला
आजाद
हिंद
फौज
की
मुहर
के
साथ
किया।
-
उस
दौर
के
जाने-माने
बंगाली
वकील
जानकीनाथ
बोस
के
बेटे
सुभाष
की
शिक्षा
कलकत्ता
के
प्रेसीडेंसी
कॉलेज
और
स्कॉटिश
चर्च
कॉलेज
से
पूरी
हुई।
इसके
बाद
वह
इंग्लैंड
की
केम्ब्रिज
यूनिवर्सिटी
की
ओर
बढ़
गए।
जीवन
परिचय
सार-
जिस
सिविल
सेवा
परीक्षा
के
लिए
आज
छात्र
संघर्ष
व
आंदोलन
करने
के
लिए
मजबूर
हैं,
1920
में
उन्होंने
इसकी
परीक्षा
पास
की,
पर
1921
में
भारत
में
चल
रहे
राजनीतिक
आंदोलन
के
बारे
में
सुन
कर
देशसेवा
की
भावना
लिए
संग्राम
में
कूद
पड़े।
अपने वतन लौटकर सुभाषचंद्र बोस देश के स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी की संगत की, लेकिन वह मानते थे कि अहिंसा के रास्ते से आजादी मिलने में बेहद वक्त लग सकता है। गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन बीच में ही छोड़ देने से वह थोड़ा असहज हुए।
बड़ी
उपलब्धियां-
1938
में
वह
भारतीय
राष्ट्रीय
कांग्रेस
के
अध्यक्ष
निर्वाचित
हुए।
1939
में
उन्होंने
अध्यक्ष
पद
से
रिज़ाइन
कर
दिया।
ब्रिटेन
से
आजादी
पाने
के
लिए
उन्होंने
जर्मनी,
इटली
और
जापान
जैसे
देशों
से
मदद
लेने
की
कोशिश
भी
कि
जोकि
काफी
समय
तक
विवादास्पद
कही
जाती
रही
है।
ऐसा माना गया कि दूसरे विश्व युद्ध में जापान के आत्मसमर्पण के कुछ दिन बाद दक्षिण पूर्वी एशिया से भागते हुए एक हवाई दुर्घटना में 18 अगस्त 1945 को बोस की मृत्यु हुई। एक मान्यता यह भी है कि बोस की मौत 1945 में नहीं हुई, वह उसके बाद रूस में नजरबंद रहे। आज उनके परिवार-समाज को उनकी मौत से जुड़े किसी भी तरह के दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं पर वे व उनका योगदान हमारे दिलों में अभी जिंदा हैं।