पढ़ें श्रीलंका का वो लेख, जिसे कहा गया जयाललिता का मोदी को लव लेटर
दरअसल जो कुछ भी श्रीलंका के रक्षा मंत्रालय की वेबसाइट पर लिखा गया, उसके ग्राफिक कंटेंट पर सबसे ज्यादा आपत्ति दर्ज कराई गई थी। यह आर्टिकल पिछले दिनों करीब 50 भारतीय मछुआरों की गिरफ्तारी के बाद लिखा गया है।
जयललिता को बताया तिरस्कृत महिला
रक्षा मंत्रालय की ओर से लिखे गए एक आर्टिकल जिसका टाइटल 'हाउ मीनिंगफुल जयललितास लव लेटर्स टू नरेंद्र मोदी, ' है, साइट पर पब्लिश करने के थोड़ी देर बाद ही हटा लिया। यह आर्टिकल एक ऐसे समय पर आया है जब भारतीय जनता पार्टी की ओर से एक डेलीगेशन श्रीलंका गया हुआ है जिसका प्रतिनिधित्व सुब्रहमण्यम स्वामी कर रहे हैं।
श्रीलंका के इस आर्टिकल की शुरुआत में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री को एक ऐसी तिरस्कृत महिला के तौर पर करार दिया गया है जिनके लिए हर श्रीलंकाई नागरिक की भावनाएं एकदम सही हैं।
आर्टिकल के मुताबिक इस बात को सोचने में किसी को भी गुस्से का भाव नहीं आता है। बीजेपी की ओर से डॉक्टर सुब्रहमण्यम स्वामी की अगुवाई में एक डेलीगेशन भंडारनायके सेंटर फॉर इंटरनेशनल स्टडीज के आमंत्रण में यहां पहुंचा है। डॉक्टर स्वामी ने यहां पर इस बात को साफ कर दिया है कि तमिलनाडु भारत और श्रीलंका के रिश्तों के बीच नहीं आएगा।
साथ ही स्वामी ने श्रीलंका के राष्ट्रपति का शुक्रिया भी अदा किया है कि उन्होंने भारतीय मछुआरों को रिहा कर दिया। हालांकि उनकी नाव को जब्त कर लिया गया है। नाव के मालिकों ने मछुआरों पर दबाव डाला कि श्रीलंका के क्षेत्र में दाखिल हों क्योंकि भारत की ओर अब मछलियां नहीं हैं।
नखरेबाज जयललिता
आर्टिकल में लिखा है कि यह एक ऐसी हकीकत है जिसे जयललिता न चाहकर भी नजरअंदाज नहीं कर सकती हैं। जयललिता के नखरे भारत में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार के नकारात्मक नजरिए पर खासा असर डाल रही है।
ऐसे में जयललिता को अपने नखरे दिखाने बंद करने चाहिए और उन्हें यह देखने की कोशिश करनी चाहिए कि कैसे भारतीय मछुआरें मछलियां न होने की स्थिति में अपनी जीविका अर्जित कर सकते हैं।
इंटरनेशनल मैरीटाइम बॉर्डर को दोनों देशों के बीच वर्ष 1974 में खींचा गया था और वर्ष 1976 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय समझौता हुआ।
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के पास पूरा हक है कि वह इस पूरे मुद्दे पर खूब चिल्लाएं और रोएं लेकिन वह दोनों देशों के बीच मौजूद इस समझौते की वजह मौजूद वैधानिक स्थिति को बदल नहीं सकती हैं।
काछेछेतिव्यू श्रीलंका के न्यायधिकार क्षेत्र के तहत आता है और श्रीलंका मानता है कि इस इलाके का निर्माण वर्ष 1924 में हुआ जबकि वर्ष 1876 इस आईलैंड को श्रीलंका की संपत्ति के तौर पर करार दिया गया था।
ऐसे में द्विपक्षीय समझौते के तहत तमिलनाडु के जो भी मछुआरें तटीय सीमा का उल्लंघनल करते हैं उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है और ऐसे में श्रीलंका पर गलती नहीं डाली जा सकती है।
भारत को बताया जिम्मेदार
आर्टिकल के मुताबिक ऐसे में श्रीलंका को इस बात का अहसास है कि भारतीय पक्ष की तरफ जो समुद्री किनारा है उस पर अतंराष्ट्रीय प्रतिबंध की वजह से खासा प्रभाव पड़ा है।
ऐसा इसलिए है क्योंकि मछली पकड़ने के व्यावसायिक हितों को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया। भारतीय तटीय किनारे पर अब बिल्कुल भी मछलियां नहीं बची हैं और ऐसे में मुश्किलें और बढ़ रही हैं।
श्रीलंका को इन हालातों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि खामी भारत की तरफ है। ऐसे में तमिलनाडु सरकार को यी बात स्वीकार करनी पड़ेगी कि उसकी ओर से प्रतिबंधित इलाके में लोगों को भेजा जा रहा है।
आर्टिकल में साफतौर पर तमिलनाडु सरकार और जयललिता को पूरे हालातों का जिम्मेदार बताते हुए उन्हें अपनी गलती स्वीकार करने को कहा है। आर्टिकल के मुताबिक बीजेपी की सरकार की ओर से इस मुद्दे को हल करने के लिए सिफारिशें की गई।
केंद्र सरकार की कोशिशों को प्रभावित करतीं जयललिता
साथ ही जिस तरह ये श्रीलंका की सरकार ने गिरफ्तार किए हुए मछुआरों को रिहा किया है, उसके लिए बीजेपी की सरकार ने श्रीलंका की सरकार की सराहना भी की है।
तमिलनाडु शायद यह भूल गया है कि श्रीलंका के तमिल मछुआरों की जीविका पर तमिलनाडु मछुआरों की वजह से खासा प्रभाव पड़ा है जो अक्सर ही श्रीलंका की समुद्री सीमा में दाखिल होते रहते हैं।
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री की ओर से जो हालिया पत्र लिखा है गया है जिसमें मछुआरों की नाव को छोड़ने की मांग की गई है, उसके बारे में जानकर इस बात पर हैरानी नहीं होनी चाहिए कि इनमें से कोई नाव खुद मुख्यमंत्री या फिर उनके किसी समर्थक की भी हो सकती है।
आर्टिकल में यहां तक कहा गया है कि इस तरह की चिट्ठी लिखकर जयललिता भारत के प्रधानमंत्री छवि को दागदार बनाने की कोशिश कर रही हैं।
साथ ही दोनों देशों के बीच संबंधों को बेहतर बनाने की दिशा में जो प्रयास चल रहे हैं, उसे भी प्रभावित कर रही हैं। आर्टिकल में जयललिता के रवैये को भारत की सोनिया गांधी की अगुवाई वाली यूपीए सरकार की नीतियों से प्रभावित करार दिया गया है।