सचिन ने ले लिया संन्यास पर आडवाणी ने क्यों नहीं?
हमने अपने पाठकों से सवाल किया कि आडवाणी को क्या करना चाहिये? दो विकल्प थे- राजनीति से रिटायरमेंट या राजनीति में रहकर मोदी के लिये परेशानी बने रहना चाहिये। खबर लिखे जाने तक इस पर 17,812 वोट पड़ चुके थे। जिनमें से 76 प्रतिशत (13525) लोगों ने कहा आडवाणी को संन्यास ले लेना चाहिये। वहीं 4289 (24 प्रतिशत) ने दूसरे विकल्प पर बटन दबाया। पोल अभी खुला हुआ है।
जनता के इस मत से साफ है कि अब वो आडवाणी को भाजपा की कोर टीम में नहीं देखना चाहती है। इससे कहीं न कहीं यह भी संदेश जाता है कि आडवाणी इस बार लोकसभा चुनाव में हार भी सकते हैं, क्योंकि अगर कांग्रेस या अन्य किसी पार्टी ने मजबूत युवा नेता को उनके खिलाफ खड़ा कर दिया, तो आडवाणी को करारी शिकस्त मिल सकती है।
क्यों ऑफर की भोपाल की सीट
भाजपा ने आडवाणी को भोपाल की सीट ऑफर की थी, लेकिन उन्होंने गांधीनगर से ही लड़ने का फैसला किया। इसके पीछे का बड़ा कारण था मध्य प्रदेश में भाजपा के जनाधान को और मजबूत करना। अगर आडवाणी भोपाल से चुनाव लड़ते तो मध्य प्रदेश में भाजपा का जनाधार और ज्यादा मजबूत हो जाता। असल में नरेंद्र मोदी को वाराणसी से लड़ाने का मकसद भी यही है। मोदी के काशी से लड़ने पर पूरे उत्तर प्रदेश में भाजपा को मजबूती मिलेगी।
गांधीनगर के चैंपियन हैं आडवाणी
2009
में
आडवाणी
ने
कांग्रेस
के
सुरेश
पटेल
को
1,21,747
वोटों
से
हराया
था।
उनका
वोट
शेयर
55%
था।
2004
में
आडवाणी
ने
कांग्रेस
के
जीएम
ठाकोर
को
2,17,138
वोटों
से
हराया।
उनका
वोट
शेयर
61%
था।
1999
में
आडवाणी
ने
कांग्रेस
के
टीएन
सेशन
को
1,88,944
वोटों
से
हराया।
उनका
वोट
शेयर
61%
था।
1998
में
आडवाणी
ने
कांग्रेस
के
पीके
दत्ता
को
2,76,701
वोटों
से
हराया।
उनका
वोट
शेयर
58
%
था।
1996
में
आडवाणी
मैदान
में
नहीं
उतरे।
1991
में
आडवाणी
ने
कांग्रेस
के
जीआई
पटेल
को
1,25,679
वोटों
से
हराया।
उनका
वोट
शेयर
57%
था।