कल्याण सिंह को गवर्नर बनाना कितना वाजिब
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) वक्त वक्त की बात है। एक जमाना था, जब कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के नम्बर वन भाजपा नेता हुआ करते थे। घटनाक्रम तेजी से घूमा। अयोध्या का विवादित ढांचा गिराया गया।
कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे। उन्हें बदनामी भी मिली और कोर्ट से एक दिन की सजा भी। अब सवाल यह कि क्या कल्याण सिंह को गवर्नर पद पर नियुक्त किया जाना चाहिए था ? इस सवाल का जवाब आगे तलाश करेंगे।
बीच में ऐसा भी समय आया, जब कल्याण सिंह भाजपा से बाहर हुए। फिर शामिल हुए और फिर बाहर चले गए। पिछले कुछ अरसे से वे फिर भाजपा में हैं। अब उन्हें राजस्थान का राज्यपाल बनाकर भेजा जा रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार कहते हैं कि हालांकि वे विवादित ढांचे को गिराए जाने के मामले में आरोपी हैं। उनके अलावा और भी कई भाजपा नेता भी आरोपी हैं। इसके बावजूद वे सरकारी पदों पर आसीन हैं। उनमें उमा भारत भी हैं। इसलिए उन पर ही निशाना साधने का कोई मतलब नहीं है।
जानकार यह भी कहते हैं संविधान भी साफ है इस लिहाज से कि जब तक किसी के खिलाफ चार्जशीट दायर नहीं हो जाती, वह पूरी तरह से साफ है। इस बात को चुनाव आयोग भी मानता है।
बहरहाल, एक बात साफ है कि कल्याण सिंह की प्रशासनिक क्षमताओं पर कोई संदेह नहीं कर सकता है। वे जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे,तब उनका सारे प्रशासन पर कमाल का निय़ंत्रण होता था।इस बीच, कल्याण सिंह ने कहा कि राज्यपाल पद की गरिमा और मर्यादा होती है और मैं इसका पालन करूंगा।
मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने राजस्थान में चुनौतियों के सवाल पर कहा कि वहां भाजपा की सरकार है और दृढ़ संकल्प रखने वाली मुख्यमंत्री हैं, मुझे वहां किसी भी तरह की चुनौती नहीं है।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि सक्रिय राजनीति में मैंने छह दशक से ज्यादा समय बिताया है, बहुत सारे उतार-चढ़ाव देखे हैं, लेकिन राज्यपाल का पद संवैधानिक है इसलिए इस पद की गरिमा के अनुसार अपनी जिम्मेदारी निभाऊंगा।
राज्यपाल बनाए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि पार्टी ने निर्णय सुना दिया और कार्यकर्ता होने के नाते मैंने इसे स्वीकार कर लिया। पार्टी ने जो निर्णय लिया है, उसका पालन तो करना ही पड़ेगा।
उन्होंने उत्तराखंड के राज्यपाल अजीज कुरैशी के सर्वोच्च न्यायालय में हटाए जाने को चुनौती देने के सवाल पर कहा कि जब नई सरकार आती है तो उसे लगता है कि उसकी तरफ से नियुक्त राज्यपाल बेहतर कर सकता है, लिहाजा वो इस आधार पर राज्यपालों की नियुक्ति करती है।
पिछली सरकार ने भी ऐसा ही किया था। अच्छा होता कि नई सरकार आने के बाद ही राज्यपाल नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे देते, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया बल्कि न्यायालय जाकर पद की गरिमा को ठेस पहुंचाने का काम किया है।