संघ के इशारे पर कतरे गए आडवाणी के पर
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला)। बीजेपी संसदीय बोर्ड से भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को बाहर किये जाने के संबंध में कहा जा रहा है कि यह संघ के इशारे पर हुआ है। इसके पीछे इरादा यह था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने दायित्वों का बेहतर तरीके से अंजाम देने का मौका मिल सके। क्योंकि संसदीय बोर्ड में रहते हुए वे अपने पहले की तरह से नाटक जारी रख सकते थे।
आडवाणी से नाराज था संघ
दरअसल संघ आडवाणी से काफी समय से खुन्नस खाए था। उसने मौका मिलते ही आडवाणी के पर कतर दिए। संघ के सूत्रों का कहना है कि आडवाणी ने मोदी के शिखर पर पहुंचने के रास्ते में तमाम तरह के अवरोध खड़े किए थे। सबसे पहले उन्होंने मोदी के पार्टी की प्रचार समिति का प्रमुख बनाए जाने का गोवा में विरोध किया था। तब उन्होंने संसदीय बोर्ड के मेंबर और एनडीए के वर्किंग चेयरपर्सन पद को छोड़ दिया था। इस कारण से संघ तब से ही आडवाणी से खफा था। जानकारों का कहना है कि संसदीय बोर्ड से बाहर किए जाने का मतलब है कि भाजपा के वयोवद्ध नेता की पार्टी में अब ताकत नहीं रही हैं। हां, उनका सम्मान तो सब करते ही है।
ध्यान रहे कि आडवाणी के अलावा मुरली मनोहर जोशी को भी उक्त अहम कमेटी में जगह नहीं मिली है। हां, आडवाणी को मार्ग दर्शक का पद दिया गया है। इसके साथ ही डॉ. मुरली मनोहर जोशी, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री राजनाथ सिंह को भी मार्ग दर्शक का दर्जा दिया गया।
मार्गदर्शकों का पार्टी की निर्णय प्रक्रिया से कोई लेना-देना नहीं होता। इसी के साथ कहा जाने लगा है कि पार्टी में अटल बिहारी वाजपेयी और आडवाणी के युग का अंत हो गया है।