नेता नहीं CA बनना चाहते थे अरुण जेटली
लेकिन आपको जानकर ताज्जुव होगा कि जेटली छात्र जीवन में नेता नहीं बल्कि चार्टर्ड अकाउंटेंट बनना चाहते थे और चूंकि सीए की परीक्षा पास करना उन्हें काफी कठिन लगा, इसलिए वे कानूनी पेशे में आ गए। इस बात का खुलासा जेटली ने खुद कि या। उन्होंने कहा कि पहले मेरी इच्छा चार्टर्ड एकाउटेंट बनने की थी, मैंने अन्य गतिविधियों में भी ध्यान लगाया और अंत में कानूनी पढ़ाई को पसंद किया। उन्होंने कहा कि उस समय सीए की परीक्षा को उत्तीर्ण करना भी मुश्किल था।
इससे पहले भी जेटली को वाजपेयी सरकार में कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया था। उस वक्त उनके पास उद्योग एवं वाणिज्य और कानून मंत्रालय का कार्यभार था। अरुण जेटली का जन्म 28 दिसंबर 1952 को एक पंजाबी हिंदू ब्राह्मण परिवार में हुआ। पिता महाराज किशन पेशे से वकील थे। जेटली ने नई दिल्ली सेंट जेवियर्स स्कूल से 1957-69 तक पढ़ाई की। उसके बाद उन्होंने श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की और डीयू से 1977 में लॉ की डिग्री हासिल की।
पढ़ाई के दौरान ही वो 1974 में डीयू स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष बने और यहीं से उन की राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई। 24 मई 1982 को जेटली की शादी संगीता जेटली से हुई। इनके दो बच्चे हैं। जेटली अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े। इमरजेंसी के दौरान जेटली को 19 महीना जेल में भी काटना पड़ा। 1991 से ही अरुण जेटली बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे। 1999 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्हें बीजेपी का प्रवक्ता बना दिया गया। एनडीए की सरकार में उन्हें 13 अक्टूबर 1999 को सूचना प्रसारण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नियुक्त किया गया।
जेटली की काबिलियत को देखते हुए पहली बार एक नया मंत्रालय बनाते हुए उन्हें विनिवेश राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नियुक्त किया गया। फिर राम जेठमलानी के इस्तीफे के बाद 23 जुलाई 2000 को जेटली को कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्री का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया। नवंबर 2000 में उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया और कानून, न्याय और कंपनी मामले के साथ ही जहाजरानी मंत्रालय भी सौंप दिया गया।
2004 में लोकसभा का चुनाव हारने के बाद उन्हें पार्टी का महासचिव बनाया गया और वो एक बार फिर से वकालत में लौट गए। फिर 2009 में उन्हें राज्यसभा के नेता प्रतिपक्ष के तौर पर चुना गया।