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ट्रेन में स्पीड नहीं, विकास में स्पीड चाहिए नरेंद्र मोदी?

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बेंगलोर। ट्रेन में स्पीड नहीं विकास में स्पीड चाहिए हुजूर ! देश गरीबी की खाई में डूब रहा है, यहां नरेंद्र मोदी सरकार को ट्रेन की हाई स्पीड लाने की पड़ी है। महंगाई इतना कमर तोड़ रही है कि पचास रुपए रोज कमाने वाला भी दो वक्त का खाना जुटा पाने में समर्थ नहीं है। पिछले कुछ वर्षों से गरीबी की परिभाषा गढ़ने के पीछे गरीबी पर ही परदा डाला जा रहा है। इसका स्पष्ट उदाहरण यह है कि चालीस रुपए से भीतर रोजाना खर्च करने वाले को गरीबी रेखा से ऊपर बताया जा रहा है। ऐसे में में हाल ही जारी हुई सी.रंगराजन समिति की रिपोर्ट के हवाले से शरही गरीबी को निर्धारित करना कहां तक जायज है। इस रंगराजन समिति की रिपोर्ट के मुताबिक गांवों में 32 रुपए प्रति दिन और शहर में 47 रुपए प्रतिदिन कमाने वाले को गरीबी रेखा से ऊपर माना है और इससे नीचे कमाने वाले को गरीबी रेखा से नीचे। जबकि सच्चाई इसके उलट है। आपको बता दें कि एक किलो आटा तीस से पैंतालिस रुपए करीब पड़ता है।

सच्चाई-1

यदि मान लिया जाए कि 32 रुपए और 47 शहरी गरीबी का आंकड़ा सटीक है तो भी दो वक्त का क्या एक वक्त का पौष्टिक खाना खा पाना मुश्किल है। दरअसल, चार सदस्यों का एक परिवार का मुखिया यदि तीस से पैंतालिस प्रति किलो का आटा खरीदता है तो क्या वह सिर्फ सूखी रोटी ही खाएगा। गौरतलब है कि सूखी रोटी भी खाए तो गैस का खर्चा, चूला है तो लकड़ी का खर्चा, यदि स्टॉप है तो मिट्टी के तेल का खर्चा यह सब खर्चे कौन देगा।

सच्चाई-2

यदि मान लिया जाए कि शहरी गरीब 47 रुपए और गांव का आदमी 32 रुपए कमाता है। शहरी आदमी का उदाहरण लेते हैं, यदि 47 रुपए रोज कमाने वाला शहरी परिवार के मुखिया को मिलाकर पत्नी व दो बच्चे समेत चार सदस्य हैं। तो क्या बिन कपड़ों के बिना साबुन के, बिना पानी-बिजली के वह कैसे रहेंगे।

सच्चाई-3

यदि किसी ग्रामीण या शहरी परिवार को इतने रुपए प्रतिदिन के नसीब होते हैं तो क्या यह कहा जा सकता है कि एक परिवार का मुखिया अपने बच्चों को पढ़ाने का खर्च उठा पाएगा।

सच्चाई-४

आज की महंगाई को तो देखते हुए सार्वजनिक वाहनों का किराया इतना महंगा हो गया है कि अब तो न्यूनतम आय वाले लोग घर से कम ही निकलते हैं या तो महीने में एक बार जाकर घर में सामान इकट्ठा ले आते हैं। निर्धन परिवार की तो इससे भी बुरी हालत होती है।

सच्चाई-5

दरअसल आपको बता दें कि इतनी कम आय कमाने वाले परिवार के बच्चों में अकसर कुपोषण व महिलाओं में एनिमिया की बीमारी घर कर रही है। देश में हजारों बच्चे कुपोषण के कारण ही मर जाते हैं।

गौरतलब है कि आपको बता दें कि देश की गरीबी की सच्चाई इतनी कड़वी है कि देश में सरकार भी इसे नकारने से बचती रही है। यूपीए सरकार ने तो यहां तक कह डाला था कि गरीबों की संख्या हमने कम कर दी है। पर सवाल तो फिर भी है कि क्या आंकड़ों से गरीबी को कम किया जा सकता है।

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English summary
There is no need to speed in train but speed in development of India. Perhaps the people of India demand and taking bullet train decision of Narendra Modi Govt as it is.
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