क्या सोचते हैं वो जो कारगिल युद्ध के दौरान बच्चे थे?
उस दिन स्कूल की छुट्टी हो गई थी
इसी कड़ी में हमारी पहली मुलाकात हुई द्रास में इंटरनेट कैफे चलाने वाले जाकिर से। जाकिर की उम्र इस समय करीब 30 वर्ष है। मई 1999 में जाकिर आंठवी क्लास में पढ़ रहे थे। जाकिर ने वनइंडिया को बताया, 'दोपहर का समय था और मैं उस समय स्कूल में था। हम लोगों का लंच खत्म हो चुका था। तभी अचानक हमनें बम धमाकों की आवाज सुनी।
जाकिर ने बताया, "मुझे और मेरे बाकी दोस्तों को तो कुछ पता नहीं चला लेकिन हमारी मैडम ने हमें बताया कि घर जाओ दंगा हो गया है। उस समय तक भी कोई अंदाजा नहीं था कि पाकिस्तान ने हमारे देश पर हमला कर दिया है। रात भर हम देखते थे कि पहाड़ी पर बम बरसते थे। बड़े-बड़े तोप के गोलों को आसानी से देखा जा सकता था। बहुत डर लगता था। सेना ने हमें यहां से काफी दूर टेंटों में शिफ्ट कर दिया था।"
मैं तो डरकर भाग गया था
तोलोलिंग पहाड़ी के नीचे बसे एक गांव में रहने वाले गुलाम कादिर उस समय बस सात साल के थे। आज अपनी आंखों में आइएएस बनने का सपना देखने वाले गुलाम कादिर की मानें तो उन्हें तो आज भी युद्ध का वह दिन याद कर नींद ही नहीं आती है। गुलाम कादिर ने हमें बताया, "मैं तो डरकर घर से भाग गया था। बस दौड़ता जा रहा था। आज सोचता हूं तो रात भी नींद नहीं आती है। मेरी मां तो मुझे देखकर घबरा गई थी कि क्या हो गया है। मैं दौड़ रहा था कि तभी मुझे सेना के एक जवान ने पकड़ा और उन्होंने डाटां भी। उन्होंने मुझसे कहा कि गोली लग गई तो जान चली जाएगी।"
गुलाम कादिर और जाकिर के अलावा यहां पर तमाम ऐसे युवा हैं जिनकी जुबां पर आपको ऐसी कई कहानियां मिल जाएंगी जो कारगिल युद्ध से जुड़ी हुई हैं। यहां के युवाओं की मानें तो उन्होंने अपनी जिंदगी में पहली बार जंग देखी थी और वह अब कोई भी जंग नहीं देखना चाहते हैं।