...तो इसलिए माया ने किया मुलायम के साथ जाने से इंकार?
नयी दिल्ली। पहले लोकसभा चुनाव में करारी हार और ऊपर से प्रदेश की खराब कानून व्यवस्था। उत्तर प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी समाजवादी पार्टी जान चुकी है उन का विधानसभा चुनाव में कमबैक संभव नहीं है। ऐसे में अपना खोया हुआ जनाधार पाने और भारतीय जनता पार्टी को रोकने के लिए सपा अपनी कट्टर प्रतिद्वंद्वी बहुजन समाज पार्टी के साथ हाथ मिलाने तक को तैयार हो गई।
समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने बहुजन समाजवादी पार्टी के सामने दोस्ती का हाथ बढाया है, लेकिन मायावती अवसरवादी नहीं जो मौका के मुताबिक दोस्ती और दुश्मनी का रिश्ता निभाए। मायवाती जिस से एक बाद दुश्मनी करती है उससे निभाती भी हैं। एक बार उन्होंने गठबंधन तोड़ दिया तो फिर तोड़ दिया। फिर चाहे वो भारतीय जनता पार्टी हो या फिर सपा। स्लाइड में देखिए आखिर मायावती ने क्यों नहीं थामा मुलायम का हाथ।
छोड़ दिया तो फिर छोड़ ही दिया
बसपा मुखिया मायावती ने जब भी किसी के साथ गठबंधन तोड़ा तो दोबारा कभी भी उसके साथ गठबंधन नहीं किया। मायावती ने 25 अगस्त 2003 में भाजपा से गठबंधन तोड़ मुख्यमंत्री पद का त्याग कर दिया था। उसके बाद से उन्होंने दोबारा से कभी भी गठबंधन का नहीं सोचा।
माया ने नहीं दिया साथ
1993 में सपा और बसपा ने मिलकर सरकार बनाई और मुलायम मुख्यमंत्री बनें, लेकिन बाद में दोनों पार्टियों के बीच मतभेद हो गया और 2 जून 1995 को बसपा ने सपा से समर्थन वापस ले लिया। जिसके कारण सरकार गिर गई। जिसके बाद इसके बाद उसी दिन सपा के विधायकों और सांसदों की अगुवाई में पार्टी समर्थकों ने लखनऊ स्थित सरकारी गेस्ट हाउस कांड में मायावती और बसपा नेताओं पर हमला कर दिया। मायावती ने कमरे में बंद होकर अपनी जान बचाई थी।
सपा ने खुद के लिए खोदी खाई
मायावती जानती है कि उत्तर प्रदेश में एक के बाद एक हो रहे सांप्रदायिक हिंसा और बलात्कार के मामलों के बाद प्रदेश के अल्पसंख्यक सपा के पास नहीं लौंटेगे। ऐसे में सपा का हाथ थामना उन्हें घाटे ता सौदा लग रहा है।
नहीं थामा मुलायम का हाथ
यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने मुलायम पर एक साथ दोहरा हमला करते हुए कहा कि उनके लिए सत्ता से बड़ा सम्मान है। मायावती ने कहा कि हो सकता है कि मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव के लिए सत्ता पहले हो, लेकिन मेरे लिए सम्मान पहले है।
माया ने कहा था सपा से है जान का खतरा
मायावती ने 2012 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चिट्ठी लिखकर अपनी जान को खतरा बताया था। मायावती ने उस चिट्ठी में लखनऊ गेस्ट हाउस कांड का जिक्र करते हुए कहा था कि सपा सरकार ने ऐसे पुलिस वालों को अहम जिम्मेदारी दी है जिनसे उनकी जान को खतरा है।
दोस्ती का कोई मतलब नहीं
बसपा ने भी कहा था कि उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश भर में सपा सरकार की इतनी बदनामी हो गई है। उसके साथ हाथ मिलाने से फायदा कम घाटा ज्यादा है। इस गठबंधन के बाद उसका अपना दलित वोट बैंक कभी वापस नहीं आ पाएगा। बसपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा था कि पार्टी को भले एक भी सीट न मिले, लेकिन पूरे देश में अकेले ही चुनाव लड़कर पार्टी खुद को मजबूत करेगी।