भारतीय नौसेना के मगरमच्छ भी थे कश्मीर बाढ़ के पानी में!
[ऋचा बाजपेयी] जम्मू-कश्मीर में जिस वक्त भयानक बाढ़ पहाड़ों पर बने मकानों को एक के बाद एक ध्वस्त करने में लगी थी, उस वक्त बाढ़ के पानी में मगरमच्छ भी थे। मगरमच्छों की संख्या एक दो नहीं बल्कि पूरी की पूरी 200 थी, जो दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और विशाखापट्नम से लाकर बाढ़ के पानी में छोड़े गये थे।
आपको यह भी बता दें कि ये मगरमच्छ भारतीय नौसेना के थे, जिनका काम पानी में डूब रहे मासूम लोगों को चबाकर खा जाना नहीं, बल्कि बचाना थ।
ओह.... चौंकिये मत। ये मगर नहीं भारतीय नौसेना के वो जवान थे, जिनका निकनेम मगरमच्छ है। जी हां हम बात कर रहे हैं नेवी के स्पेशलाइज्ड मरीन कमांडोज़ माकोर्स की, जिनका निकनेम मगरमच्छ है।
मार्कोस भारत के उन खास मरीन कमांडोज़ की टीम है, जो झेलम और चेनाब जैसी गहरी नदियां तो दूर, समुद्र तक में गोते लगाकर लोगों की जान बचाने का माददा रखते हैं। चलिये विस्तार से जानते हैं आखिर नौसेना के मार्कोस कमांडो कौन हैं और कैसे काम करते हैं, या फिर कैसे आप इस टीम में शामिल हो सकते हैं।
26/11 में भी थे मार्कोस
मार्कोस कमांडोज को पहले मरीन कमांडो फोर्स यानी एमसीएफ के नाम से भी जाना जाता था। मार्कोस को 26/11 हमले के ऑपरेशन में भी बुलाया गया था। मार्कोस इंडियन नेवी की एक स्पेशल ऑपरेशन यूनिट है।
इसका मकसद कांउटर टेररिज्म, डायरेक्टर एक्शन, किसी जगह का खास निरीक्षण, अनकंवेंशनल वॉरफेयर, होस्टेज रेस्क्यू, पर्सनल रिकवरी और इस तरह के खास ऑपरेशनों को पूरा करना है।
- वर्ष 1971 में भारत और पाकिस्तान के युद्ध के बाद इस बात पर जोर दिया गया कि इंडियन नेवी के पास स्पेशल कमांडो से लैस एक टीम होनी चाहिए।
- मार्कोस का निकनेम 'मगरमच्छ' है। इसकी एनिवर्सिरी वैलेंटाइन डे के दिन यानी 14 फरवरी को होती है और इसका मोटो है, 'द फ्यू द फियरलेस।'
- अप्रैल 1986 में नेवी ने एक मैरीटाइम स्पेशल फोर्स की योजना शुरू की। एक ऐसी फोर्स जो मुश्किल ऑपरेशनों और काउंटर टेररिस्ट ऑपरेशनों को अंजाम दे सकें।
- उस समय नेवी ने कुछ खास अधिकारियों को इंडियन आर्मी और सिक्योरिटी फोर्सेज की ओर से शुरुआती ट्रेनिंग दिलवाई।
- इसके बाद तीन ऑफिसर्स को पहले यूएस नेवी सील्स कमांडो और फिर ब्रिटिश स्पेशल एयर सर्विस के पास एक विशेष कार्यक्रम के तहत ट्रेनिंग के लिए भेजा गया।
आतंकियों को मार गिराने में सक्षम
- इंडियन मैरिटाइम स्पेशल फोर्स की स्थापना फरवरी 1987 में हुई। इसका नाम वर्ष 1991 में आईएमएसएफ से बदलकर एमसीएफ कर दिया।
- कश्मीर बाढ़ में मार्कोस को बुलाये जाने का कारण था ऑपरेशन रक्षक जो झेलम नदी और वूलर झील में 1990 में चलाया गया था।
- मार्कोस की टीम किसी भी हालत में कोई भी ऑपरेशन सफलतापूर्वक करने की क्षमता रखती है।
- कुछ कमांडो आज भी जम्मू-कश्मीर में आर्मी के साथ जुड़े हुए हैं। वे इलाके में काउंटर टेररिज्म में आर्मी का साथ देते हैं।
- 1999 में हुई कारगिल जंग में भी मार्कोस ने भारतीय सेना को काफी मदद की थी।
20 वर्ष तक की आयु का होता है सेलेक्शन
मार्कोस के लिए सेलेक्ट होने वाले कमांडो को कड़ी परीक्षा से गुजरना होता है। मार्कोस के लिए 20 वर्ष की आयु वाले युवकों का सेलेक्शन होता है। अमेरिकी और ब्रिटिश फौजों के साथ ट्रेनिंग दी जाती है।
ढाढ़ीवाला फौज
दुश्मन के बीच मार्कोस का डर इस कदर है कि वह इस स्पेशल फोर्स को 'ढाढ़ीवाला फौज' कहकर बुलाते है क्योंकि अक्सर कमांडोज अपनी पहचान छिपाने के लिए ढाढ़ी रख लेते हैं।
ऑपरेशन ब्लैक टॉरनेडो
वर्ष 2008 में जब मुंबई 26/11 को झेल रही थी उस समय मार्कोस ने ऑपरेशन ब्लैक टॉरनेडो लांच किया। ताज और ट्राइडेंट होटल में छिपे आतंकवादियों को मार कर मुंबई को आतंकियों से मुक्त कराया।
कई तरह की कड़ी प्रक्रियाएं
इनकी ट्रेनिंग रेजीमेंट में एयरबॉर्न ऑपरेशन, कॉम्बेट डाइविंग कोर्सेज, काउंटर टेररिज्म, एंटी-हाइजैकिंग, एंटी-पाइरेसी ऑपरेशन, डायरेक्ट एक्शन, घुसपैठ और इस तरह की कड़ी ट्रेनिंग प्रक्रियायें शामिल होती हैं।
मार्कोस के प्रमुख ऑपरेशन
वर्ष 1987 में श्रीलंका में 'ऑपरेशन पवन,' वर्ष 1988 में मालद्वीप में 'ऑपरेशन कैक्टस,' वर्ष 1991 में 'ऑपरेशन ताशा,' जो कि ऑपरेशन पवन का ही दूसरा रूप था, वर्ष 1992 में लिट्टे के खिलाफ 'ऑपरेशन जबर्दस्त।'