कांग्रेस के लिए कर्नाटक बनेगा ठंडी हवा का झोंका!
बेंगलूर। पांचवे दौर में वोटिंग के आगाज के साथ ही अब सबकी धड़कनें इस बात को लेकर तेज हो गई हैं कि क्या वाकई केंद्र में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन की सरकार आएगी या फिर चुनावों के बाद त्रिशंकु लोकसभा की स्थिति होगी। जहां सर्वे और एग्जिट पोल के नतीजों से साफ है कि चुनाव कांग्रेस पार्टी के लिए कोई भी अच्छी खबर लेकर नहीं आने वाले हैं लेकिन हो सकता है कि कर्नाटक से कांग्रेस को थोड़ी राहत मिल सके।
गुरुवार को कर्नाटक राज्य के मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया और उनके वोट इस बार काफी अहमियत रखने वाले हैं। कर्नाटक में इन चुनावों में देश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है।
जहां कांग्रेस पार्टी कर्नाटक राज्य में सत्ताधारी पार्टी है तो वहीं बीजेपी विपक्ष की भूमिका में है। देश कई हिस्सों में बीजेपी को फायदा मिलता नजर आ रहा है।चुनावों पर बारीक नजर रखने वाले राजनीति के पारखी मानते हैं कि बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला काफी कड़ा है और दोनों ही पार्टियां इस बार यहां की 28 सीटों में से 13-13 सीटें मिलने की उम्मीदें लगा रही हैं।
पहले विधानसभा फिर लोकसभा
के लिए इस बार लोकसभा चुनाव और भी खास हैं क्योंकि वर्ष 2009 के चुनावों में पार्टी को राज्य की 28 सीटों में से 19 सीटें हासिल हुई थीं। इसके साथ ही बीजेपी ने वर्ष 2008 का विधानसभा चुनाव जीतकर दक्षिण के किसी राज्य में अपनी मजबूत पकड़ के संकेत देने शुरू कर दिए थे।
बीजेपी का इतिहास दोहराने की तैयारी
वहीं कांग्रेस को वर्ष 2009 में 28 में से सिर्फ छह सीटें ही हासिल हुई थीं लेकिन यहां पर यह बात गौर करने वाली बीजेपी की ही तरह लोकसभा चुनावों से पहले वर्ष 2013 में हुए विधानसभा चुनावों में जीत हासिल कर चुकी है।
विधानसभा चुनाव के नतीजे
देश के मतदाताओं के बीच भ्रष्टाचार और देश की कमजोर आर्थिक तरक्की के बीच कांग्रेस को विधानसभा चुनावों के नतीजें खुश होने पर मजबूर कर रहे हैं।
क्यों वापस आए पार्टी में येदुरप्पा
वर्ष 2008 में कर्नाटक की सत्ता हासिल करने के बाद बीएस येदुरप्पा को राज्य की जिम्मेदारी सौंपी गई थी लेकिन उनकी वजह से पार्टी की छवि को खासा नुकसान हुआ है। लेकिन पहले पार्टी को छोड़कर जाने वाले और फिर पार्टी में शामिल होने वाले येदुरप्पा पार्टी के लिए जीत सुनिश्चित करने में सहायक हो सकते हैं।
लिंगायत और वोक्कालिगा समूहों पर टिकी
कर्नाटक की राजनीति भी देश के दूसरे हिस्सों की ही तरह जाति आधारित है। यहां पर दो अहम सामाजिक समूह लिंगायत और वोक्कालिगा हैं और इनकी अहमियत हर पार्टी के लिए काफी है।
सबसे बड़ा वोट बैंक
लिंगायत राज्य का सबसे बड़ा वोट बैंक है और राज्य के 46 मिलियन वोटर्स में से 18 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखते हैं।
बीजेपी का फायदा!
येदुरप्पा उत्तर कर्नाटक के लिंगायत समुदाय से आते हैं और यहां यह बात गौर करने वाली है कि वर्ष 2008 में बीजेपी को मिली जीत में उनका खासा योगदान था। इसके बाद उन्होंने वर्ष 2009 में बीजेपी के लिए ज्यादा से ज्यादा सीट सुनिश्चित कर यहां पर उसकी पकड़ को मजबूत किया।
वोक्कालिगा समुदाय भी अहम
वहीं वोक्कालिगा राज्य की कुल आबादी में 14 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखते हैं। उनके ज्यादातर वोट्स यहां की स्थानीय जनता दल सेक्यूलर के बीच बंटे हुए हैं। इस पार्टी को पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने स्थापित किया था। वह और उनके बेटे एचडी कुमारस्वामी राज्य में बतौर मुख्यमंत्री अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
बीजेपी ने लिया रिस्क
कर्नाटक विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर एसएस पाटागुंडी के मुताबिक येदुरप्पा को पार्टी में वापस लाकर पार्टी ने अपने लिए एक सोचा-समझा रिस्क लिया है। पार्टी की कोशिश है कि वह अपने उस वोट बैंक को वापस ला सके जो येदुरप्पा को निकाले जाने की वजह से उनसे रूठ गया था।
कांग्रेस, बीजेपी कौन बनेगा सिंकदर
प्रोफेसर पाटागुंडी के मुताबिक कर्नाटक कांग्रेस के लिए चुनावों के बाद बेहतर नतीजे देने वाला राज्य साबित हो सकता है। पार्टी पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान नतीजों के जरिए वोटर्स पर अपनी छाप छोड़ने की कोशिश कर सकती है। लेकिन वह इस बात से भी इंकार नहीं करते हैं कि दोनों ही पार्टियों के लिए यह चुनाव अच्छे नतीजों वाले साबित हो सकते हैं।
कर्नाटक के वोटर्स खुश कांग्रेस से
वहीं चुनावों से पहले हुए एक सर्वे पर अगर यकीन करें तो 71 प्रतिशत वोटर्स का मानना है कि कांग्रेस पार्टी ने राज्य में अच्छा परफॉर्म किया है। वहीं सिर्फ 24 प्रतिशत वोटर्स ही ऐसे हैं जो पार्टी के प्रदर्शन से नाखुश हैं।
बीजेपी ने किया वोटर्स को निराश
इसी सर्वे में जब वोटर्स से पूछा गया कि क्या कर्नाटक राज्य में कांग्रेस पार्टी की सरकार बीजेपी की सरकार से बेहतर है तो 46 प्रतिशत लोगों ने कांग्रेस के पक्ष में जवाब दिया था। सिर्फ 21 प्रतिशत लोग पार्टी के प्रदर्शन से नाखुश नजर आए।
कर्नाटक से मिल सकती है अच्छी खबर
ऐसे में हो सकता है कि देश के चुनावी नतीजों के बीच कर्नाटक राज्य से पार्टी को अच्छी खबर हासिल हो सकती है और यह खबर पार्टी के लिए किसी हवा के ठंडे झोंके की तरह ही साबित हो सकेगी।