फेसबुक से आपकी पर्सनल चीजें हो सकती हैं लीक!
"एड प्रिफेरेंस" नाम के इस टूल की मदद से यूजर्स वह एड चुन सकते हैं, जिसे वो अपने फेसबुक पेज पर देखना चाहते हैं। साथ ही वे इस टूल की मदद से उन अनचाहे एड को हटा भी सकते हैं, जिसे वो फिर कभी नहीं देखना चाहते। यह एक तरह का रूचि और असर पर आधारित एडर्वटाइजिंग है, जो कई कंपनियों द्वारा पहले से भी किया जा रहा है।
आपकी ब्राउजिंग हैबिट पर होगी एफबी की नजर
फेसबुक ने यह भी साफ किया है कि वह आपके अकांउट के द्वारा सोशल नेटवर्किंग साइट पर आपके हर कदम और ब्राउसिंग हैबिट पर नजर रखेगा। फेसबुक इसे अपने यूजर्स की पसंद जानने और विज्ञापन के डाटा जमा करने में काम लाएगी। गूगल और याहू पहले से ही इस तरह के ट्रैकिंग फीचर का उपयोग कर रहे हैं।
लेकिन फेसबुक का यह फीचर यूजर्स के लिए कितना महफ़ूज होगा। यह चिंता का विषय है। इस फीचर के साथ ही यूजर्स के अकाउंट की प्राइवेसी पर भी प्रश्न चिन्ह उठने की पूरी संभावना है। यानी जो बातें आप पब्लिक नहीं करना चाहते हैं, वो प्राइवेट नहीं रहेंगी। विशेषज्ञों के अनुसार नये टूल की वजह से यजर्स से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां ऐसे डाटाबेस तक पहुंच सकती हैं, जहां नहीं जानी चाहिये। यही नहीं अगर आप फेसबुक लॉगइन करने के बाद जो कुछ भी इंटरनेट पर करेंगे उसकी खबर फेसबुक को रहेगी। यानी अगर आप न्यूज साइट ज्यादा देखते हैं, या पढ़ाई से जुड़ी वेबसाइट देखते हैं या फिर बंद कमरे में पोर्न कंटेंट, इन सबकी सारी जानकारियां फेसबुक के डाटाबेस में सेव हो जायेंगी।
तो क्या करें यूजर्स
विशेषज्ञों के अनुसार इसके लिए जरूरी यह होगा कि यूजर्स अपने प्राइवेसी सेटिंग्स में समय के साथ जरूरी अपडेट और बदलाव करते जाएं। और ऐड प्रिफरेंस को अपना बनाने से पहले सारी नियम एवं शर्तें ध्यान से पढ़ लें।
गौरतलब, फिलहाल फेसबुक, सोशल साइट्स के लिए फायरबॉक्स, सफारी और क्रोम पर उपलब्ध "डू नॉ ट्रैक " सेटिंग का उपयोग नहीं करता है। जो कहीं न कहीं यूजर्स के लिए चिंताजनक बात साबित हो सकती है। वहीं, 2011 में एक यूजर ने फेसबुक पर लॉग आउट के बाद भी अकाउंट ट्रैक करने का दोष लगाया था। हालांकि फेसबुक ने इससे यह कहकर पल्ला झाड़ लिया था कि यह सिर्फ सुरक्षा के मद्देनजर किया जाता है।