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ऑर्डर-ऑर्डर! कृपया अदालतों के साथ भी 'न्याय' किया जाए...

By Mayank
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justice-courts
नई दिल्ली। अब यह आम तथ्य हो चुका है कि भारत की अदालतों पर मुकदमों का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। इसकी वजह से न्याय मिलने में ना सिर्फ देरी हो रही है साथ ही न्याय का असल औचित्व भी सवालों के घेरे में आ रहा है। आइए जानें क्या है असल तस्वीर-

मौजूदा तस्वीर-

  • आजादी के बाद से ही अदालतों और जजों की संख्या आबादी के बढ़ते अनुपात के मुताबिक कभी भी कदमताल नहीं कर पाई।
  • देश की सभी अदालतों में लगभग 3.13 करोड़ मुकदमे लंबित हैं, इनमें से अकेले सुप्रीम कोर्ट में 63 हजार 843 मामलों में फैसले का इंतजार है।
  • देश के 24 हाईकोर्ट में लंबित मामलों की संख्या 44.62 लाख और निचली अदालतों 2.68 करोड़ तक पहुंच गई है, जो कहीं ना कहीं व्यवस्था की खामी की वजह से है।

    किस तरह हो सुधार-


  • न्यायपालिका को स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाने के सभी संवैधानिक उपाय पिछले पांच दशकों में काम नहीं आए हैं, जो नई सरकार के लिए सुधारना चुनौती है।
  • चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा ने एक मामले की सुनवाई के दौरान वकीलों से ही इस समस्या दो-टूक कहा कि अगर न्यायपालिका 24 घंटे सातों दिन काम करे तब भी इस बोझ से छुटकारा मिलना मुमकिन नहीं है।

    रिपोर्ट में उठी है सुधार के मांग-

  • रिपोर्ट के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार 24 हाईकोर्टों में जजों की संख्या 906 होनी चाहिए मगर अभी यह 636 ही है।
  • 270 जजों की कमी को पूरा करने में सरकार सालों से संसाधनों के अभाव की बात कहकर मामले को टालती आ रही है।
  • हाईकोर्ट में मांग के मुताबिक जजों की मौजूदा अधिकतम संख्या में 25 फीसदी का इजाफा करना समय की जरूरत बन गई है।
  • इस प्रकार सभी हाईकोर्ट में ही कम से कम 500 जज तैनात किए जाएं तभी उच्च अदालतों में लंबित मामलों में सक्रिय न्याय की किरण पैदा हो सकती है।
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English summary
Indian courts are facing lack of judges and slow process justice
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