बजट 2014: सिर्फ जनता नहीं, निवेशकों को भी चाहिए 'अच्छे दिन'
एक दौर में हमारी विकास की दर 10 प्रतिशत भी थी, पर कभी अंतर्राष्ट्रीय कारण तो कभी घरेलू राजनैतिक नोंक-झोंक से हम सीढ़़ियां उतरते गए और आज हमने 'नई सरकार' की लिफ्ट से उम्मीद लगाई है।
मैन्यूफेक्चरिंग पर हो ध्यान-
नरेंद्र मोदी सरकार पर विकास दर को और तेज करने की जिम्मेदारी है। मध्यवर्ग के पैमाने में फिट बैठने वाली बीजेपी को इस बार मैनुफैक्चरिंग पर नज़र गढ़ाने की जरूरत है। रेल, रोड जैसे ढांचागत संरचनाओं में भी भारी निवेश की मांग काफी समय से होती रही है। देश के बड़े बाजारों में उत्पादों की बेहतर पहुंच का आभाव हमें पीछे ढकेलता रहा है।
गिरा है निवेशकों का भरोसा-
मनमोहन सिंह के कार्यकाल के आखिरी सालों में विदेशी निवेशकों का भरोसा बुरी तरह टूटा है। वोडाफोन पर करोड़ों के टैक्स जुर्माने के लिए कानून बदलने और दवा के पेटेंट पर खरीददारों के साथ लंबे मुकदमे जैसी घटनाओं से विदेशी निवेशकों में असुरक्षा का दुष्ख्याल मजबूत हुआ है। निवेशकों के लायक माहौल बनाने के लिए अब आर्थिक सुधारों के नए चरण की जरूरत होगी।
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गुजरात मॉडल पूरे देश में हो पाएगा लागू?
जैसा कि भाजपा अक्सर कहती आई है व हम गुजरात में निवेशकों की बेताबी स्वयं अनुभव कर चुके हैं। भारत अभी भी विदेशी निवेशकों के लिए आकर्षक बना हुआ है। मोदी सरकार के साथ जल्द से जल्द संबंध बनाने की पश्चिमी देशों और यहां तक कि चीन के भी प्रयास दिखाते हैं। कारोबार का मकसद मुनाफा होता है, लाभ न दिखे तो कोई भी किसी बाजार में दिलचस्पी नहीं दिखाएगा।
कौन करेगा निवेश-
ऐसा ही माहौल कुछ 'बुलेट ट्रेन' के वादों के बीच भी बन रहा है। राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों को चिंता है कि निवेश होगा कैसे, कौन करेगा, किस शर्त पर करेगा, क्या देखकर करेगा? मोदी सरकार के सामने पहला मौका इस साल के बजट का होगा जब वह अपने इरादे साफ कर पाएगी।
क्या बुनियादी चीजों का जिक्र हो बजट में-
जरूरत ऐसे बजट की है तो आम लोगों को राहत पहुंचाए साथ ही-
- क्रयशक्ति बढ़ाए
- मुद्रास्फीति पर काबू पाए
- नए रोजगारों के सृजन के लिए उद्यमियों को प्रोत्साहन