लोकपाल से जुड़ी वो बातें जो आपको जरूर मालूम होनी चाहिये
नयी दिल्ली। लोकपाल विधेयक राज्यसभा और लोकसभा में पास हो गया है। दोनों सदनों में सहमति से पास होने के बाद अब इसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। चार दशक से लटका लोकपाल बिल महज 30 मिनट में लोकसभा में पास हो गया। राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ ही अब यह कानून बन जाएगा। वहीं लोकपाल से लिए सालों से लड़ रहे अन्ना हजारे ने भी बिल पास होते ही अपना अनशन खत्म कर लिया।
अन्ना लोकपाल बिल पास होने से खुश हैं, तो उनके पुराने साथी अरविंद केजरीवाल इस लोकपाल को जोकपाल कह रहे हैं। उनके मुताबिक सरकार इस विधेयक से जनता को गुमराह कर रही है। उसका कहना है कि जनलोकपाल बिल के लिए अनशन किया गया था, यह वह नहीं है। केजरीवाल के करीबी व आम आदमी पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता कुमार विश्वास ने कहा कि यह लोकपाल बिल देश को लंगड़ा-लूला लोकपाल देगा। इससे सिर्फ मायावती, लालू यादव और मुलायम सिंह यादव जैसे ही लोग खुश हो सकते हैं।
आइए स्लाइडर पर नजर डालते हैं अन्ना के आंदोलन की कुछ तस्वीरों के साथ साथ लोकपाल बिल के संबंध में उन जरूरी बातों पर जो आपको जरूर जाननी चाहिये-
राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति अनिवार्य
असली लोकपाल बिल में राज्यों पर यह बिल स्वयं पर लागू करने या न करने का अधिकार है। जबकि संशोधित लोकपाल में लोकायुक्तों को लोकपाल से अलग किया गया है। इस कानून के लागू होने के साथ ही सभी राज्यों के लिए लोकपाल नियुक्त करना अनिवार्य हो।
सदस्यों का चयन
असली लोकपाल बिल में सदस्यों की चयन कमिटी में प्रधानमंत्री, स्पीकर, लोकसभा में विपक्ष के नेता, मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नियुक्त कोई मौजूदा सुप्रीम कोर्ट जज और राष्ट्रपति द्वारा चुने गए अन्य महत्वपूर्ण न्यायाधीश शामिल होते हैं। जबकि संशोधित लोकपाल बिल में प्रधानमंत्री की रेकमंडेशन पर राष्ट्रपति द्वारा सदस्य मनोनीत किये जाएंगे। अन्य सदस्यों में विपक्ष के नेता, दो सुप्रीम कोर्ट के जजों, दो हाई कोर्ट के जजों, सीईसी, कैग हो सकते हैं।
जांच का दायरा बढ़ा
लोकायुक्त भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर किसी भी मामले की जांच कर सकता है या करवा सकता है अगर शिकायत या मामला भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ हो।
असली लोकपाल में चुप्पी
असली लोकपाल बिल में इस मसले पर कुछ बी नहीं कहा गया है जबकि जनलोकपाल बिल में सीबीआई को लोकपाल के अंतर्गत लाया जाए।
लोक सेवकों की राय
असली लोकपाल बिल में इस मसले पर कुछ नहीं कहा गया जबकि संशोधित लोकपाल बिल में जांच शुरू करने से पहले लोक सेवकों की राय को गैरजरुरी बताया गया है। हलांकि कैबिनेट ने यह मांग ठुकरा दी है।
एनजीओ, धार्मिक संस्थान
असली लोकपाल बिल में इन्हें परिधि के भीतर लाया गया है जबकि जनलोकपाल बिल में चैरिटेबल संस्थाओं को लोकपाल के दायरे में न रखने की बात कही गई है।
लोकपाल के पास पुलिस नहीं
सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी। जबकि जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा बल्कि उसके पास पुलिस फोर्स भी होगी।
अधिकारों में कमी
सरकारी विधेयक में लोकपाल का अधिकार क्षेत्र सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री तक सीमित रहेगा। जबकि जनलोकपाल के दायरे में प्रधानमत्री समेत नेता, अधिकारी, न्यायाधीश सभी आएंगे।
धन की नहीं होगी वापसी
सरकारी लोकपाल विधेयक में दोषी को छह से सात महीने की सजा हो सकती है और घोटाले के धन को वापिस लेने का कोई प्रावधान नहीं है। जबकि जनलोकपाल बिल में कम से कम पाँच साल और अधिकतम उम्र कैद की सजा हो सकती है। साथ ही दोषियों से घोटाले के धन की भरपाई का भी प्रावधान है।
पांच साल तक नहीं लड़ सकेंगे चुनाव
सरकारी लोकपाल विधेयक के मुताबिक पद छोड़ने के पांच साल बाद तक लोकपाल राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, संसद के किसी सदन, किसी राज्य विधानसभा या निगम या पंचायत के रूप में चुनाव नहीं लड़ सकते।