Exclusive: पाक में हालात बिगड़े, भारत चिंतित,‘भारतीय घर में ही रहे’
नई
दिल्ली(विवेक
शुक्ला)पाकिस्तान
के
ताजा
सूरते
हाल
पर
भारत
ने
निगाह
बनाई
हुई
है।
भारत
पड़ोसी
मुल्क
में
अस्थिरता
को
लेकर
चिंतिंत
भी
है।
विदेश
मंत्रालय
के
सूत्रों
ने
बताया
कि
इस्लामाबाद
स्थित
भारतीय
दूतावास
से
वहां
के
बिगड़ते
हालतों
पर
नजर
रखने
के
लिए
कहा
गया
है।
यह भी कहा गया कि वहां पर काम करने वाले भारतीय घर से बाहर निकलने से बचे। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज खुद पाकिस्तान की ताजा-तरीन स्थिति का जायजा ले रही हैं। भारत मानता है कि पाकिस्तान में खराब हालात भारत के लिए भी कोई आदर्श नहीं हो सकते।
इस बीच,जानकारों का कहना है कि कुल मिलाकर प्रधानमंत्री नवाज शरीफ सेना के घेरे में आ चुके हैं। सेना ने किसी विद्रोह की घोषणा नहीं की है। लेकिन इसका अर्थ क्या है?
18 दिनों से तहरीक-ए-इन्साफ के इमरान खान एवं अवामी तहरीक के प्रमुख मौलाना तारिक उल कादरी के इन्कलाब का घेरा राजधानी में पड़ा हुआ है। उनके लोग संसद तक में घुस गए। हालांकि पहली बार पुलिस ने बल प्रयोग किया। इसमें 7 लोगों के मरने एवं 300 से ज्यादा के घायल होने की खबर है। कुल मिलाकर स्थिति नियंत्रण से बाहर जा रही है।
इमरान एवं कादरी दोनों अपने पीछे सेना का हाथ होने से इन्कार करते हैं, पर पाकिस्तान पर नजर रखने वाले जानते हैं कि इस समय सेना अपनी योजना पर काम कर रही है। इसके तहत ही वहां जियो न्यूज चैनल पर हमला हुआ और वह जनता के नाम पर किया गया जिसमें सेना तथा कट्टरपंथी शामिल थे। उसके खिलाफ जुलूस भी सेना की योजना का अंग था।
विदेश मामलों के जानकार अवधेश कुमार कहते हैं कि सेना प्रमुख राहिल शरीफ के साथ नवाज शरीफ के संबंध कभी सामान्य नहीं रहे। हालांकि शरीफ की गलत रणनीतियां भी इसके लिए जिम्मेवार हैं। उनने पीपीपी शासन के दौरान सरकार को न चाहते हुए भी मुशर्रफ को राष्ट्रपति पद से हटाने और उनके द्वारा बरखास्त न्यायाधीशों की पुनर्बहाली के मजबूर किया।
वे स्वयं उसके मार्च में शामिल हुए। इन दो कदमों ने उस सरकार को कमजोर कर दिया एवं यद्यपि उसने इतिहास में पहली बार 5 वर्ष पूरा किया, पर न्यायालय से लेकर सेना एवं प्रशासन में कट्टरपंथियों का वर्चस्व हो गया। मुशर्रफ पर मुकदमे दर मुकदमे और जेल इसी की परिणति थी। नवाज की पार्टी को कट्टरपंथियों का साथ मिला तो इमरान की पार्टी को भी।
शरीफ-
जरदारी
वार्ता
आज
नवाज
उन्हीं
आसिफ
अल
जरदारी
से
विचार
कर
रहे
हैं
जिनके
नेताओं
तक
को
ठीक
से
प्रचार
करने
का
मौका
नहीं
मिला।
लेकिन
समय
नवाज
के
हाथ
से
निकल
रहा
है।
हालांकि
कादरी
महोदय
ने
पूर्व
शासन
के
दौरान
भी
राजधानी
में
घेरा
डाला
था
और
लगता
था
कि
सरकार
अब
गई
तब
गई।
सेना की उसमें भी अपनी भूमिका थी उसे उतना ही चाहिए था सरकार को दबाव में लाने के लिए। कादरी साहब उसके बाद गायब हो गए और फिर अवतरित हुए हैं। पता नहीं आगे क्या होगा। लेकिन पाकिस्तान फिर एक बार अपने सनातन संकट में है।