कारगिल युद्ध के बाद नर्क से स्वर्ग बन गया द्रास
द्रास से ऋचा बाजपेयी। 3 मई 1999 को सरहद पर रहने वाले एक चरवाहे ने भारतीय सेना को खबर दी कि कुछ अजनबी हमारी सीमा में दाखिल हुए हैं। चरवाहे की सूचना पर तुरंत ऐक्शन लेते हुए भारतीय सेना ने पेट्रोलिंग तेज कर दी और पता चला कि पाकिस्तानी सैनिक एलओसी पार कर हिन्दुस्तान में दाखिल हो चुके हैं। देखते ही देखते जंग छिड़ गई।
उस वक्त पहाड़ों के सन्नाटों में पांच भारतीय सैनिकों का कत्ल कर दिया गया और सात दिन बाद देखा कि द्रास, मुशकोह और ककसर में पाकिस्तानी सेना घुस चुकी है। पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ के बारे में पता चलने में काफी देर हुई क्योंकि वीरान पहाड़ों पर न तो कोई जाता था और न कोई आता था, महज कुछ गांव थे, जो दूर अपना जीवन बसर कर रहे थे।
आज उसी द्रास की तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है। राष्ट्रीय राज मार्ग-1 पर शानदार सड़क है, जिस पर आप बेहतरीन नजारों के बीच यात्रा कर सकते हैं। 15 साल पहले जिस गांव में टेलीफोन तक नहीं हुआ करता था, आज वहां डीटीएच सर्विस, इंटरनेट ब्रॉडबैंड से लेकर मोबाइल कनेक्टीविटी तक सब है।
अब नर्क नहीं है द्रास
पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये सरकार ने तमाम योजनाएं चला रखी हैं, ताकि पर्यटकों को दिक्कतें नहीं हों। जिस द्रास में मात्र दो चार प्राइमरी व माध्यमिक स्कूल हुआ करते थे, आज वहां पर कॉलेज तक खुल गये हैं। अस्पताल व अन्य सुविधाएं भी पहुंच गई हैं।
द्रास में साइबर कैफे चलाने वाले जाकिर बताते हैं कि 1999 में यहां के लोग बहुत अकेला और अलग-थलग महसूस करते थे। अब विकास की लहर पहुंची तो जीवन में कुछ कर दिखाने की ललक पैदा होती है।
द्रास में किराने की दुकान चलाने वाले शफीक अहमद बताते हैं कि द्रास में पर्यटन को बढ़ावा देने की वजह से रोजगार के अवसर भी अब बढ़े हैं। चूंकि इसे लद्दाख का गेटवे कहा जाता है, इसलिये पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है।
स्थानीय भाषा में बाल्टिक द्रास का मतलब होता है नर्क! हमने जब यह बात शफीक से कही तो उन्होंने कहा कि पंद्रह साल पहले अगर आप यहां आतीं तो शायद इसे नर्क ही कहते, लेकिन जिस तरह जम्मू-कश्मीर सरकार ने विकास किया है, उसे देखने के बाद इसे आप कभी नर्क नहीं कहेंगे। लेकिन हां हम लोगों को अच्छा लगेगा, अगर सरकार इस जगह को बड़े पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करे।