'समलैंगिकता को गैर आपराधिक करने के विकल्पों पर विचार'
सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को दिए अपने फैसले में दो वयस्कों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंध को आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध करार दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने 2009 में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा समलैंगिक संबंध को गैर आपराधिक करार देने वाले फैसले को पलटते हुए अपना यह फैसला दिया। चिदंबरम ने कहा कि महान्यायवादी से सर्वोच्च न्यायालय को यह बताने के लिए कहकर कि सरकार दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील नहीं करेगी और हम फैसले का समर्थन करते हैं, हमारी पार्टी ने अपना पक्ष इस मुद्दे पर स्पष्ट कर दिया था।
हमारी सरकार और पार्टी के विचार बिल्कुल स्पष्ट हैं। हम दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दी गई व्याख्या को स्वीकार करते हैं। चिदंबरम ने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर पांच न्यायमूर्तियों की पीठ द्वारा सुनवाई की जानी चाहिए थी। चिदंबरम ने आगे कहा कि सर्वोच्च न्यायालय को उपचारात्मक याचिका के जरिए इस मुद्दे पर पुनर्विचार करने के लिए कहने में अभी भी देर नहीं हुई है।