राष्ट्रपति की अपील, जनता से लुभावने वादें ना करे पार्टियां
देश के नाम अपने संबोधन में मुखर्जी ने कहा कि भ्रष्टाचार ऐसा कैंसर है, जो लोकतंत्र को कमजोर करता है। उन्होंने कहा कि भारत की जनता गुस्से में है, क्योंकि उन्हें भ्रष्टाचार तथा राष्ट्रीय संसाधनों की बर्बादी दिखाई दे रही है। अगर सरकारें इन खामियों को दूर नहीं करतीं तो मतदाता उन्हें हटा देंगे। राष्ट्रपति ने कहा कि सार्वजनिक जीवन में पाखंड का बढ़ना भी खतरनाक है। उन्होंने कहा कि चुनाव किसी व्यक्ति को भ्रांतिपूर्ण अवधारणाओं को आजमाने की अनुमति नहीं देते हैं। जो लोग मतदाताओं का भरोसा चाहते हैं उन्हें केवल वही वादा करना चाहिए जिन्हें पूरा करना संभव है। उन्होंने कहा कि सरकार कोई परोपकारी निकाय नहीं है। लोक-लुभावन अराजकता शासन का विकल्प नहीं हो सकती। झूठे वादों की परिणति मोहभंग में होती है जिससे क्रोध भड़कता है तथा इस क्रोध का एक ही स्वाभाविक निशाना होता है सत्ताधारी वर्ग।
उन्होंने कहा कि यह क्रोध केवल तभी शांत होगा जब सरकारें वह परिणाम देंगी जिनके लिए उन्हें चुना गया था अर्थात सामाजिक और आर्थिक प्रगति और कछुए की चाल से नहीं, बल्कि घुडदौड़ के घोड़े की गति से। महत्वाकांक्षी भारतीय युवा उसके भविष्य से विश्वासघात को क्षमा नहीं करेंगे। जो लोग सत्ता में हैं उन्हें अपने और लोगों के बीच भरोसे में कमी को दूर करना होगा। जो लोग राजनीति में हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि हर एक चुनाव के साथ एक चेतावनी जुड़ी होती है कि परिणाम दो अथवा बाहर हो जाओ।
राष्ट्रपति
प्रणव
मुखर्जी
ने
कहा
कि
मैं
निराशावादी
नहीं
हूं,
क्योंकि
मैं
जानता
हूं
कि
लोकतंत्र
में
खुद
में
सुधार
करने
की
विलक्षण
योग्यता
है।
यह
ऐसा
चिकित्सक
है,
जो
खुद
के
घावों
को
भर
सकता
है
और
पिछले
कुछ
वर्षों
की
खंडित
तथा
विवादास्पद
राजनीति
के
बाद
2014
को
घावों
के
भरने
का
वर्ष
होना
चाहिए।
राष्ट्रपति
ने
कहा
कि
साल
2014
हमारे
इतिहास
का
चुनौतीपूर्ण
समय
है।
हमें
राष्ट्रीय
उद्देश्य
तथा
देशभक्ति
के
उस
जज्बे
को
फिर
से
जगाने
की
जरूरत
है,
जो
देश
को
अवनति
से
उठाकर
उसे
वापस
समृद्धि
के
मार्ग
पर
ले
जाए।
युवाओं
को
रोजगार
दें।
वे
गांवों
एवं
शहरों
को
21वीं
सदी
के
स्तर
पर
ले
आएंगे।
उन्हें
एक
मौका
दें
और
आप
उस
भारत
को
देखकर
दंग
रह
जाएंगे
जिसका
निर्माण
करने
में
वे
सक्षम
हैं।