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इन चुनावों में ड्रामा है, ट्रैजेडी है, इमोशन है

By Richa
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lok sabha election
नई दिल्‍ली। बुधवार की सुबह आप पार्टी के एक अहम सदस्‍य डॉक्‍टर कुमार विश्‍वास और पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल की ट्वीट्स को लेकर जो खबरें आईं, उससे पार्टी के भीतर चुनावों को लेकर जारी रस्‍साकशी भी सामने आ गई।

वहीं दूसरी तरफ शिवसेना के अध्‍यक्ष उद्धव ठाकरे ने भी बीजेपी को चेतावनी देने के अंदाज में कहा कि लोकसभा चुनावों को शुरू होने में अब बस कुछ ही दिन बचे हैं। ऐसे में पार्टी अगर नितिन गडकरी और राज ठाकरे के बीच हुई मीटिंग पर अपनी स्थिति को जल्‍द से जल्‍द साफ करे। वहीं बिहार में लालू प्रसाद यादव के करीबी रामकृपाल यादव, जो टिकट न मिलने से नाराज थे, राजद को छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए।

साफ है चुनावों से पहले ही बहुत हलचल मची हुई है और कहीं न कहीं इस बार जनता को कॉमेडी, ट्रैजेडी और इमोशन के कई रंग देखने को मिल रहे हैं। देश में कई साल बाद लोकसभा चुनाव इतने सारे पॉलिटिकल ड्रामे के बीच संपन्‍न होंगे। अभी तो सिर्फ शुरुआत है न जाने सरकार बनने तक और भी कई रंगों को देख्नने के लिए तैयार रहिए।

कुछ लोग बदल रहे हैं रंग

साल 2013 नवंबर में हुए विधाननसभा चुनावों के बाद ही कहीं न कहीं यह बात भी साफ हो गई थी कि यह लोकसभा चुनाव पिछले सभी चुनावों से काफी अलग होंगे। इन चुनावों में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी दिल्‍ली विधानसभा चुनावों के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी। लोगों को पार्टी से कहीं ज्‍यादा उम्‍मीदें भी जगीं लेकिन अब करीब पांच माह बाद हालात पूरी तरह से बदल चुके हैं। पार्टी लोकसभा चुनावों की तैयारी में जी-जान से जुट गई है।

लेकिन इस पार्टी के अंदर जारी तकरार थमने का नाम नहीं ले रही है। अब अरविंद केजरीवाल और कुमार विश्‍वास के बीच तनाव की खबरें आने लगी हैं। बुधवार को अरविंद की एक ट्वीट पर खासा विवाद हुआ तोविश्‍वास को भी अपनी ट्वीट पर सफार्इ देनी पड़ी। अरविंद ने अपनी ट्वीट में लिखा था कि नरेंद्र मोदी को कोसने के बाद कुछ लोग अपना रंग बदलने लगे हैं।

इसके बाद पूरे दिन यह दोनों ही लोग मीडिया को यह कहकर कोसतेनजर आए कि वह पार्टी के अंदर तनाव की बातें फैलाने में लगा है। लेकिन विशेषज्ञ इससे जरा भी इत्‍तेफाक नहीं रख रहे हैं। उनका मानना है कि पार्टी के अंदर जरूर कुछ चल रहा है और पार्टी उन बातों पर पर्दा डालने के लिए ऐसी बातें कर रही हैं।

गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले महात्‍मा गांधी के परपोते राजमोहन गांधी ने भी इस बात पर आपत्ति जताई थी कि पार्टी क्‍यों पोस्‍टरों में उन्‍हें महात्‍मा गांधी का वंशज बताकर परिवारवाद की राजनीति को बढ़ावा दे रही है।

सब कुछ ठीक फिर भी नहीं कुछ ठीक !
महाराष्‍ट्र में शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन पिछले कई चुनावों में मजबूत नजर आया है, लेकिन इस बार इस गठबंधन की जमीन कुछ दरकती नजर आ रही है। कुछ दिनों पहले बीजेपी के अहम नेता नितिन गडकरी ने मनसे के अध्‍यक्ष राज ठाकरे से मुलाकात की थी।

इसके बाद राज की ओर से रविवार को नरेंद्र मोदी को भी प्रधानमंत्री के लिए समर्थन देने का ऐलान कर दिया। उद्धव ने बीजेपी को अल्‍टीमेटम देते हुए कहा कि वह गडकरी पर अपनी स्थिति तुरंत स्‍पष्‍ट कर दें।

बुधवार को नरेंद्र मोदी को साफ करना पड़ा कि बीजेपी और शिवसेना के बीच रिश्‍ते मजबूत हैं और हमेशा रहेंगे।

पार्टियों के अंदर जारी घमासान
कानपुर में समाजवादी पार्टी के टिकट पर अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ने वाले मशहूर कॉमेडियन राजू श्रीवास्‍तव ने पार्टी का टिकट यह कहकर लौटा दिया कि उन्‍हें पार्टी की स्‍थानीय इकाई से सहयोग नहीं मिल रहा और ऐसे में वह पार्टी का टिकट लौटाना ही पसंद करेंगे।

सिर्फ सपा ही क्‍ यों कांग्रेस और बीजेपी के कुछ नेता भी कहीं पार्टी छोड़क र जा रहे हैं तो कहीं कोई चुनाव न लड़ने का ऐलान कर रहा है। बीजेपी में सिर्फ इस बात को लेकर बहस जारी है कि नरेंद्र मोदी के लिए उत्‍तर प्रदेश से कौन अपनी सीट छोड़ेगा।

इस बात को लेकर मुरली मनोहर जोशी और राजनाथ के बीच तनाव की बातों के साथ ही पार्टी के कुछ नेताओं के बीच आपसी मनमुटाव की खबरें आईं।

वहीं विशेषज्ञों की मानें तो कांग्रेस के अंदर भी टिकटों कों लेकर युद्ध का माहौल लेकिन पहले से ही चुनावों के बाद अपनी खराब हालत को भांपकर इसके बारे में कोई जिक्र सामने नहीं आ रहा है।

सोशल मीडिया का असर
साल 2009 में जब लोकसभा चुनाव हुए थे तो उस समय सोशल मीडिया आम जनता के बीच अपना प्रभाव जमाने की कोशिश कर रहा था लेकिन आज हालात एकदम बदल गए हैं। आज न सिर्फ देश की जनता बल्कि खुद राजनेता भी इसके प्रभाव में रंग चुके हैं।

माइक्रो ब्‍लॉगिंग साइट ट्विटर उनकी बात को न सिर्फ जनता के बीच रख रही है बल्कि खुद नेता भी मीडिया में बयान जारी करने के बजाय इसके जरिए लोगों से कनेक्‍ट हो रहे हैं।

नरेंद्र मोदी से लेकर अरविंद केजरीवाल और पीएमओ से लेकर अरुण जेटली तक आज ट्विटर पर हर सेकेंड एक्टिव हैं। समाजशस्‍त्री मानते हैं कि वोटिंग के दौरान वोटर्स इन सारी बातों को दिमाग में रखकर ही किसी नेता को वोट करेगा।

साथ ही कई सारे कारकों के बीच सोशल मीडिया पर किस नेता ने किस तरह से किस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया दी यह भी चुनावी नतीजों पर प्रभाव डालने वाला मुद्दा होगा।

Comments
English summary
With too many twists, turns and controversies, voters are witnessing a new form of political drama.
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