इस साल नरेंद्र मोदी होंगे अमेरिका के वैलेंटाइन
14 या 15 फरवरी को अमेरिका की राजदूत अपने देश का प्रतिनिधित्व करने के लिये गुजरात के मुख्यमंत्री कार्यालय पहुंचेंगी। हाथों में गुलदस्ता होगा और उसके बाद लंबी मुलाकात। यह मुलाकात सिर्फ भाजपा के लिये महत्वपपूर्ण नहीं है, बल्कि कांग्रेस की भी निगाहें इस मुलाकात पर होंगी। खबर है कि यह मुलाकात अमेरिका की उस पहल के अंतर्गत होगी, जिसके अंतर्गत मोदी को अमेरिकी वीजा प्रदान किया जायेगा।
मालूम हो कि गुजरात दंगों के बाद से अमेरिका ने मोदी को वीजा दिये जाने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद से यह कई बार चर्चा का विषय बना, लेकिन मोदी ने कभी भी अपने भाषणों में अमेरिका के इस कदम का न तो विरोध किया और न ही स्वागत। मोदी हमेशा इस मुद्दे पर मौन रहे। खास बात यह है कि मोदी ने कभी भी अमेरिका जाने की इच्छा भी व्यक्त नहीं की। हां विरोधी दलों को इस मुद्दे पर नमक मिर्च लगाते हुए कई बार देखा गया।
क्या परिवर्तन ला सकती है नरेंद्र मोदी और नैन्सी पॉवेल की मुलाकात
बताया जा रहा है कि नैन्सी से मुलाकात के बाद वीजा पर प्रतिबंध हट जायेगा। यदि ऐसा हुआ तो सबसे पहले इस निर्णय का स्वागत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को करना चाहिये, क्योंकि देश के एक मुख्यमंत्री पर से वीजा प्रतिबंध हटेगा। लेकिन अफसोस पीएमओ की तरफ से इस पर कोई बयान नहीं आयेगा। खैर इसमें कोई शक नहीं है कि भाजपा इस मुद्दे को लोकसभा चुनाव में भुनाने की पूरी कोशिश करेगी।
अमेरिका ने क्यों उठाया यह कदम
हाल ही में ब्रिटेन ने भी मोदी के ऊपर लगाये गये 10 साल के प्रतिबंध को हटाया था, जब उसके राजदूत ने मोदी से 50 मिनट की मुलाकात की थी। बाद में मोदी ने यूरोपियन यूनियन के राजदूतों के एक समूह से मुलाकात भी की थी।
अगर आप यह सोच रहे हैं कि अमेरिका ने यह कदम इसलिये उठाया है, क्योंकि मोदी प्रधानमंत्री पद का चुनाव लड़ने जा रहे हैं, तो ऐसा नहीं है। आर्थिक जानकारों की मानें तो अमेरिका कोई भी काम बिना प्रॉफिट के नहीं करता है और चूंकि गुजरात उद्योग के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ चुका है। इसके चलते चीन और जापान ने बाकायदा नरेंद्र मोदी को उच्चस्तरीय प्रोटोकॉल के तहत आमंत्रित किया।
जुलाई 2012 में जापान यात्रा के दौरान मोदी को कैबिनेट रैंक के मंत्री को दिये जाने वाला प्रोटोकॉल दिया गया। उस दौरान मोदी ने जापानी कंपनियों से भी मुलाकात की, जिसमें अहमदाबाद-सूरत-मुंबई-पुणे रूट पर बुलेट ट्रेन चलाने और गुजरात में जापानी इंडस्ट्रियल पार्क बनाने पर चर्चा हुई। इसके अलावा कई और औद्योगिक रिश्तों पर चर्चा हुई, एमओयू साइन हुए और काम आगे बढ़ा। इससे पहले नवंबर 2011 में मोदी चीन की यात्रा पर गये। वहां पर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, ऑटोमोबाइल, इंजीनियरिंग, बंदरगाह विकास तथा सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग पर एमओयू साइन हुए।
अब ऐसे ही एमओयू पर अमेरिका की भी नजर है। अमेरिका को अच्छी तरह पता है कि अगर मोदी प्रधानमंत्री बन गये, तो भारत और अमेरिका के साथ होने वाले आर्थिक लेनदेन में परिवर्तन निश्चित तौर पर आयेंगे, और इसीलिये उसने मोदी को अपना वैलेंटाइन चुना है।