अंदर ही अंदर पक रही सियासी खिचड़ी, मुलायम से मिलने पहुंचे अमर सपा दफ्तर रवाना
लखनऊ।
बीती
5
अगस्त
को
लखनऊ
में
जनेश्वर
मिश्र
स्मृति
समारोह
का
माहौल
जितना
सियासी
था
उतना
ही
बेहद
चौंकाने
वाला
भी।
अमर
सिंह
शेर
पढ़कर
बैठे
तो
उत्तर
प्रदेश
की
रजानीति
में
नए-नए
चर्चे
होने
शुरु
हो
गए।
तब
से
अब
तक
का
माहौल-
तब
से
लेकर
अब
तक
फिज़ाओं
में
यह
चर्चा
फीकी
नहीं
पड़ी
थी
कि
अमर
सिंह
अपने
पुराने
'बॉस'
मुलायम
सिंह
से
मिलने
उनके
आवास
जा
पहुंचे।
इस
पूरी
मुलाकात
के
मायनों
में
हुआ
यह
कि
सपा
अध्यक्ष
ने
अमर
सिंह
को
गाड़ी
में
बैठाया
और
अपने
साथ
पार्टी
दफ्तर
लेकर
रवाना
हो
गए।
विपरीत समय में अमर सिंह ने चार साल पहले 6 जनवरी 2010 को समाजवादी पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था। 2 फरवरी 2010 को सपा प्रमुख मुलायम ने उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
अमर
नहीं
रह
पाए
'अमर'-
अमर
कुछ
दिनों
तक
राजनीतिक
रूप
से
निष्क्रिय
रहे
व
इधर-उधर
पार्टियों
की
शरण
लेते
रहे।
कुछ
ही
दिनों
बाद
उन्होंने
अपनी
पार्टी
बना
ली
और
उसका
नाम
रखा
'राष्ट्रीय
लोक
मंच
पर
यह
पूरी
तरह
खानापूर्ति
ही
साबित
हुआ
व
यह
पार्टी
कागजों
में
ही
सिमट
गई।
पार्टियां
भी
बदलीं
पर
काम
नहीं
चला-
बाद
में
अमर
अपनी
करीबी
नेता
जया
प्रदा
के
साथ
राष्ट्रीय
लोक
दल
में
शामिल
हो
गए।
फतेहपुर
सीकरी
से
बतौर
उम्मीदवार
चुनाव
मैदान
में
भी
उतारा
गया,
लेकिन
वहां
भी
उन्हें
करारी
हार
ही
नसीब
हुई।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस वक्त मुलायम और अमर दोनों का राजनीतिक असर लगभग बराबरी पर है और यही बात उन्हें दोबारा मुलायम सिंह की शरण में वापस ला सकती है।