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क्या है बादल, बरसात और बजट का कनेक्शन?

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बैंगलोर। आज देश का बहुप्रतिक्षित आम बजट आने वाला है। आम से लेकर खास तक को इस बार के बजट से बहुत ज्यादा उम्मीदे हैं। हर किसी को लगता है कि मोदी सरकार का यह पहला बजट उनकी उम्मीदों पर खरा उतरेगा। खैर देश के वित्तमंत्री अरूण जेटली के पिटारे में क्या होगा या क्या नहीं इस बारे में पता बस कुछ घंटों में ही चल जायेगा, इससे पहले हम आपको बजट का एक रोचक पहलू बताते हैं।

<strong>क्या होगा जेटली के पिटारे में...जानने के लिए वनइंडिया पर दिन के 11 बजे से लाइव अपडेट पढ़िेये।</strong>क्या होगा जेटली के पिटारे में...जानने के लिए वनइंडिया पर दिन के 11 बजे से लाइव अपडेट पढ़िेये।

और वो है बारिश का बजट कनेक्शन। आई नेक्स्ट में प्रकाशित लखनऊ विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के अस्सिटेंट प्रोफेसर डॉ. मुकुल श्रीवास्तव ने बारिश और बजट का अनोखा कनेक्शन लोगों के सामने पेश किया है।

डॉ. मुकल श्रीवास्तव ने लिखा है कि इस बार की बारिश कुछ खास है, इस बारिश में कई सालों बाद देश का बजट आ रहा है यानि बारिश का बजट से कनेक्शन होने जा रहा है।

आम तौर पर तो आपके लिए तो बारिश का मौसम छई..छपा...छई करने और चाय पकौड़ी खाने का होता है। वैसे आपको बताता चलूँ बारिश सावन के महीने में ज्यादा होती है और आपने वो गाना तो जरुर सुना होगा "तेरी दो टकियां की नौकरी में मेरा लाखों का सावन जाए" आपको पता है सावन क्यूँ लाखों का है।

अरे भाई देश का बजट मॉनसून पर डिपेंड करता है,यानि बारिश बहुत इम्पोर्टेंट है पर बजट तो तभी बनेगा जब "वी दा पीपल" काम करेंगे जिससे आमदनी होगी और सावन लाखों का नहीं अरबों का होगा और काम तभी होगा जब बारिश होगी क्यूंकि अभी भी हमारी इकोनोमी एग्रीकल्चर बेस्ड है और खेती के लिए पानी की जरुरत होती है। पानी के लिए हम ज्यादातर बारिश पर निर्भर हैं तो ऐसे ही मौसम में चाय पीते हुए मैंने अखबारी सुर्ख़ियों में पढ़ा कि राजस्थान के नागौर जिले में पिछले सत्रह साल से अच्छी बारिश नहीं हुई है तो वहां के हालत खराब हैं, अब आप कहेंगे की इसे यहां लिखने का क्या मतलब?

तो मतलब है आजकल जमाखोरी की चर्चा बहुत हो रही है जमाखोरी की वजह बारिश की कमी है जिससे अनाज और सब्जियों की पैदावार कम होने की आशंका है, जमाखोर इसलिए सब्जियों को मार्केट में नहीं भेज रहे बाद में बढ़ी कीमत पर वो ज्यादा मुनाफा कमाएंगे और हमारा और देश का बजट बिगाड़ेंगे। क्या आपने सोचा कि बारिश के पानी की जमाखोरी हमने की होती तो सब्जियों की जमाखोरी करने वाले कुछ नहीं कर पाते.क्योंकि खेतों की सिंचाई के लिए हमें मॉनसून का मुंह नहीं ताकना पड़ता।

<strong>डॉ.मुकुल श्रीवास्तव के और भी लेख</strong>डॉ.मुकुल श्रीवास्तव के और भी लेख

देश में नागौर जैसे और भी इलाके हैं जहाँ के लोग हमारे आपके जैसे खुशनसीब नहीं हैं और आज भी बारिश के इंतज़ार में है.इसे समझने के लिए पर्यावरणीय नजरिये की जरूरत है. वहां जो हालत है वह मानवीय कुप्रबंधन का परिणाम है.कुछ सालों में नागौर जैसे हालात हर जगह होंगे। जरा सोचिये अगर अलनीनो के चलते मानसून की जरा सी देरी से बिजली और महंगाई का इतना बड़ा संकट खड़ा हुआ है लेकिन परवाह किसे है, लोग तो महंगाई के लिए बजट और सरकार को कोस लेंगे बस।

कहने का मतलब इतना सा है की हमारी हर छोटी छोटी परेशानियों के पीछे के तार भी हमारी छोटी छोटी लापरवाहियों से जुड़े होते हैं, बजट तो आ जाएगा पर बारिश की कमी के बारे में थोडा सीरियसली सोचने की जरुरत है। बजट के बाद पड़ने वाले प्रभावों पर सब अपनी ओपीनियन देंगे पर बारिश का बजट कनेक्शन कौन देखेगा ?

इसे अनदेखी करने की भूल न करें, बारिश कम होने के पीछे के रीजन को समझें और उसमे अपनी रिस्पांसिबिलिटी को समझें। बारिश के पानी को बचाएं क्यूंकि जमीनी पानी का लेवल लगातार गिर रहा है और इस लेवल को बढ़ाने का एक ही तरीका रेन वाटर हार्वेस्टिंग यानि पानी की जमाखोरी की जाए और विश्वास रखिये इस जमाखोरी से देश का बजट सुधरेगा। अब तक आपको समझ में आ गया होगा कि बादल,बरसात और बजट का ये मौसम हम सबके लिए क्या मायने रखता है तो सोच क्या रहे हैं लग जाइए पानी की जमाखोरी में।

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English summary
Amid high expectations from the middle class and and industry, Finance Minister Arun Jaitley present's his maiden budget today. This Budget is indirectly depend upon Mansoon, How, Read this Article.
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