बिसमिल्लाह खान की याद में आज भी रो पड़ते हैं बिरजू महाराज
नई दिल्ली (विवेक शुक्ला)। आज भारत रत्न बिसमिल्लाह खान को हमसे दूर गए आठ साल हो गए हैं। उनका 21 अगस्त, 2006 को निधन हो गया था। पर,उनके करोड़ों चाहने वालों के दिलों में वे बसे हुए हैं।
कथक गुरु बिरजू महाराज बहुत शिद्धत के साथ उस्ताद याद करते हैं। जब भी उस्ताद की याद आती है तो उदास हो जाते बिरजू महाराज। एक हालिया बातचीत में उन्होंने बताया कि उस्ताद उन्हें अनुज मानते थे। जब भी दिल्ली आते उनसे जरूर मिलते। कई मर्तबा बिरजू महाराज के आवास में भी पहुंचते। फिर बातचीत का दौर शुरू होता तो दूर तलक तक जाता। बातचीत में बनारस से लेकर लखनऊ की महक होती थी। खूब हसी-ठिठोली होती थी।
बिरजू महाराज ने बताया कि उस्ताद हमेशा अच्छे मूड में रहते थे। कभी किसी की पीठ पीछे निंदा नहीं करते थे। उन्हें निंदा रस रास नहीं आता था। वे नए कलाकारों को हमेशा प्रोत्साहित करते थे। उनके साथ बैठते थे। बिरजू महाराज ने यह भी बताया कि वे बहुत स्वाभिमानी किस्म के इंसान भी थे।
उस्ताद पर वृतचित्र
बिरजू महाराज को इस बात का भी अफसोस है कि उस्ताद पर ब्रिटेन में रहने वाली भारतीय मूल की फिल्मकार नसरीन मुन्नी कबीर ने वृतचित्र बनाया न कि देश के किसी फिल्मकार ने। महत्वपूर्ण है कि इस वृतचित्र को 'बिसमिल्लाह ऑफ बनारस' नाम दिया गया है| इस फिल्म के निर्माण में बीबीसी ने कबीर का भरपूर साथ दिया है।
कबीर ने 1990 के दशक में उस्ताद को ब्रिटिश म्यूजियम में आयोजित एक कार्यक्रम में सुना था। उन्होंने एक बार कहा था, "उस्ताद अपने संगीत से आत्मा से जुड़े हुए थे। मेरे लिए उस्ताद पर फिल्म बनाने का सपना 20 वर्ष पुराना था।"
कबीर ने यह भी कहा, "मैंने अपनी फिल्म में किसी लाइब्रेरी का सहारा नहीं लिया है। मैंने इस फिल्म में उस्ताद से हुई बातचीत को आधार बनाया है। मेरे लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है। वह एक शानदार इंसान थे। उनसे उनकी जिंदगी के बारे में सुनना बहुत खास था।"