मुलायम की व्यथा कब समझेगी समाजवादी पार्टी
मंत्रीगण बड़े तनाव के साथ बैठक में गए थे। निकले तो सभी के चेहरों पर मुस्कुराहट थी। गाज गिरने की उम्मीद, सभी बच गए। लेकिन खुद मुलायम सिंह ने जो प्रश्न उठाए उनका समाधान तलाशना होगा। ये विपक्षी पार्टी या मीडिया का हमला नहीं था। पार्टी के मुखिया सच्चाई बयान कर रहे थे। बैठक बंद कमरे में हुई थी। मंत्रियों को वहां मोबाइल फोन ले जाना मना था।
आजम खां ने बताया कि लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद समीक्षा बैठक की जा रही थी। सरकार की छवि सुधारने के लिए मंत्रियों को अलग ढंग से काम करने का टारगेट दिया गया। उपचुनाव में सफलता के लिए ठीक से काम करने का भी निर्देश दिया गया।
आजम खां के अधिकृत बयान से इतना तो साफ हुआ कि मुलायम सिंह सरकार की छवि से प्रसन्न नहीं हैं। वह इसमें बड़े सुधार की गुंजाइश देख रहे हैं। लेकिन उनकी चिंता केवल 12 विधानसभा और एक लोकसभा उपचुनाव तक सीमित नहीं हो सकती। इन उपचुनावों से सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
अंतर पड़ना होता तब भी मुलायम इस मंत्रिपरिषद से चुनाव के मद्देनजर चमत्कार की उम्मीद नहीं कर सकते थे। लोकसभा चुनाव परिणाम को भूल नहीं सकते। मुलायम ने अपनी पार्टी के लोगों को जितनी सीट जीतने का टारगेट दिया था, उससे कम विधानसभा सीटों पर ही उसे इस बार बढ़त मिली है।
जाहिर है कि मुलायम की चिंता अब विधानसभा चुनाव के लिए है। दो वर्ष बाद उसकी भी सुगबुगाहट शुरू हो जाएगी। सपा सरकार के सामने छवि सुधारने के लिए यही दो वर्ष हैं। मुलायम की व्यथा को समझा जा सकता है। उन्होंने पार्टी को यहां तक पहुंचाने में बहुत मेहनत की। बहुत संघर्ष किया, बहुत कष्ट झेले। लेकिन सत्ता में आने के बाद पार्टी को न जाने क्या हो जाता है।
वह अपनी लोकप्रियता को कायम रखने में विफल रहती है, इसलिए जहां देश में तीसरी-चौथी बार सफलता दोहराने वाली पार्टियां हैं, वहीं सपा को लगातार दोबारा सफलता दोहराना मुश्किल हो जाएगा।
ऐसे में बैठक में क्या हुआ होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। मुलायम सिंह ने मंत्रियों को आईना दिखाया होगा। वह कहते रहे हैं कि कौन-सा मंत्री क्या करता है, इसकी उन्हें पूरी जानकारी है। कई मंत्रियों को लोकसभा चुनाव में लड़ाया गया था। लेकिन उन्हें अपने विधानसभा क्षेत्र में ही सफलता नहीं मिली।
मुलायम यह बताना चाहते हैं कि सभी मंत्रियों को पार्टी ने बहुत कुछ दिया। बलिया से विधानसभा चुनाव हारने वाले नेता को मुलायम ने कैबिनेट मंत्री बनवाया था। उन्हें विधान परिषद का सदस्य बनाया। लेकिन बलिया में ही वह पार्टी की छवि ठीक करने में सफल नहीं रहे।
मुलायम सिंह यादव इस बात से संतुष्ट नहीं हो सकते कि लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी नंबर दो पर है। बसपा का खाता नहीं खुला। कांग्रेस को दो सीटों से संतोष करना पड़ा। मुलायम की चिंता यह है कि उनके परिजनों के अलावा पार्टी के किसी नेता को सफलता नहीं मिली।
पार्टी का यह स्वरूप भविष्य में मुसीबत बन सकता है। इस तस्वीर ने पार्टी की छवि को सीमित बनाया है। इस छवि से बाहर निकलने का प्रयास करना होगा। मुलायम सिंह यादव इस दिशा में तेजी से प्रयास करना चाहते हैं। मंत्रियों की बैठक में नए सिरे से छवि को बेहतर बनाने का निर्देश इसी क्रम में दिया गया।
सरकार की छवि को बिगाड़ने वाले सुधरेंगे?
क्या मुलायम सिंह यादव को विश्वास है कि इस बार उनके निर्देशों का असर होगा। उन्होंने कहा कि मंत्रियों द्वारा की जा रही ठेकेदारी, अवैध खनन आदि की जानकारी है। क्या सरकार की छवि को बिगाड़ने वाले ऐसे काम अब बंद हो जाएंगे?
पार्टी के अन्य नेता भ्रम बनाए रखना चाहते हैं। चुनाव के समय की बात अलग थी। लेकिन वह आज भी यही कह रहे हैं कि इस सरकार ने जितना कर दिया है, उतना आज तक किसी ने नहीं किया। लेकिन मुलायम सिंह पार्टी के मुखिया हैं। वह इस गलतफहमी में नहीं रहना चाहते। यदि इस सरकार ने अब तक का सर्वाधिक काम किया होता तो पार्टी मुखिया को आज इतना परेशान नहीं होना पड़ता। न सरकार को छवि सुधारने का निर्देश देना पड़ता।
मुलायम सिंह सरकार और पार्टी में बड़ा सुधार चाहते हैं, लेकिन उन्हें अपनी पहले दी गई चेतावनी और हिदायतों पर विचार करना होगा। वह कई अवसरों पर मुख्यमंत्री, उनके मंत्रियों, विधायकों और पार्टी कार्यकर्ताओं को सुधारने की चेतावनी देते रहे हैं। लेकिन उनकी चेतावनी पर कितना ध्यान दिया गया, इस पर गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है। लगभग आधा समय शिकवा-शिकायतों में बीत गया। कानून-व्यवस्था के मामले में भी सरकार की छवि अच्छी नहीं कही जा सकती।
परेशान तो आम जनता होती है
सरकार के मंत्री और अधिकारी छवि के प्रति सजग नहीं हैं। वह कहते हैं कि अन्य प्रदेशों में अधिकार होते हैं। यह कहने का मतलब होता है कि अधिकारी और मंत्री वर्तमान दशा से परम संतुष्ट हैं। ऐसे बयान आमजन को परेशान करते हैं। बात केवल थानों में दर्ज प्राथमिकी तक सीमित नहीं होती। अच्छी कानून-व्यवस्था का प्रत्यक्ष अनुभव आम जनता को होता है।
सत्ता पक्ष को इसी दिशा में काम करना चाहिए। मुलायम सिंह पार्टी कार्यकर्ताओं से दूसरों के साथ सम्मानजनक व्यवहार करने की कई बार नसीहत दे चुके हैं कानून-व्यवस्था के मामले में सत्ता पक्ष के कार्यकर्ताओं का योगदान बहुत महत्वपूर्ण होता है। उनका आचरण संयमित होना चाहिए।
पुलिस उनके खिलाफ कार्रवाई से बचती है। इसका असर कानून व्यवस्था पर पड़ता है। इन समस्याओं का समाधान बड़े पैमानों पर ट्रान्सफर मात्र से नहीं हो सकता। इसके लिए व्यवस्था बदलनी होगी।
व्यवस्था में बदलाव के बिना सरकार की छवि में सुधार नहीं हो सकता। इसके लिए मुलायम सिंह यादव को कठोर रुख अपनाना होगा। उनके पास बड़ा बहुमत है। बड़े फेरबदल और दृढ़ता दिखाने से भी सरकार की स्थिरता पर असर नहीं होगा। इसके बिना छवि सुधार की सलाह कारगर नहीं होगी।
(लेखक चर्चित स्तंभकार हैं) इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।