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आरक्षण की बात की तो लोगों ने नेताओं को किया टारगेट

By Annu Mishra
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नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव करीब आ रहे हैं और राजनीतिक दलों ने आरक्षण के नाम पर फिर से राजनीतिक रोटियां सेकनी शुरू कर दी हैं। हाल ही में सोनिया गांधी ने कहा कि जातिगत आरक्षण जायज हैए तो वहीं मायावती ने अपनी रैली के दौरान दलितों के आरक्षण की बात दोहरायी और मुलायम सिंह यादव ओबीसी व मुसलमानों के आरक्षण को रखने में कभी पीछे नहीं हटते। लेकिन जब मीडिया सवाल करता हैए तो सभी नेता खुद को धर्मनिर्पेक्ष बताने वाले ये दल और जातिवाद से पल्ला झाड़ते दिखते हैं।

भारत एक ऐसा देश है जो विश्व में धर्मनिरपेक्षता का प्रतिनिधित्व करता है। एक ऐसा देश जहाँ समाज में समानता की दुहाई दी जाती है पर क्या यह पूर्ण सत्य है। देश को आज़ाद हुए 66 साल हो चुके हैंए संविधान को लागू हुए 64 साल गुजर चुके पर 64 साल से चला आ रहा जाति आधारित आरक्षण का मुददा जस का तस बना हुआ है। पर क्या आज वास्तव में एक विकसितए स्वस्थ्य और योग्य देश के निर्माण के लिए आरक्षण की जरुरत है। जब भी कभी इस मुददे पर कोई प्रश्न खड़़ा होता हैए तो क्यो उसे दबा दिया जाता है। सरकारी संस्थानों मेंए पदों पर 49.5 फीसदी जाति आधारित आरक्षण है या यूं कहे कि गुण से अधिक प्राथमिकता आरक्षण कोटे को दी जाती है। पर क्या यह उचित है?

जब संविधान भारत के संदर्भ में समानता की बात कहता है सबके समान हक और अवसर की बात करता है तो क्या जरूरत है ऐसे आरक्षण की जो समाज का जाति के आधार पर बंटवारा करता है। क्या जरूरत है ऐसे आरक्षण की जो आज के आधुनिक युग में जहाँ अन्य देश विकास के शिखर पर अपना झण्डा फहरा रहे वहीं हमारे देश में शैक्षिक स्तर पर एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा भी कायम नहीं हो पा रही है। कैसे तरक्की करेगा यह देश जहाँ काबिलियत का आधार गुण न हो कर जाति विशेषए बन गई है। जब हमने इस मुददे पर जनता की राय लेने की कोशिश की तो कुछ परिणाम इस प्रकार आए।

क्या कहते हैं लोग, आइये जानते हैं आरक्षण के ख‍िलाफ और समर्थन में प्रदर्शन की तस्वीरों के साथ स्लाइडर में-

दिल्ली के छात्र परिमल कुमार

दिल्ली के छात्र परिमल कुमार

जिस जातिय आरक्षण से देश की शासन व्यवस्था दलित और अल्पसंख्यक वर्गों के आगे आने का हवाला देती है और जिस प्रकार आरक्षण कोटे में बढोत्तरी हो रही है ऐसे हालात में वो दिन दूर नहीं जब सामान्य वर्ग के लोग दलित और पिछड़ी श्रेणी में समिमलित हो जाएगें।

दिल्ली विश्वविधालय की छात्रा कंचन ठाकुर

दिल्ली विश्वविधालय की छात्रा कंचन ठाकुर

यदि सच में आरक्षण दलित और जनजातीय समुदायों को आगे लाने का हवाला देता है तो 64 साल से लागु जातीय आरक्षण से यह वर्ग अब तक आगे क्यों नहीं आ पाया क्यों आज भी दलित दलित ही है। आखिर सरकार को इस जातीय आरक्षण से दलित और जनजातीय समुदायों की हालत में सुधारने में कितनी सफलता मिली हैण् क्या सच में इस आरक्षण का लाभ इन समूहों तक पहुंच भी रहा है या नहीं।

दिल्ली की छात्रा वसुधा

दिल्ली की छात्रा वसुधा

आरक्षण का आधार जातीयता न हो कर आर्थिक स्थिति होना चाहिये ताकि इससे हर वर्ग के जरुरत मंद लोगों को समान लाभ मिल सके ताकि योग्य उम्मीदवार चाहे वो किसी भी श्रेणी का हो उसे आगे आने का समान अवसर मिल सके।

इंनजीनियरिंग के छात्र रवि मिश्रा

इंनजीनियरिंग के छात्र रवि मिश्रा

क्या गरीब और वांछित तबका सामान्य वर्गो में नहीं है तो यह जातीय आरक्षण उन लोगों के साथ अन्याय नहीं है। इसके कारण कभी एक श्रमिक का कभी एक किसान का बच्चा योग्य होते हुए भी केवल सीट की अनउपलब्धता के कारण कभी उच्च शिक्षा में, कभी किसी सरकारी पद से हाथ धो बैठता है आखिर क्या कसूर है उसका बस यही कि वह सामान्य श्रेणी का है।

दिल्ली के छात्र रत्नेश कुमार

दिल्ली के छात्र रत्नेश कुमार

यह आरक्षण का ही परिणाम है कि देश की उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में कमी आ गई है। आज देश को किसी नई टेक्नोलोजी के लिएए बेहतर इलाज के लिएए उच्च शिक्षा के लिए दूसरे विकसित देशों का मुह ताकना पड़ता है। हैरत की बात तो यह कि इस जातीय आरक्षण के हिमायतियों को भी अपने इलाज के लिए पश्चिमी देशों का सहारा लेना पड़ता है। आखिर ऐसा क्यों कि देश के बडे बडे लोग अपने ही देश के डाक्टरोंए इंनजीनियरों, उच्च शैक्षिक संस्थानों पर भरोसा नहीं कर सकते।

हाउस वाइफ बबिता अग्रवाल

हाउस वाइफ बबिता अग्रवाल

जातीय आरक्षण का खामियाजा सबसे ज्यादा मध्यम वर्ग को भुगतना पडता है क्योंकि दलित वर्ग को आरक्षण का सहारा मिल जाता है और उच्च वर्ग का काम पैसों के जोर पर चल जाता है मगर मध्यम वर्ग के पास न आरक्षण है न पैसों का दबदबा।

पॉलिटेक्निक के छात्र आदित्य झा

पॉलिटेक्निक के छात्र आदित्य झा

जातीय आरक्षण सीधे तौर पर वोट बैंक की राजनीति से जुड़ा है शायद यही कारण है कि जब भी इसकी अस्मिता पर सवाल उठाया जाता है तो उसे अनसुना कर दिया जाता है।

सुरेन्द्र कुमार शर्मा

सुरेन्द्र कुमार शर्मा

जातीय आरक्षण कहीं न कहीं देश की धार्मिक एकता में खटास उत्पन्न कर रहा है यह खटास कहीं जन आक्रोश का रूप न ले ले इससे पहले सरकार को इस मुददे पर कोई कदम उठाना चाहिये।

उज्जवल भविष्य का निर्माण

उज्जवल भविष्य का निर्माण

आज देश को जरुरत है नए कौशल की योग्यता की, एक काबिल और विकसित सोच की जो देश के विकास में लाभकारी सिद्ध हो सके। ऐसे में जातीय आरक्षण इस विकास की राह में रोड़ा न बने इस दिशा में सरकार को प्रयास करने की सख़्त जरुरत है ताकि एक उज्जवल भविष्य का निर्माण हो सके।

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English summary
According to common people the reservation based on caste and religion in all over the country is actually killing the talents. It should be based on economic condition of candidates.
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