अपनी कमजोरी का रोना रो रहे संजय बारू और पारख
इस किताब में पारख ने बताने की कोशिश की है कि कैसे कोयला मंत्रालय के कामकाज को प्रधानमंत्री असहाय प्रधानमंत्री की तरह देखते थे। वह कड़े फैसले लेने में कमजोर थे और साथ ही कोयला मंत्रालय में जारी ब्लैकमेलिंग का जिक्र भी पारख ने अपनी किताब में किया है।
पारख ने अपनी इस किताब में दावा किया है कि अक्सर नेता कई बड़े फैसलों को बदलने और उन्हें प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।
दोनों ही किताबों की रिलीज होने की तारीखों की टाइमिंग को लेकर काफी लोग सवाल उठा रहे हैं तो वहीं वनइंडिया हिंदी के एक पाठक सुधीर वर्मा का मानना है कि दोनों ही किताबों की लांचिंग के पीछे कोई न कोई गहरी साजिश है।
पढ़िए कि क्यों सुधीर वर्मा को लगता है कि बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री के खिलाफ एक षडयंत्र को अंजाम देने की कोशिश की जा रही है।
संपादक की ओर से उद्घोषणा: यह लेख पाठक द्वारा भेजा गया है, जिसमें सिर्फ भाषा और व्याकरण के सुधार किये गये हैं।
सुधीर
वर्मा
यह
सब
भाजपा
की
सोची
समझी
साजिश
है।
आर्थिक
मामलों
की
रिपोर्टिंग
करते-करते
संजय
बारू
अर्थशास्त्री
मनमोहन
सिंह
के
नजदीकी
बने
थे
और
जब
डॉक्टर
सिंह
प्रधानमंत्री
बने,
तब
यह
नौकरी
मांगने
उनके
पास
गए
थे।
उन्होंने
इन्हें
अपना
मीडिया
सलाहकार
बना
लिया
और
इनके
सलाहकार
रहते
मनमोहन
सिंह
की
इमेज
कैसी
बनी
सभी
के
सामने
है।
पूर्व कोयला सचिव पीसी पारख और संजय बारू भाजपा के एजेंट हैं। जो व्यक्ति खुद बेहद स्वार्थी और कमजोर हो और अपने भविष्य के लिए किसी भी हद तक जा सकता हो, वह संजय बारू आज डॉकटर मनमोहन सिंह को कमजोर कह रहा। मनमोहन सिंह की गलती यही थी की उन्होंने बारू नाम के मौकापरस्त पर तरस खाकर उसे प्रधानमंत्री कार्यालय में नौकरी दे दी।
कौन है यह पीसी पारख और संजय बारू। एक थर्ड ग्रेड पत्रकार और दूसरा थर्ड ग्रेड ब्यूरोक्रेट। जो डॉक्टर मनमोहन सिंह जैसे सरल आदमी के करीब पहुंचकर, अपनी मजबूरियों का रोना रोकर , पहले तो उनका सलाहकार बन बैठा और अब उन्हें ही कमजोर कह रहा। इस व्यक्ति पर गोपनीयता के उल्लंघन का मुकदमा चलना चाहिए।
एक ऐसा व्यक्ति जो प्रधानमंत्री का मीडिया सलाहकार बनने के बावजूद उनकी इमेज तक नहीं सुधार सका, एक ऐसा कोयला सचिव, जो खुद पद पर रहते हुए तो कोई पहचान नहीं छोड़ सका, वही आज मनमोहन सिंह पर कमजोर प्रधानमंत्री होने का आरोप लगा रहा। इस व्यक्ति की बातों पर क्या भरोसा किया जाए? कहीं यह किताब भी तो इसने भाजपा से पैसे लेकर तो नहीं लिखा? इसकी जांच होनी जरूरी है।
यह वही संजय बारू और पीसी पारख है, जिसने डॉक्टर मनमोहन सिंह की मिन्नतें कर उनके मीडिया सलाहकार और कोयला सचिव की नौकरी मांगी थी, और इन्होंने ही अपने कार्यकाल में जानबूझकर प्रधानमंत्री कार्यालय की कार्यप्रणाली जनता के बीच ले जाकर मनमोहन सिंह की छवि एक कमजोर नेता की बनने की कोशिश की। इनको तो जेल में होना चाहिए।
संजय बारू और पीसी पारख ऐसे मौकापरस्त का नाम हैं, जिसने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल में उनके मीडिया सलाहकार के तौर पर पहले तो मलाई काटी और जब चुनाव होने को आये तो इसे लगा कि शायद कांग्रेस सत्ता में न आये। फिर यह मनमोहन सिंह के रसूख से विदेश में नौकरी करने चला गए। यही हाल कोयला सचिव रहे पीसी पारख का है, जो भाजपा से पैसे लिखकर मनमोहन सिंह और कांग्रेस को बदनाम करना चाहते हैं।
संजय बारू नाम का जो व्यक्ति भारत के प्रधानमंत्री का मीडिया सलाहकार रहने के बावजूद उनकी इमेज तक न सुधार पाया हो, जिसके सलाहकार रहते हुए प्रधानमंत्री मीडिया से दूर हो गए हों, उस व्यक्ति की किसी भी बात का क्या भरोसा यही हाल कोयला सचिव रहे पीसी पारख का है, जो भाजपा से पैसे लिखकर मनमोहन सिंह और कांग्रेस को बदनाम करना चाहता है. यह लोग तो उस सांप से भी बदतर है, जो बिना किसी कारण के किसी को नहीं डंसता।