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जो बना सकते हैं भारत को फ्रांस उनकी बात मोदी तक नहीं करते

By Ajay
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modi supporters
लखनऊ (अजय मोहन)। लोकसभा चुनाव के इस दौर में सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली सोनिया गांधी वोट पक्के करने के लिये मौलानाओं से मिल रही हैं, तो मुलायम मुस्ल‍िम नेताओं को सपा में शामिल करने में जुटे हुए हैं। वहीं अमित शाह जैसे नेता मतदाताओं से बदला लेने की बात कर रहे हैं। कुछ रैलियों में विकास के बोल सुनाई दे जाते हैं, लेकिन कोई भी प्रमुख दल उस समुदाय की बात नहीं करता, जो भारत को फ्रांस बना सकते हैं।

ये वो लोग हैं, जो जमीनी स्तर पर काम करते हैं, ओह सॉरी जमीनी स्तर पर नहीं बल्क‍ि जमीन पर काम करते हैं। क्योंकि उनकी जिम्मेदारी जमीन साफ करने की ही है। जी हां देश भर के नेता गली मुहल्लों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन इनमें से कितने हैं जो मलिन बस्त‍ियों में जाते हैं और इस समाज के बारे में कुछ करने की बात करते हैं। हर बार चुनाव आते ही नेता मलिन बस्त‍ियों में जाकर तमाम वादे करते हैं, लेकिन क्रियान्वयन होते-होते पांच साल बीत जाते हैं और यह समाज जस का तस रह जाता है।

अगर कानून और सर्वोच्च न्यायालय की बात करें तो सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाध‍िकार आयोग के निर्दशानुसार मैला ढोने वालों के रहने की व्यवस्था व पुनर्वास क्यों नहीं किया गया। प्रथा पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा हुआ है, लेकिन देश का कोई भी कोना इस प्रथा से अछूता नहीं है। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग एवं राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग की संस्तुतियां फाइलों तक सीमित क्यों रह जाते हैं।

राष्ट्रीय स्वच्छकार विभूति योजना बंद पड़ी है। उसकी सुध उत्तर प्रदेश सरकार ने नहीं ली, तो हम केंद्र से क्या उम्मीद करें। निजी क्षेत्र में सफाई कर्मियों को शर्तां पर काम करना पड़ता है। उनके लिये लेबर लॉ का मतलब कुछ नहीं है।

झाड़ू बना चुनाव चिन्ह पर झाड़ू वालों की चिंता नहीं

इस संबंध में लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार व टीवी एंकर संतोष वालमीकि, जो इसी समाज के हैं, से बात की तो उन्होंने कहा कि कोई भी शहर हो, उसका विकास तभी संभव है, जब शहर साफ सुथरा रहेगा और इसके लिये जरूरी है स्वच्छता कर्मचारियों को आर्थ‍िक मजबूती प्रदान करना। देश के तमाम स्वच्छता निकायों में सालों से भर्तियां नहीं हुईं। खास बात यह है कि चुनाव के दौरान नेता जब इस समाज के लोगों से मिलने भी आते हैं, तो महज वोट मांगने के लिये। उनके पास इस समाज के उत्थान के लिये कोई विशेष एजेंडा नहीं होता है।

संतोष वालमीकि कहते हैं कि सबसे ज्यादा अफसोस की बात यह है कि सरकारें व तमाम सारे एनजीओ स्वच्छकार समाज के उत्थान के नाम पर ढेर सारा धन जुटाते हैं, लेकिन जमीन पर काम करने कोई नहीं आता। मेरी समझ में अगर वाकई में आपको देश को फ्रांस जैसा स्वच्छ, साफ और सुंदर बनाना है, इस समाज के लिये अलग से एजेंडा तैयार करना होगा, नहीं तो विकास के सारे दावे अधूरे नजर आयेंगे।

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English summary
This Lok Sabha Election 2014, None of the political party is talking about the people who can make India France.
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