कारगिल के 'शेरशाह' कैप्टन विक्रम बत्रा आज ही के दिन हुए थे शहीद
नई दिल्ली। एक कोल्ड ड्रिंक कंपनी की लाइनें 'ये दिल मांगे मोर,' को अगर सही मायनों में किसी ने पहचान दी तो वह थे कश्मीर राइफल्स के बहादुर सिपाही कैप्टन विक्रम बत्रा।
कारगिल युद्ध के दौरान जिस समय कैप्टन बत्रा प्वाइंट 4875 से दुश्मनों को खदेड़ने की कोशिश में अपने घायल बहादुर सिपाहियों को वापस ला रहे थे, उसी समय वह दुश्मन की गोली का निशाना बन गए।
इस गोली के साथ ही देश का यह बहादुर सैनिक भी शहीद हो गया। सिर्फ 24 वर्ष की आयु में देश के लिए शहीद हो जाने वाले कैप्टन बत्रा का जिक्र आज सिर्फ उनकी बहादुरी के लिए ही नहीं होता है बल्कि जिस तरह से उन्होंने मुश्किल समय में अपने जवानों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया उसकी वजह से भी उनके साथी उनकी तारीफ करते हैं।
कारगिल की प्वाइंट 4875 से दुश्मनों को खदेड़ कर इस पर फिर से भारतीय तिरंगा लहराने वाले बत्रा का जिक्र अक्सर आने वाली पीढ़ियों के बीच होता रहेगा।
आगे की स्लाइड्स में पढ़िए बत्रा की जिंदगी और उनकी बहादुरी से जुड़ी कुछ खास बातें।
मिला परमवीर चक्र
चंडीगढ़ से अपनी पढ़ाई पूरी करने वाले कैप्टन बत्रा ने इंडियन मिलिट्री एकेडमी में दाखिला लिया। यहां से एक लेफ्टिनेंट के तौर पर वह भारतीय सेना के कमीशंड ऑफिसर बने और फिर एक कैप्टन बनकर कारगिल युद्ध में 13 जम्मू एवं कश्मीर राइफल्स का नेतृत्व किया। कारगिल वॉर में उनके कभी न भूलने वाले योगदान के लिए उन्हें सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से अगस्त 1999 को सम्मानित किया गया।
क्यों 'ये दिल मांगे मोर'
20 जून 1999 को कैप्टन बत्रा ने कारगिल की प्वाइंट 5140 से दुश्मनों को खदेड़ने के लिए अभियान छेड़ा और कई घंटों की गोलीबारी के बाद आखिरकार वह अपने मिशन में कामयाब हो गए। इस जीत के बाद जब उनकी प्रतिक्रिया ली गई तो उन्होंने जवाब दिया, 'ये दिल मांगे मोर,' बस यहीं से इन लाइनों को पहचान मिल गई।
घर पर मिली थी प्राथमिक शिक्षा
शहीद बत्रा की मां जय कमल बत्रा एक प्राइमरी स्कूल में टीचर थीं और ऐसे में कैप्टन बत्रा की प्राइमरी शिक्षा घर पर ही हुई थी।
खुद कैप्टन बत्रा ने बताई थी बात
जिस समय कारगिल वॉर चल रहा था कैप्टन बत्रा दुश्मनों के लिए सबसे बड़ी चुनौती में तब्दील हो गए थे। ऐसे में पाकिस्तान की ओर से उनके लिए एक कोडनेम रखा गया और यह कोडनेम कुछ और नहीं बल्कि उनका निकनेम शेरशाह था। इस बात की जानकार खुद कैप्टन बत्रा ने युद्ध के दौरान ही दिए गए एक इंटरव्यू में दी थी।
कारगिल युद्ध में बन गया था विजयी नारा
'ये दिल मांगे मोर,' देखते ही देखते यह लाइनें कारगिल में दुश्मनों के लिए आफत बन गईं और हर तरफ बस 'यह दिल मांगे मोर' ही सुनाई देता था।
कैप्टन बत्रा बना कारगिल हीरो
कारगिल वॉर में 13 जेएके राइफल्स के ऑफिसर कैप्टन विक्रम बत्रा के साथियों की मानें तो कैप्टन बत्रा युद्ध मैदान में रणनीति का एक ऐसा योद्धा था जो अपने दुश्मनों को अपनी चाल से मात दे सकता था। यह कैप्टन बत्रा की अगुवाई में उनकी डेल्टा कंपनी ने कारगिल वॉर के समय कारगिल की प्वाइंट 5140, प्वाइंट 4750 और प्वाइंट 4875 को दुश्मन के कब्जे से छुड़ाने में अहम भूमिका अदा की थी।
कैप्टन बत्रा के आखिरी शब्द
सात जुलाई 1999 को प्वाइंट 4875 पर मौजूद दुश्मनों को कैप्टन बत्रा ने मार गिराया लेकिन इसके साथ ही तड़के भारतीय सेना का यह जाबांज सिपाही को शहादत हासिल हो गई। 'जय माता दी' कैप्टन बत्रा के आखिरी शब्द थे। (फोटो फेसबुक)
जब अभिषेक बच्चन बने कैप्टन बत्रा
जेपी दत्ता की फिल्म एलओसी में बॉलीवुड एक्टर अभिषेक बच्चन ने कैप्टन विक्रम बत्रा का किरदार अदा किया था।