2014 की महाभारत के द्रोणाचार्य हैं राहुल गांधी
इंडियन नेशनल कांग्रेस की वेबसाइट पर अटल बिहारी वाजपेयी के उस बयान का जिक्र किया जा रहा है, जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात दंगों के बाद नरेंद्र मोदी को राजधर्म का पालन करने के लिये कहा था। अब जरा देखिये कांग्रेस ने अटल के उस बयान में कितनी बातें सुनीं- "मुख्यमंत्री के लिये एक ही संदेश है कि वो राजधर्म का पालन करें.. राज धर्म..." इसके बाद कांग्रेस ने अटल जी को सुनना भी उचित नहीं समझा। वो इसलिये क्योंकि अटल बिहारी का पूरा बयान साफ दर्शा रहा है कि नरेंद्र मोदी ने गुजरात दंगों के वक्त राजधर्म का ही पालन किया था।
वह वीडियो आप नीचे देख सकते हैं, जिसमें अटल ने कहा था, "मुख्यमंत्री के लिये एक ही संदेश है कि वो राजधर्म का पालन करें.. राज धर्म... यह शब्द काफी सार्थक है मैं उसी का पालन कर रहा हूं, पालन करने का प्रयास कर रहा हूं। राजा के लिये शासक के लिये प्रजा-प्रजा में भेद नहीं हो सकता। मैं जन्म, जाति, संप्रदाय के आधार पर (मैं भी वही कर रहा हूं) मुझे विश्वास है कि नरेंद्र भाई यही कर रहे हैं। बहुत बहुत धन्यवाद।"
कांग्रेस की वैचारिक दरिद्रता
कांग्रेस देश का सबसे पुराना दल है, जिसे 125 साल हो चुके हैं। आज 2014 के चुनाव के दौरान कांग्रेस को एक भी कांग्रेसी का विचार नहीं मिला, जिसके आधार पर वह जनता के सामने वोट की अपील कर सके। जिस अटल ने हमेशा से जवाहर लाल नेहरू के विचारों का विरोध किया, उस अटल के विचार को वोट मांगने का जरिया बनाना साफ दर्शा रहा है कि कांग्रेस का पतन शुरू हो चुका है।
कांग्रेस क्यों कर रही है यह सब
भाजपा के पीएम उम्मीदवार अपनी हर दूसरी रैली में कह रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी ने अगर वाकई में देश का विकास किया है, या देश की जनता के पैसे को सही दिशा में खर्च किया है, तो जनता को हिसाब क्यों नहीं देती। असल में कांग्रेस से यह सवाल मोदी नहीं हर एक वोटर पूछ रहा है और उसका उत्तर उसके पास नहीं है। कांग्रेस के पास कोई मुद्दा नहीं बचा है, जिस पर वो सीना ठोक कर कह सके कि जनता उसे ही वोट दे।
तो जयप्रकाश नारायण क्यों नहीं
कांग्रेस ने अटल के विचारों को अपनी वेबसाइट पर वोट मांगने के हथियार के रूप में प्रेषित कर डाला। मैं पूछना चाहूंगा कि देश के युवाओं में अलख जगाने वाले जयप्रकाश नारायण के विचारों को आधार बनाकर कांग्रेस अपना प्रचार क्यों नहीं करती। इंदिरा गांधी, नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, राजीव गांधी, वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह या स्वयं सोनिया गांधी के विचार को क्यों आधार नहीं बनाया। राजधर्म के विचार को समझाने के लिये कांग्रेस ने अटल का ही सहारा क्यों लिया? अगर वैचारिक द्वन्द्व के बीच इसका उत्तर खोजें तो जवाब एक ही है- कांग्रेस में वैचारिक दरिद्रता की शुरुआत हो चुकी है।
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