जानिए कैसे रुपया बना आवारा और बेचारा?
बेंगलुरु (अजय मोहन)। देश की मुद्रा रुपया पिछले कुछ दिनों से रोजाना डॉलर के मुकाबले लगातार गिरता जा रहा है। ऐसी गिरावट ऐतिहासिक है, क्योंकि इससे पहले इतनी खराब स्थिति कभी नहीं हुई। रुपए की कीमत जितनी नीचे जायेगी, डॉलर उतना मजबूत होगा और देखते ही देखते महंगाई का बोझ बढ़ता जायेगा। आखिर ऐसे क्या कारण हैं, जिनकी वजह से रुपए आवारा और गरीब बनता चला गया और हम देखते रह गये? यह सवाल हमने दो लोगों से किया, जिनमें एक समाजिक मुद्दों से सरोकार रखते हैं, तो दूसरे आर्थिक मुद्दों के विशेषज्ञ हैं।
सामाजिक मुद्दों से हमेशा जुड़े रहने वाले लखनऊ के श्री जयनारायण पीजी कॉलेज के शिक्षक डा. आलोक चांटिया ने अपनी बात को एक व्यंग के रूप में कहा। यह व्यंग जरूर है, लेकिन इसमें कितनी गहराई छिपी है, इसका अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं। डा. चांटिया ने कहा,"रुपया तो बर्बाद और आवारा हो गया है। रुपए का हाल उसी बर्बाद बच्चे के जैसा है, जो गलत रास्तों पर तब जाता है, जब माँ बाप या घर वाले उसके ऊपर पर्याप्त ध्यान नहीं देते हैं। जब अपने घर वाले देशी के बजाये विदेशी ज्यादा खरीदेंगे और खायेंगे तो रुपये तो बर्बादी के रस्ते पर जायेगा ही।
डा. चांटिया ने कहा कि आज लोगों को दाल चावल खाने से उलटी होती है, घर के दही और घी में हीक आती है, वहीं पिज्जा-बर्गर आप चटकारे ले-लेकर खाते हैं? देशी दरजी के सिले कपडे पहनेंगे तो मग्घा कहलायेंगे, पर वही 200 रुपये की शर्ट जब 1600 रुपये में मॉल से खरीदते हैं तो उन्हें स्टाइलिश कहा जाता है। देश में बनी घड़ी, जूते पहने तो लो-क्लास, विदेशी ब्रांडेड कंपनियों की चीजें पहनीं तो हाई क्लास। घर में टीवी, फ्रीज, मोबाइल, व अन्य वस्तुओं के साथ-साथ विदेशों में बने फर्नीचर तक खरीदने का चलन तेजी से बढ़ गया है, तो रुपया क्यों न नीचे गिरे। डा. चांटिया कहते हैं कि अगर देश के लोग ही अपनी आदतों में सुधार कर लें तो रुपया इतना आवारा हो जायेगा कि इसको कोई जेल (देश) या पुलिस (विश्व बैंक) भी नहीं सुधार पायेगा।
अब अगर आर्थिक कारणों पर नज़र डालें तो बाजार विशेष ने जो 10 कारण गिनाये हैं वो हम स्लाइडर में प्रस्तुत कर रहे हैं-
नीतिगत गतिरोध
नीतिगत मोर्चे पर अस्पष्टता की छवि बनने के कारण भी विदेशी मुद्राओं की काल्पनिक मांग बढ़ रही है। अस्पष्टता का आलम यह है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने एक दिन कहा कि वह तरलता घटाएगा, जबकि एक अन्य दिन उसने कहा कि वह बाजार में एक अरब डॉलर तरलता का संचार करेगा।
विदेशी धन पर निर्भरता
पिछले कई सालों से देश के चालू खाता घाटे का वित्तीयन विदेशी धन से हो रहा है। विदेशी निवेशक द्वारा पैसे निकाले जाने से रुपये में कमजोरी आ रही है।
अमेरिका
में
तेजी
अमेरिका
में
धीमे-धीमे
आर्थिक
स्थिति
ठीक
होने
के
कारण
डॉलर
अन्य
मुद्राओं
के
मुकाबले
मजबूत
हो
रहा
है।
विदेशी पूंजी भंडार का छोटा आकार
देश का विदेशी पूंजी भंडार सिर्फ सात महीने के आयात का खर्च उठा सकता है। हाल के महीने में इसमें गिरावट आई है। भंडार छोटा होने के कारण रिजर्व बैंक आक्रामक रूप से मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।
आर्थिक
विकास
दर
कम
रहना
देश
की
आर्थिक
विकास
दर
2012-13
में
घटकर
पांच
फीसदी
दर्ज
की
गई।
इस
साल
स्थिति
में
अधिक
सुधार
की
उम्मीद
नहीं
है।
विकास
दर
कम
रहने
के
कारण
विदेशी
निवेशक
भारतीय
बाजार
से
पैसा
निकाल
रहे
हैं।
प्रोत्साहन की वापसी
अमेरिका में मंदी के बाद कुछ सालों से जारी वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज के समाप्त किए जाने या कम किए जाने के संकेत से विकासशील अर्थव्यवस्था को मिल रही पूंजी रुक सकती है।
पूंजी
नियंत्रण
भारतीय
रिजर्व
बैंक
और
भारत
सरकार
द्वारा
पूंजी
प्रवाह
को
कुछ
समय
के
लिए
नियंत्रित
करने
के
फैसले
का
बाजार
पर
अनुकूल
प्रभाव
नहीं
पड़ा
है,
क्योंकि
इससे
भारतीय
कंपनियां
विदेशी
निवेश
से
हतोत्साहित
होंगी
और
विदेशी
कंपनियां
भी
भारत
में
पूंजी
लगाने
से
हतोत्साहित
होंगी।
अन्य बाजारों की चाल
रुपये की चाल ब्राजील, इंडोनेशिया, रूस और दक्षिण अफ्रीका जैसी अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं में भी मुद्राओं की चाल के जैसी है।
सटोरिया कारोबार : मुद्रा बाजार में सटोरिया कारोबार का भी रुपये पर दबाव बन रहा है।