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नपुंसकता और बांझपन से जुड़े 40 गंभीर तथ्‍य

By Ajay Mohan
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बेंगलुरु। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के अनुसार भारत में करीब 1.90 करोड़ दंपत्ति इनफरटाइल यानी नपुंसकता के शिकार हैं। वहीं मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के अनुसार भारत में यह संख्‍या 3 करोड़ है। जरा सोचिये उन 3 करोड़ दंपत्ति के बारे में, जिनके मन में कहीं न कहीं संतान नहीं होने का दर्द जरूर रहता है। तीन करोड़ दंपत्ति यानी छह करोड़ लोग, जिनमें पुरुष अथवा महिला में से कोई एक या दोनों मां अथवा पिता बनने में अक्षम हैं।

आप खुद का अच्‍छा स्‍वस्‍थ्‍य देखते हुए यदि यह सोचते हैं कि आप नपुंसकता या बांझपन का शिकार नहीं हो सकते, तो आप गलत हैं। क्‍योंकि वर्तमान लाइफस्‍टाइल धीरे-धीरे आपको इसी अंधेरे में धकेल रही है। हम इस लेख में बात करेंगे महिलाओं में मां और पुरुषों में पिता नहीं बन पाने के कारण, दुनिया के बड़े शोध संस्‍थानों में हुए इस दिशा में शोधों और अंत में आईवीएफ टेक्‍नोलॉजी, जो आज नि:संतान दंपत्ति के लिये वरदान साबित हुई है।

साथ ही हम बात करेंगे स्‍पर्म डोनर की भी, जिसका आईवीएफ टेक्‍नोलॉजी के आने के बाद से चलन तेजी से बढ़ा है। इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन यानी आईवीएफ के बारे में गरीब आदमी आदमी सोच भी नहीं सकता। एक मध्‍यम वर्गीय परिवार पर रोज-मर्रा के खर्च का बोझ उन्‍हें इस तकनीक का लाभ नहीं दिला सकते। वहीं बात अगर गरीब की करें, तो इस तबके में निसंतान महिलाओं को हर रोज ताने सुनने को मिलते हैं। यही नहीं संतान प्राप्ति के उपाय व टोटके भी सबसे ज्‍यादा भारत में ही किये जाते हैं। खैर हम यहां इस दर्द पर मरहम लगाने व उसे कुरेदने नहीं आये हैं। हम आपको रू-ब-रू करायेंगे इस उद्योग से जुड़े उन तथ्‍यों से जिन्‍हें पढ़कर आप भी सोच में पड़ जायेंगे।

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क्‍या कहते है सर्वेक्षण, शोध की रिपोर्ट

क्‍या कहते है सर्वेक्षण, शोध की रिपोर्ट

सबसे पहले हम भारत और अन्‍य देशों की इस दिशा में किये गये सर्वेक्षण, शोध अथवा अध्‍ययन की रिपोर्ट प्रस्‍तुत कर रहे हैं।

भारत में 1.90 करोड़ नपुंसक दंपत्ति

भारत में 1.90 करोड़ नपुंसक दंपत्ति

विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1.90 करोड़ इनफरटाइल यानी नपुंसक दंपत्ति हैं। इनमें से मात्र 0.1 फीसदी ही आईवीएफ से बच्‍चे पैदा करने में सक्षम पाये जाते हैं। वहीं सर्वे कंपनी क्विकरिसर्च के डाटा के अनुसार देश में 3 करोड़ दंपत्ति संतान पैदा नहीं कर सकते हैं।

भारत में 18 फीसदी दंपत्ति शादी की उम्र में ही नपुंसक्‍ता का शिकार हो जाते हैं

भारत में 18 फीसदी दंपत्ति शादी की उम्र में ही नपुंसक्‍ता का शिकार हो जाते हैं

विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 18 फीसदी दंपत्ति शादी की उम्र में ही नपुंसक्‍ता का शिकार हो जाते हैं। इसके पीछे तेजी से हो रहे शहरीकरण, मिलावट की वजह से तमाम रासायनों का शरीर में जाना, तनाव, जरूरत से ज्‍यादा काम, तेज़ लाइफस्‍टाइल और देर से शादी होना बड़े कारण हैं। कैनेडा में दो शोध किये गये पहला 1984 में और दूसरा 2010 में। 1984 में 18 से 29 साल की उम्र में 5 फीसदी कपल इनफर्टाइल पाये गये, वहीं 2010 में यह संख्‍या बढ़कर 13.7 फीसदी हो गई।

पुरुष नपुंसक, महिलाएं बांझ नहीं

पुरुष नपुंसक, महिलाएं बांझ नहीं

भारत में सदियों से देखा जाता है कि जब भी किसी दंपत्ति निसंतान होती है, तो पहले पत्‍नी को दोषी ठहराया जाता है। और उन्‍हें बांझ कहकर ताने दिये जाते हैं। तमाम छोटे शहरों में तो पुरुषों की जांच तक नहीं करवाते और सारा दोष महिला पर मढ़ दिया जाता है। जबकि विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक दशक में महिलाओं की तुलना में पुरुषों में नपुंसकता के मामले बढ़े हैं। लोग इसके उलट ही समझते हैं, क्‍योंकि भारत में पुरुष अपनी जांच करवाने के लिये सामने नहीं आते हैं।

महिलाओं में इनफर्टिलिटी बढ़ने के कारण

महिलाओं में इनफर्टिलिटी बढ़ने के कारण

महिलाओं में इनफर्टिलिटी के तमाम कारण होते हैं। विभिन्‍न सर्वेक्षण, शोध के आधार पर हम यहां कुछ तथ्‍य आपके सामने प्रस्‍तुत कर रहे हैं। ये सामाजिक एवं व्‍यवहारिक कारण हैं, चिकित्‍सीय नहीं।

अनियमित मासिक धर्म

अनियमित मासिक धर्म

यदि किसी स्‍त्री को शादी के पहले से ही या कभी भी अनियमित मासिक धर्म यानी इररेग्‍युलर मेंस्‍ट्युरेशन की समस्‍या है तो वह सावधान हो जायें, क्‍योंकि आगे चलकर यह समस्‍या गर्भाशय में संक्रमण का कारण बन जाती है। गर्भाशय में संक्रमण के कारण कंसीव करने में समस्‍या आती है।

शिफ्ट में काम करना

शिफ्ट में काम करना

आईलैंड ज्‍युविश मेडिकल सेंटर, न्‍यूयॉर्क की रिपोर्ट के अनुसार जो महिलाएं नाइट शिफ्ट या समय-समय पर अलग-अलग शिफ्ट में काम करती हैं, उनमें मासिक धर्म अनियमित हो जाता है, जिसके कारण महिलाओं को कंसीव करने में दिक्‍कत आती है।

80 फीसदी महिलाओं को खतरा

80 फीसदी महिलाओं को खतरा

ब्रिटेन के यूरोपियन सोसाइटी ऑफ ह्यूमन रिप्रोडक्‍शन एंड एंब्रयोलॉजी की रिपोर्ट के अनुसार शिफ्ट में काम करने, धूम्रपान करने, देर से शादी करने व जरूरत से ज्‍यादा वर्क लोड व तनाव लेने वाली महिलाओं में 33 प्रतिशत महिलाओं को अनियमित मासिक धर्म की समस्‍या हो जाती है और उन 33 फीसदी में से 80 फीसदी को कंसीव करने में बेहद समस्‍या आती है। जरूरत से ज्‍यादा स्‍ट्रेस लेने वाली महिलाओं में हार्मोनल चेंज होते हैं, उस वजह से भी बांझपन की शिकार होने का खतरा उनमें रहता है।

जरूरत से ज्‍यादा मेकअप बढ़ाता है बांझपन

जरूरत से ज्‍यादा मेकअप बढ़ाता है बांझपन

यूएस हेल्‍थ एंड न्‍यूट्रीशन सर्वे की रिपोर्ट में पाया गया कि जिन महिलाओं ने जरूरत से ज्‍यादा मेकअप किया वह भी बांझपन का शिकार हुईं। इसके पीछे चिकित्‍सीय कारण वो केमिकल बताये गये जो आम तौर पर क्रीम-पॉवडर में इस्‍तेमाल किये जाते हैं। रिपोर्ट के अनुसार कुछ कंपनियां गोरा बनाने व स्किन निखारने वाली क्रीम में ऐसे केमिकल इस्‍तेमाल किये जाते हैं, जो थॉयरॉइड की समस्‍या पैदा कर देते हैं। और जिन महिलाओं को थॉयराइड होता है, उन्‍हें कंसीव करने में काफी दिक्‍कत आती है। यह रिपोर्ट 2010 में आयी थी।

उम्र के साथ कम होती है प्रेगनेंट होने की संभावना

उम्र के साथ कम होती है प्रेगनेंट होने की संभावना

इंडियन मेडिकल एंड रिसर्च काउंसिल की रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं में उम्र के साथ-साथ प्रेगनेंट होने की संभावना भी कम होती जाती है। 35 से नीचे यह दर 47.6 प्रतिशत होती है, वहीं 35 से 37 साल की उम्र में 38.9 फीसदी, 38 से 40 साल की उम्र में 30.1 और 41 से 42 साल की उम्र में 20.5 फीसदी महिलाएं ही प्रेगनेंट हो पाती हैं।

डाइटिंग

डाइटिंग

किसी महिला को प्रेगनेंट होने के लिए प्रॉपर डाइट जरूरी है। जो महिलाएं ठीक से आहार नहीं लेती हैं या फिर फिगर मेनटेन करने के लिये डाइटिंग करती हैं, उनमें आगे चलकर कंसीव होने में समस्‍या आती है।

धूम्रपान और शराब

धूम्रपान और शराब

जो महिलाएं धूम्रपान करती हैं या शराब का सेवन करती हैं उन्‍हें कंसीव करने में दिक्‍कत आती है। अक्‍सर देखा गया है कि ऐसी महिलाएं अगर कंसीव भी कर लें तो आगे चलकर मिसकैरेज हो जाता है। शराब के सेवन केकारण महिलाओं में फीटल अल्‍कोहल सिंड्रोम बीमारी हो जाती है, जिसकी वजह से महिलाओं के गर्भाशय में अंडे बनने बंद हो जाते हैं।

मोटापा और मधुमेह

मोटापा और मधुमेह

महिलाओं में जरूरत से अधिक मोटापा और मधुमेह भी उन्‍हें प्रेगनेंट होने से रोकता है।

पुरुषों में नपुंसकता का कारण

पुरुषों में नपुंसकता का कारण

आगे हम आपको बतायेंगे कि ऐसे कौन से कारण हैं, जो पुरुषों में नपुंसकता पैदा करते हैं। यहां पर हम चिकित्‍सीय कारणों की बात नहीं करेंगे। सामाजिक और लाइफस्‍टाइल से जुड़े कारण ही दर्शा रहे हैं।

स्‍टीरियॉइड्स लेने से

स्‍टीरियॉइड्स लेने से

यदि आप जिन ज्‍वाइन करके अपनी बॉडी बना रहे हैं और मसल्‍स बनाने के लिये स्‍टीरियाइड्स ले रहे हैं, तो आज ही बंद कर दीजिये क्‍योंकि यह आपको नपुंसक बना सकता है। इससे शुक्राणु का बनना कम हो जाता है।

ड्रग्‍स, शराब, धूम्रपान

ड्रग्‍स, शराब, धूम्रपान

यदि आप ड्रग्‍स, शराब, धूम्रपान या अन्‍य कोई नशा करते हैं तो आपको स्‍पर्म काउंट कम हो जाते हैं। ऐसे में भले ही आप पूरी तरह हष्‍टपुष्‍ट हों, लेकिन शुक्राणुओं की कमी होने की वजह से आप पिता नहीं बन पायेंगे। जरूरत से ज्‍यादा शराब पीने से लीवर संबंधित बीमारियां होती हैं, उससे भी स्‍पर्मकाउंट कम हो जाता है।

कोई भी काम, जिसे लिंग तक अधिक गर्मी पहुंचे

कोई भी काम, जिसे लिंग तक अधिक गर्मी पहुंचे

ऐसा कोई भी काम, जिसे करने से लिंग तक जरूरत से ज्‍यादा गर्मी पहुंचती है, उससे स्‍पर्म काउंट कम हो जाता है और आदमी नपुंसकता का शिकार हो जाता है। अक्‍सर फैक्‍ट्री में भट्ठी के पास काम करने वाले पुरुष नपुंसकता का शिकार हो जाते हैं।

निरंतर लैपटॉप पर काम करने से

निरंतर लैपटॉप पर काम करने से

यही नहीं कॉर्पोरेट सेक्‍टर में काम करने वाले जो लोग जांघों पर लैपटॉप रखकर काम करते हैं वो भी इसके शिकार हो सकते हैं। क्‍योंकि लैपटॉप से निकलने वाली गर्मी आपके यौन अंगों को प्रभावित करती है।

जरूरत से ज्‍यादा मैथुन

जरूरत से ज्‍यादा मैथुन

जो लोग जरूरत से ज्‍यादा मैथुन करते हैं, उनके अंदर भी स्‍पर्म काउंट गिर जाता है और ऐसा होने से उन्‍हें पिता बनने में समस्‍या आती है।

लंबी दूरी तक साइकिल चलाने से

लंबी दूरी तक साइकिल चलाने से

हर रोज लंबी दूरी तक साइकिल चलाने से लिंग के पास का हिस्‍सा गर्म हो जाता है और उस वजह से इरेक्‍टाइल डाइस्‍फंशन यानी लिंग में कड़ा पन नहीं आता है और आप नपुंसकता के शिकार हो जाते हैं।

यौन संक्रमित बीमारियां

यौन संक्रमित बीमारियां

हम आपको बताना चाहेंगे कि सिर्फ एड्स ही यौन संक्रमित बीमारी नहीं होती। इसके अलावा दर्जनों बीमारियां हैं, जो असुरक्षित यौन संबंध स्‍थापित करने से हो जाती हैं। वो भी नपुंसकता का बड़ा कारण होती हैं। कुछ अन्‍य बीमारियां जैसे मम्‍प्‍स, टीबी, ब्रूसिलोसिस, गोनोरिया, टाइफाइड, इंफ्लुएंजा, स्‍मॉलपॉक्‍स, आदि के कारण भी स्‍पर्म काउंट कम हो जाता है।

बिना संभोग वीर्य स्‍खलित होना

बिना संभोग वीर्य स्‍खलित होना

यदि आपको जरूरत से ज्‍यादा स्‍वप्‍नदोष होता है या अपनी पार्टनर के पास जाते ही संभोग से पहले ही वीर्य स्‍खलित हो जाता है, तो आपको तुरंत डॉक्‍टर से सलाह लेनी चाहिये, क्‍योंकि यह भी नपुंसकता का एक कारण हो सकता है। यदि आप संभोग करना चाहते हैं और आपके लिंग में कड़ापन नहीं आ रहा है, पहले ही वीर्य स्‍खलित हो जाता है या फिर संभोग करते वक्‍त तीव्र दर्द होता है, तो तुरंत डॉक्‍टर को दिखायें।

रसायनों के पास रहने से

रसायनों के पास रहने से

बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों में निकलने वाले रासायनिक तत्‍व बेंज़ीन, टोल्‍यूईन, ज़ाइलीन, पेस्‍टीसाइड, हर्बीसाइड्स, ऑर्गैनिक सॉल्‍वेंट, पेंटिंग मटीरियल, आदि भी नपुंसकता का कारण बन सकते हैं।

Facts related to IVF

Facts related to IVF

यहां से हम आपको बतायेंगे टेस्‍ट ट्यूब बेबी और उसे पैदा करने वाली तकनीक से जुड़े तथ्‍यों के बारे में।

पहला टेस्‍ट ट्यूब बेबी

पहला टेस्‍ट ट्यूब बेबी

सबसे पहले हम आपको बताना चाहेंगे कि दुनिया का सबसे पहला टेस्‍ट ट्यूब बेबी 1978 में पैदा हुआ था, जिसका नाम है लुइस ज्‍वॉय ब्राउन।

दूसरा टेस्‍ट ट्यूब बेबी भारत में

दूसरा टेस्‍ट ट्यूब बेबी भारत में

दूसरा टेस्‍ट ट्यूब बेबी भारत में देश के तमाम लोगों को आज भी शायद ही पता होगा कि दुनिया का दूसरा टेस्‍ट ट्यूब बेबी भारत के कोलकाता में 3 अक्‍टूबर 1978 में हुआ था। पहले बेबी के ठीक 67 दिनों के बाद। इस बच्‍चे को को पैदा करने वाले डा. मुक्‍तोपाध्‍याय और ब्रिटिश के वैज्ञानिक रॉबर्ट जी एडवर्ड और पेट्रिक स्‍टीपटो थे।

भारत का पहला टेस्‍ट ट्यूब बेबी बनाने वाले डाक्‍टर की मौत

भारत का पहला टेस्‍ट ट्यूब बेबी बनाने वाले डाक्‍टर की मौत

आपको यह जानकर दु:ख होगा कि जिस डा. मुक्‍तोपाध्‍याय ने देश का पहला टेस्‍ट ट्यूब बेबी दिया, उसकी मौत साधारण नहीं थी। असल में दुनिया के साथ-साथ देश के वैज्ञानिक भी उनकी इस उपलब्धि को मान्‍यता नहीं दे रहे थे। आईवीएफ पर पेपर प्रेजेंट करने के लिये उन्‍हें टोक्‍यो जाने से रोक दिया गया, तो डा. मुक्‍तोपाध्‍याय ने 19 जून 1981 मेंआत्‍महत्‍या कर ली। हालांकि अब उन्‍हें इस चीज की मान्‍यता मिल गई है। अक्‍टूबर 1978 में पैदा हुई टेस्‍ट ट्यूब बेबी का नाम कनुप्रिया अग्रवाल है, जो पुणे में रहती है और इस समय एमबीए कर चुकी है।

अब तक 50 लाख टेस्‍ट ट्यूब बेबी

अब तक 50 लाख टेस्‍ट ट्यूब बेबी

2 जुलाई 2012 तक हुई गणना के अनुसार इस तिथि तक दुनिया भर में 50 लाख टेस्‍ट ट्यूब बेबी पैदा हो चुके थे। इस समय आईवीएफ तकनीक आने के बाद से हर साल टेस्‍ट ट्यूब बेबी पैदा होने की दर बढ़ गई है। वर्तमान मं हर साल करीब साढ़े तीन लाख टेस्‍ट ट्यूब बेबी पैदा होते हैं।

यूरोप से लाये जाते हैं स्‍पर्म

यूरोप से लाये जाते हैं स्‍पर्म

मुंबई के इनफर्टिलिटी स्‍पेशियलिस्‍ट डा. बक्‍शी ने हाल ही में टीओआई को दिये गये साक्षात्‍कार में कहा कि 70 फीसदी दंपत्ति गोरे बच्‍चे की मांग ही करते हैं। मुंबई की इनफर्टिलिटी एक्‍सपर्ट के मुताबिक गोने बच्‍चे पैदा करने के लिये यूरोपीय देशें से शु्क्राणु यानी स्‍पर्म मंगवाये जाते हैं। इसमें सिर्फ वीर्य का आयात करने में ही छह से 30 हजार रुपए तक लग जाते हैं। यही नहीं अब तो फ्रोज़ेन अंडे भी मंगवाये जाने लगे हैं। कई बार यह कीमत 70 हजार रुपए तक चली जाती है।

2010 के बाद से विदेश से आने लगे शुक्राणु

2010 के बाद से विदेश से आने लगे शुक्राणु

फर्टिलिटी क्‍लीनिक के डा. बंकेर ने बताया कि जब से लोग विदेशी स्‍पर्म की डिमांड ज्‍यादा करने लगे हैं, तब से विदेशी शुक्राणुओं के दाम भी बढ़ गये हैं। कस्‍टम विभाग ने जब 2010 में शुक्राणु ले जाते हुए डिब्‍बे को सील किया, उसके बाद से ही सरकार ने एमओयू तैयार करवाकर उसे लागू किया जो प्रत्‍येक हवाई अड्डे व पोरबंदर पर रहता है।

आईवीएफ की कीमत

आईवीएफ की कीमत

भारत की बात करें तो यहां पर आईवीएफ की कीमत 45 से 50 हजार रुपए प्रति साइकिल है। इसमें भी गारंटी नहीं कि पहली साइकिल में ही बच्‍चा हो जाये। यदि दो से तीन साकिल में बच्‍चा हुआ तो तीन से चार लाख रुपए तक खर्च हो जाते हैं।

स्‍पर्म बैंक और डोनर के बीच अनुबंध हस्‍ताक्षरित होने चाहिये

स्‍पर्म बैंक और डोनर के बीच अनुबंध हस्‍ताक्षरित होने चाहिये

स्‍पर्म बैंक और डोनर के बीच एक विशेष समय अंतराल के लिये अनुबंध हस्‍ताक्षरित होने चाहिये। स्‍पर्म डोनेट करने के 48 घंटे पहले तक व्‍यक्ति मैथुन अर्थवा यौन संबंध स्‍थापित नहीं कर सकता। स्‍पर्म बैंक को व्‍यक्ति के 10 सैम्‍पल लेने अनिवार्य होते हैं, जो वीर्य की पूरी तरह जांच-पड़ताल करते हैं कि कहीं उसे कोई अनुवांशिक बीमारी तो नहीं। साथ ही वीर्य की तरल्‍ता की भी जांच की जाती है। कोई भी स्‍पर्म बैंक छह महीने से ज्‍यादा समय तक शुक्राणु नहीं रख सकता।

स्‍पर्म डोनर को एक ट्रिप के एक से दो हजार रुपए तक मिलते हैं

स्‍पर्म डोनर को एक ट्रिप के एक से दो हजार रुपए तक मिलते हैं

स्‍पर्म डोनर को एक ट्रिप के एक से दो हजार रुपए तक मिलते हैं। यानी साल में वह 40 से 50 हजार रुपए तक कमा सकता है। स्‍पर्म बैंक को मास्‍टरबेशन के लिये प्राइवेट रूम बनाना अनिवार्य होता है। कोई भी बैंक डोनर की पहचान का खुलासा नहीं कर सकता।

आईसीएमआर की गाइडलाइंस

आईसीएमआर की गाइडलाइंस

आईवीएफ के लिये कोई भी दंपत्ति रिश्‍तेदार या पति-पत्‍नी के दोस्‍त के शुक्राणु नहीं ले सकते हैं। आईवीएफ से गुजरने वाले दंपत्ति को डोनर की पहचान बताना कानूनन अपराध है। दंपत्ति को डोनर की त्‍वचा का रंग, लंबाई, वजन, व्‍यवसाय, फैमिली बैकग्राउंड, आदि जानने का पूरा अधिकार है।

आपके अधिकार

आपके अधिकार

साथ ही यह भी जानने का पूरा अधिकार है कि उसे कहीं कोई बीमारी तो नहीं थी, इसके लिये वो डीएनए फिंगरप्रिंट तक की मांग कर सकते हैं। डोनर की पहचान छिपाना क्‍लीनिक और स्‍पर्म बैंक की जिम्‍मेदारी होती है। आईसीएमआर के सख्‍त नियम के अनुसार स्‍पर्म डोनर की उम्र 21 से 45 वर्ष के बीच में ही होनी चाहिये।

देशों में आईवीएफ ट्रीटमेंट पूरी तरह नि:शुल्‍क है

देशों में आईवीएफ ट्रीटमेंट पूरी तरह नि:शुल्‍क है

कई देशों में आईवीएफ ट्रीटमेंट पूरी तरह नि:शुल्‍क है। ऐसे देशों में बेल्जियम, हॉलैंड, इजरायल और कुछ स्‍कैंडिनेवियन देश इनमें शामिल हैं। जहां आईवीएफ ट्रीटमेंट का खर्च सरकार उठाती है। वहीं यूनाइटेड किंगडम में पहली दो-तीन साइकिल का खर्च सरकार देती है। इन देशों में यह सुविधा वहीं के नागरिकों को दी जाती है।

भारत लोगों के लिये इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट के लिये पसंदीदा गंतव्‍य बन गया है

भारत लोगों के लिये इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट के लिये पसंदीदा गंतव्‍य बन गया है

भारत दुनिया भर के लोगों के लिये इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट के लिये पसंदीदा गंतव्‍य बन गया है, क्‍योंकि यहां पर विश्‍वस्‍तरीय तकनीक मौजूद है और इलाज भी कम पैसे में हो जाता है।

फर्जी क्‍लीनिक भी चल रही हैं

फर्जी क्‍लीनिक भी चल रही हैं

यदि आप आईवीएफ के माध्‍यम से बच्‍चा चाहते हैं, तो किसी भी क्‍लीनिक में जाने से पहले यह पक्‍का कर लें कि वह मेडिकल काउंसिल से मान्‍यता प्राप्‍त है या नहीं। आप उस क्‍लीनिक का रिकगनिशन सर्टिफिकेट भी मांग सकते हैं, यह आपका अधिकार है। ऐसा इसलिये क्‍योंकि भारत में तमाम लोगों ने इसे ज्‍यादा पैसा कमाने का जरिया बना लिया है और दंपत्तियों को गलत जानकारियां देकर पैसा कमाने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोगों से बचना बेहद जरूरी है, क्‍योंकि यह आपके जीवन का सवाल है।

भारत में 1,200 आईवीएफ क्‍लीनिक

भारत में 1,200 आईवीएफ क्‍लीनिक

आईसीएमआर की रिपोर्ट के अनुसार देश भर में करीब 1200 आईवीएफ क्‍लीनिक हैं, जिनमें से 504 क्‍लीनिक के रूप में काम करती हैं और बाकी स्‍पर्म बैंक के रूप में। इनमें से भी मात्र 150 क्‍लीनिक ही हैं, जो आईसीएमआर से मान्‍यता प्राप्‍त हैं।

750 करोड़ का उद्योग

750 करोड़ का उद्योग

आईवीएफ, सरोगेसी और स्‍पर्म बैंक सभी को मिलाकर भारत में चल रहे इस उद्योग की कीमत 750 करोड़ रुपए से अधिक है। इसमें 7 प्रतिशत यानी 54 करोड़ रुपए सालाना तो सरोगेसी पर ही खर्च होता है। सरोगेसी यानी किराये पर कोख लेने पर।

Comments
English summary
Infertility refers to the biological inability of a person to contribute to conception. Rise in cases of infertility in India is worrying doctors. Here are 40 serious facts about infertility.
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