बिहार-झारखंड में लगता है 'भूतों का मेला'
पटना (मनोज पाठक)। आज तक आपने घोड़ों का मेला, बैलों का मेला, यहां तक कि सांपों के मेले के बारे में भी सुना होगा, लेकिन बिहार और झारखंड में कुछ ऐसे जगहें भी हैं, जहां 'भूतों का मेला' लगता है। भले ही आज के वैज्ञानिक युग में इन बातों को कई लोग नकार रहे हों, लेकिन झारखंड के पलामू जिले के हैदरनगर में, बिहार के कैमूर जिले के हरसुब्रह्म स्थान पर और औरंगाबद के महुआधाम स्थान पर भूतों के मेले में सैकड़ों लोग नवरात्र के मौके पर भूत-प्रेत की बाधा से मुक्ति के लिए पहुंचते हैं। यही कारण है कि लोगों ने इन स्थानों पर चैत्र और शारदीय नवरात्र को लगने वाले मेले को भूत मेला नाम दे दिया है।
नवरात्र
के
मौके
पर
अंधविश्वास
संग
आस्था
का
बाजार
सज
जाता
है
और
भूत
भगाने
का
खेल
चलता
रहता
है।
ऐसे
तो
साल
भर
इन
स्थानों
पर
श्रद्धालु
आते
हैं,
लेकिन
नवरात्र
के
मौके
पर
प्रेतबाधा
से
मुक्ति
की
आस
लिए
प्रतिदन
यहां
उत्तर
प्रदेश,
झारखंड,
बिहार,
मध्य
प्रदेश
और
छत्तीसगढ़
के
लोग
पहुंचते
रहते
हैं।
हैदरनगर स्थित देवी मां के मंदिर में करीब दो किलोमीटर की परिधि में लगने वाले इस मेले में भूत-प्रेत की बाधा से मुक्ति दिलाने में लगे ओझाओं की मानें तो प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्तियों के शरीर से भूत उतार दिया जाता है और मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित एक पीपल के पेड़ से कील के सहारे उसे बांध दिया जाता है। मंदिर के पुजारी त्यागी जी ने बताया कि मां की शक्ति और कृपा के सहारे ही यहां के ओझा प्रेतात्मा से पीड़ित लोगों को प्रेत बाधा से मुक्ति दे पाते हैं। आज लोग विज्ञान की बात भले ही कर लें, लेकिन लोगों को यहां आने से फायदा तो मिल ही रहा है, तभी तो मां के दरबार में लोगों की भीड़ उमड़ रही है।
खाली मैदान में महिलाएं सुमरति (मां का गीत) गाती हैं तो कई महिलाओं को ओझा बाल पकड़ कर उनके शरीर से प्रेत बाधा की मुक्ति का प्रयास करते रहते हैं। कई महिलाएं झूम रही होती हैं तो कई भाग रही होती हैं, जिन्हें ओझा पकड़कर बिठाए हुए होते हैं। इस दौरान कई पीड़ित लोग तरह-तरह की बातें भी स्वीकार करते हैं। कोई खुद को किसी गांव का भूत बताता है तो कोई स्वयं को किसी अन्य गांव का प्रेत बताता है।
पुजारी त्यागी ने कहा कि शाम होते ही मां के पट बंद हो जाते हैं, जिस कारण भूत खेलाने का काम भी ओझाओं द्वारा बंद कर दिया जाता है। प्रेत बाधा से पीड़ित औरंगाबाद के नोखा के रहने वाला आकाशदीप की उम्र केवल 15 वर्ष है, लेकिन वह सिगरेट पी रहा है। उसे प्रेतात्मा से मुक्ति दिलाने के प्रयास में लगे दीनदयाल ओझा ने कहा कि वास्तव में वह बच्चा सिगरेट नहीं पी रहा, बल्कि उस पर आई प्रेतात्मा उससे ऐसा करवा रही है।
उधर, सासाराम के राजवंश सिंह ने कहा कि वह कई मरीजों को यहां लाकर प्रेतात्मा से उसे मुक्ति दिलवा चुके हैं। इसे सिद्धस्थल करार देते हुए उन्होंने कहा कि इस स्थान की सत्यता आज भी बरकरार है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।