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शबाना जैसी शिलाएँ ही हैं मोदी की सफलता की सीढ़ी

By कन्हैया कोष्टी
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अहमदाबाद। शबाना आजमी और नरेन्द्र मोदी। एक अभिनेत्री, बेहतरीन अदाकारा, उत्कृष्ट सामाजिक कार्यकर्ता और दूसरा राजनेता, विवादास्पद, फिर भी अति लोकप्रिय व्यक्ति। दोनों में अपने-अपने क्षेत्रों के उत्कृष्ट व्यक्तित्व। अब सवाल यह उठता है कि इनका आपस में क्या वास्ता हो सकता है? एक अभिनेत्री और एक राजनेता के रूप में तो शायद इनका कोई वास्ता नहीं हो सकता, परंतु जब दोनों की भूमिकाएँ बदलती हैं, तो वास्ता अपने आप खड़ा हो जाता है। एक सामाजिक कार्यकर्ता की भूमिका में शबाना आजमी का देश के एक सबसे लोकप्रिय, परंतु एक विवादास्पद राजनेता की भूमिका वाले नरेन्द्र मोदी से जरूर वास्ता हो सकता है। यह बात और है कि नरेन्द्र मोदी ने अपने राजनीतिक जीवन में शायद ही कभी शबाना का नाम लिया होगा, परंतु एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में शबाना का गुस्सा उनकी तरह की सोच रखने वालों की दृष्टि में ज़ायज भी है।

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सर्वविदित है कि शबाना आजमी ने दो दिन पहले ही एक बयान दिया कि नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री नहीं बनने देना चाहिए, क्योंकि उनके हाथ 2002 के दंगों में मारे गए लोगों के खून से रंगे हुए हैं। और आपको यह भी बता दें कि बॉलीवुड की दुनिया में भी मोदी को कोसने वालीं शबाना पहली शख्स नहीं हैं। जावेद अख्तर से लेकर महेश भट्ट तक कई ऐसी हस्तियाँ हैं, तो आमिर खान भी नर्मदा बांध मुद्दे पर मेधा पाटकर का समर्थन कर मोदी के प्रति अपना अपरोक्ष विरोध व्यक्त कर चुके हैं।

लोकप्रियता ही लोकतंत्र में योग्यता का सर्वोच्च मानदंड
वैसे शबाना जैसी सोच रखने वालों की देश में कोई कमी नहीं है और न ही नरेन्द्र मोदी का समर्थन करने वालों की संख्या शबाना सरीखी सोच रखने वालों के बयानों से कम होने वाली है। हालाँकि लोकतंत्र में लोकप्रियता ही किसी भी नेता की काबिलियत का सबसे ऊँचा मानदंड होता है और लोकप्रियता के लिए सीढ़ी की जरूरत होती है।

अब बात जब सीढ़ी की निकली है, तो नरेन्द्र मोदी का एक बयान फिर ताजा किए देते हैं। 17 सितम्बर से 19 सितम्बर, 2011 के दौरान अपने सद्भावना उपवास के वक्त मोदी ने यह बयान दिया था। मोदी ने कहा था, ‘‘लोग जो पत्थर फेंकते रहे, हम उन्हें जमा करते रहे और, उन्हीं से सीढ़ी बनाकर गुजरात को आगे बढ़ाया।''

सलाया बना पराकाष्ठा
मोदी ने यह बयान आज से ढाई साल पहले दिया था। उस समय तक भी उन पर पत्थरों की भारी बरसात होती रही थी और तब से लेकर शबाना आजमी तक यह शिलावर्षा आज भी जारी है, परंतु मोदी का यह बयान हर दिन, हर महीने, हर साल, हर पाँच साल और पिछले 11 वर्षों से लगातार सही सिद्ध होता रहा है और सिद्धता की इस पराकाष्ठा का परिचायक बना सलाया।

इस सलाया का नाम शायद 12 फरवरी, 2013 से पहले गुजरात से बाहर कम ही लोगों ने सुना होगा। वैसे इसे जब जामसलाया के रूप में कहा जाता है, तो थोड़ा स्पष्ट हो जाता है कि यह जामनगर जिले का हिस्सा है और जामनर गुजरात में है। खंभाळिया तहसील में स्थित सलाया एक महत्वपूर्ण बंदरगाही नगर है और यहाँ ज्यादातर लोग मछुआरे हैं। यह तो एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण से सभी जानते होंगे, लेकिन 12 फरवरी, 2013 को अचानक पूरे देश और यहाँ तक की दुनिया के कई हिस्सों तक सलाया की एक नई पहचान सामने आई। अचानक लोगों को पता चला कि सलाया में रहने वाले 90 प्रतिशत लोग मुसलमान हैं।

जब 12 फरवरी, 2013 की सुबह यहाँ के लोगों द्वारा दो दिन दिए गए जनादेश का खुलासा हुआ, तो देश और दुनिया दंग रह गई। गुजरात नहीं...। गुजरात के लिए यह कोई आश्चर्य की बात थी ही नहीं। सलाया नगर पालिका के चुनाव के लिए 10 फरवरी को पड़े मतों की गिनती 12 फरवरी को शुरू हुई और यहाँ की सभी 27 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी को जीत हासिल हुई। यह मोदी के हाथों को खून से सना बताने वालों के मुँह पर तमाचा था। उन लोगों के लिए भी सबक था, जो तीन माह पहले गुजरात विधानसभा चुनाव में किसी एक भी मुस्लिम उम्मीदवार न बनाए जाने के लिए भाजपा और नरेन्द्र मोदी की सद्भावना पर सवाल उठा रहे थे, क्योंकि सलाया में जीतने वाले सारे भाजपा उम्मीदवार भी मुसलमान ही थे। यह भी स्वाभाविक है कि जहाँ 90 प्रतिशत मुसलमान आबादी है, वहाँ कांग्रेस सहित अन्य दलों ने भी मुस्लिम ही उम्मीदवार उतारे थे। इसके बावजूद वहाँ की जनता ने भाजपा उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान किया।

शबाना अतीत, सलाया भविष्य
शबाना आजमी ने यह बयान भी 12 फरवरी के बाद ही दिया है कि मोदी के हाथ खून से रंगे हुए हैं। शबाना की सोच अतीत से घिरी हुई है, जबकि सलाया की सोच उज्जवल भविष्य की किरण को दर्शाती है। गुजरात बहुत आगे निकल चुका है। गुजरात का जनादेश 2002, 2007 और 2012 तीनों ही चुनावों में लगभग समान रहा है, लेकिन मतदाताओं की सोच में लगातार परिवर्तन दिखता आया है। हर बार मतदाता ज्यादा से ज्यादा परिपक्वता के साथ मोदी को सत्ता पर लौटाता रहा है और सलाया ने नरेन्द्र मोदी के उस बयान की पराकाष्ठा की परिचायकता का प्रमाण दिया है कि लोगों ने उन पर जितने पत्थर फेंके, उन पत्थरों से ही उन्होंने अपनी सफलता की सीढ़ी बनाई। इस बात को लेकर कोई दोराय नहीं है कि शबाना आजमी एक बेहतरीन अभिनेत्री और एक उम्दा सामाजिक कार्यकर्ता हैं, परंतु एक सामाजिक कार्यकर्ता की सोच में यदि विद्वेष झलके, तो फिर उसकी सामाजिक कार्यकर्ता की श्रेणी स्वतः ही प्रभावित हो सकती है।

अमरीकी संसद से यूरोपीय आयोग तक गूंज
पत्थर झेलने के आदी हो चुके मोदी आज लोकप्रियता के चरम पर हैं, तो वह इसी कारण हैं कि उन्होंने वास्तव में लोगों के पत्थरों से सीढ़ी बनाई। मणिनगर से लेकर अहमदाबाद-गांधीनगर और गांधीनगर से दिल्ली तथा दिल्ली से लेकर ब्रिटेन-अमरीका तक यदि मोदी के नाम की आज तूती बोलती है, तो इन शबानाओं की ओर से फेंकी गई शिलाओं के कारण और जब तक ये शिलाएँ मोदी पर फेंकी जाती रहेंगी, सलाया की तरह उन्हें सीढ़ी रूपी सिला मिलता रहेगा। सलाया की बात तो फिर भी चार दिन पुरानी हो गई है। कुछ घण्टे पहले की ही बात करें, तो अमरीकी संसद में भी मोदी का नाम गूँजा, तो उससे कुछ घण्टे पहले यूरोपीय आयोग ने मोदी की तारीफों के पुल बांधे और उससे कुछ घण्टे पहले यह भी खबर आई थी कि अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने विकास संबंधी भाषण में मोदी की नकल की। अब यदि इसमें लेसमात्र भी सच्चाई है, तो फिर मोदी का वह कथन क्यों न सच होगा, जिसमें अक्सर वे कहते हैं कि मुझे अमरीकी वीजा मिले-न मिले, उसकी परवाह नहीं है। मैं तो वह दिन देखना चाहता हूँ, जब अमरीका के लोग भारत का वीजा पाने के लिए कतार लगाएँ।

English summary
Gujarat Chief Minister Narendra Modi created stair of success by stones, which thrown on him by opponents. Salaya municipality election has proved that again.
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