खिलौनों नहीं जहरीले सांपों से खेलते हैं ये बच्चे
इलाहाबाद। जिन जहरीले नागों को देख बड़ों-बड़ों की हवा खिसक जाती है, उन्हीं के साथ राज, मंगलपति व शनि जैसे दर्जनों मासूम बच्चे बेखौफ खेलते हैं। जी हां! यह बच्चे उन सपेरों के हैं, जो उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के शंकरगढ़ इलाके में पीढि़यों से मुफलिसी की जिंदगी गुजार रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के शंकरगढ़ इलाके के गांव कपारी, बिमरा, लोहगरा, जज्जीपुर, कंचनपुर व भैंरवघाट में करीब तीन हजार सपेरों के कुनबे बरसाती और लकड़ी के सहारे बनाई गईं झुग्गी-झोपडि़यों में बसर कर रहे हैं। मुफलिसी की जिंदगी गुजार रही अनुसूचित जाति में गिनी जाने वाली ‘नाथ सम्द्राय' की इस कौम को राज्य व केन्द्र सरकार की किसी भी योजना का अब तक कोई लाभ नसीब नहीं हुआ।
जहरीले सांप पकड़ना और उन्हें लोगों के बीच दिखाना इनका मुख्य पेशा है, सांपों का प्रदर्शन ही सपेरों के खाने-कमाने का एकमात्र जरिया है। स्कूल का मुंह देखना दूर की बात है, बच्चों को खेलने के लिए खिलौना तक नसीब नहीं है। कोबरा नाग, विशखापर जैसे जहरीले जीव-जन्तुओं से उनके बच्चे बेखौफ होकर खेलते हैं।
बचपन से ही सांप पकड़ने में माहिर
राज (5), मंगलपति (4) और शनि (4) जैसे इनके कुनबे में दर्जनो बदकिस्मत मासूम बच्चे हैं, जो विरासत में जहरीले सांप पकड़ने के गुर सीखने को मजबूर हैं। कपारी गांव में एक कुनबा रमेशनाथ (45) का है, रमेष किसी अज्ञात बीमारी का षिकार है। उसके पांच बेटा और बेटियां हैं। अपनी बीमारी की वजह से वह सांप पकड़ने व प्रदर्शन करने में अक्षम हैं, कुनबे को जिंदा रखने का भार बड़ा बेटा चन्द्रनाथ (9) के कंधों में है।
रमेश बताता है कि उनके पुरखे भी इसी बरसाती और लकड़ी की झुग्गी में जीवन गुजार कर चल बसे हैं, अब उसकी बारी है।' वह कहता है कि ‘सरकारी सुविधा के नाम पर सिर्फ राशन कार्ड व मतदाता पहचान पत्र ही मिला है।
वह अपने बड़े बेटे चन्द्रनाथ को बचपन से ही बस्ता और किताबों की बजाय ‘बीन और पिटारी' थमा कर ‘ककहरा' की जगह सांप पकड़ने व बीन बजाने का गुर सिखा चुका है अब वह दूर-दूर तक इस हुनर का प्रदर्शन कर दो वक्त की रोटी का इंतजाम करता हैं। चन्द्रनाथ बताता है कि ‘सांप और विशखापर जैसे जहरीले जीव-जन्तुओं से अब उसे एक भी डर नहीं लगता। यह हुनर खतरनाक तो है, पर इसके अलावा कोई दूसरा चारा भी तो नहीं है।
वह पढ़ना चाहता था, लेकिन पिता की बीमारी ने उसे इस पेषे के लिए मजबूर कर दिया।' इस पूरे गांव के सपेरा समाज में राजेशनाथ एक ऐसा पढ़ा-लिखा युवक मिला, जो गांव के प्राथमिक विद्यालय में शिक्षामित्र की नौकरी कर रहा है, उसे भी सरकारी उपेक्षा का मलाल है।
जोखिम भरा पेशा
बकौल राजेशनाथ, "आस-पास के सात गांवों के सपेरा समाज के लोगों को जागृति करने का प्रयास किया जा रहा है, सांप पालना या पकड़ना जोखिम भरा पेशा है, अब तक सांप के काटने से कई लोगों की मौतें हो चुकी हैं। कोई भी सरकारी योजना सपेरा समाज के पास पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती है। राशन कार्ड के अलावा कुछ भी नहीं मिला है।
यहां तक की आशियाना बनाने के लिए एक गज जमीन भी महैया नहीं कराई गई।" कपारी गांव के ग्राम प्रधान मूलचंद्र यादव बताते हैं कि गांव में ग्राम समाज की अतिरिक्त भूमि नहीं है, जहां सपेरा समाज को आवंटित किया जा सके। आवासीय योजना का एक प्रस्ताव मुख्य विकास अधिकारी को पिछले साल भेजा गया था, लेकिन उसमें अब तक फैसला नहीं हुआ।
शिक्षा से कोसों दूर ये बच्चे
सिर्फ एक पढ़ा लिखा युवक मिला सपेरों के इस गढ़ में। ये बच्चे पढ़ाई-लिखाई से कोसों दूर हैं। इससे आप समझ सकते हैं कि हमारे देश में शिक्षा का अधिकार कानून का पालन कितना हो रहा है।
सपेरों के लिये कोई घर नहीं
गांव में ग्राम समाज की अतिरिक्त भूमि नहीं है, जहां सपेरा समाज को आवंटित किया जा सके। ये लोग अपना जीवन ऐसे ही खुले मैदानों में बिता देते हैं।
खिलौनों से नहीं सांप और गिरगिट से खेलते हैं बच्चे
इन बच्चों को जीवन में शायद ही कोई खिलौना नसीब हो पाता हो। इन बच्चों का बचपन इन्हीं जहरीले सांपों और गिरगिटों के बीच व्यतीत हो जाता है।
कभी कोई डर नहीं
हमारे और आपके बच्चों के पास भी अगर कोई सांप भटक जाये तो हमारा दिल कांप उठेगा, लेकिन इन बच्चों को कभी सांपों से डर नहीं लगता। न ही इनके मां-बाप को।
खिलौनों से नहीं सांप और गिरगिट से खेलते हैं बच्चे
इन बच्चों को जीवन में शायद ही कोई खिलौना नसीब हो पाता हो। इन बच्चों का बचपन इन्हीं जहरीले सांपों और गिरगिटों के बीच व्यतीत हो जाता है।
खिलौनों से नहीं सांप और गिरगिट से खेलते हैं बच्चे
इन बच्चों को जीवन में शायद ही कोई खिलौना नसीब हो पाता हो। इन बच्चों का बचपन इन्हीं जहरीले सांपों और गिरगिटों के बीच व्यतीत हो जाता है।