गैंग्स ऑफ वासेपुर के 'वासेपुर' की असली हकीकत
फिल्म में जिस वासेपुर का जिक्र किया गया है वह झारखंड के धनबाद जिले में है। इस फिल्म में कोयला माफियाओं के खूनी इतिहास के साथ ही साथ 1947 में मजदूरों पर हुए जुर्म, दबंगई, नेताओं की गुंडागर्दी और डरी सहमी पुलिस को दिखाया गया है। तो क्या वाकई में वासेपुर का इतिहास खून से लिखा गया है? क्या आज भी वासेपुर की पुलिस माफियाओं के साये में जी रही है? क्या वाकई में वासेपुर में कबूतर एक ही पंख से उड़ता है? डायरेक्टर और प्रोड्यूसर अनुराग कश्यप की यह फिल्म हकीकत से कोसो दूर है। फिल्म में दिखाई गई गैंगवार की मुंबईया कहानी जमीनी कम फैंटसी ज्यादा है। तो चलिए आज आपको बताते हैं वासेपुर की असली तस्वीर, जी हां "रिएलिटी ऑफ वासेपुर"।
वेलकम टू वासेपुर
1956 में बिहार के मशहूर बिल्डर वासे साहब ने धनबाद के बीचो-बीच स्थित जंगल को कटवाकर एक मोहल्ला बनवाया था। बाद में जाकर इस मोहल्ले का नाम वासेपुर ही पड़ गया। उस समय इस मोहल्ले में महज 100 लोग ही रहते थे मगर अब इसकी आबादी 1 लाख है। मालूम हो कि वासेपुर धनबाद का सबसे बड़ा मोहल्ला है। इस मोहल्ले में रहने वाला युवा वर्ग शिक्षा को लेकर बेहद गंभीर है। यहां के रहने वाले लोग विदेशों में जाकर बड़ी कंपनियों में काम कर रहे हैं। सड़के पक्की है और इलाज की भी उचित व्यवस्था है। पुलिस बेफ्रिक होकर अपनी ड्यूटी निभाती है। खास बात यह है कि यहां पैदा होना वाला कोयला सबसे बेहतर होता है और विदेशों में इसकी खासा मांग है। मगर फिल्म में जो दिखाया गया है उसके बाद से इस मोहल्ले की खूब बदनामी हुई है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब वासेपुर ऐसा है तो फिर गैंग्स ऑफ वासेपुर कहां से पैदा हो गया?
फिल्म के बाद से हो रही है लड़कियों की शादी में दिक्कत
वासे साहब (जिनके नाम से इस मोहल्ले का नाम पड़ा वासेपुर) के एक रिश्तेदार ने न्यूज चैनल आजतक से बातचीत में बताया कि फिल्म के बाद से इस मोहल्ले की बदनामी हुई है। उन्होंने कहा कि फिल्म रीलीज होने के बाद से इस गांव के लोगों को नीचे नजरों से देखा जाने लगा है। उन्होंने बताया कि अब ना तो कोई यहां की लड़कियों से शादी करना चाहता है और ना ही अपनी लड़की इस इलाके में ब्यहना चाहता है। उन्होंने मीडिया से अनुरोध के लहजे में कहा कि इस फिल्म पर रोक लग जानी चाहिए या फिर इसका नाम बदल देना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह सच है कि पिछले 4 दशकों में वासेपुर में कोयला, रेलवे ठेके और लोहे की अवैध तस्करी को लेकर हुए आपसी रंजिश में बीसों कत्ल हो चुके हैं। मगर अब यहां के लोगों का रहन-सहन बिल्कुल बदल चुका है।
गैंग्स ऑफ वासेपुर के कैरेक्टर आज भी है वासेपुर में
गैंग्स ऑफ वासेपुर में जो दो कैरेक्टर दिखाये गये है वो आज भी वासेपुर में ही रहते हैं। दरअसल यह फिल्म जिशान कादरी द्वारा लिखे गसे एक पुस्तक पर बनी है। उन्होंने फहीम खान और शाबिर अंसारी के आपसी रंजिश पर एक किताब लिखी थी। फहीम खान हजारीबाग जेल में उम्र कैद कर सजा काट रहा है जबकि शाबिर अंसारी पे रोल पर हाल ही में जेल से बाहर आया है। दरअसल इन दोनों में आपसी रंजिश थी और वो आज भी एक दूसरे के खून के प्यासे हैं। मगर वासेपुर के आम लोगों का कहना है कि वो उन दोनों का आपसी मामला है इसके चलते पूरे गांव को क्यों बदनाम किया जा रहा है। लोगों का कहना है कि या तो फिल्म पर रोक लगा दी जाये या फिर उसका नाम बदल दिया जाये। इस मामले को लेकर अदालत में याचिका भी दाखिल किया गया है। एक बात जानकार आपको हैरानी होगी कि जब फिल्म रिलीज हुई तो वासेपुर में इसका एक भी पोस्टर नहीं लगने दिया गया था। धनबाद के एक थिएटर में फिल्म लगी मगर भारी पुलिस बल की मौजूदगी में लोगों ने फिल्म को देखा।