अब छात्र सलमान रुश्दी पर कर सकेंगे पीएचडी
उल्लेखनीय है कि यूजीसी द्वारा हाल ही में मेरठ विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में पोस्टर डाक्ट्रेट फैलोशिप के तहत विवादित उपन्यास दि सैटेनिक वर्सेज के लेखक सलमान रुश्दी पर शोध करने को मंजूरी दे है। इसके अलावा अमिताभ घोष और विक्रम सेठ के उपन्यासों का तुलनात्मक अध्ययन भी इसमें शामिल किया है।
उत्तराखंड के रुड़की की रहने वाली शोधकर्ता डा. प्रभा परमार ने मेरठ पहुंचकर अपना काम शुरु कर दिया है। उन्होंने बताया कि शोध में सलमान रुश्दी की कल्पना और यथार्थ पर काम किया जायेगा। साथ ही यह पता लगाने की कोशिश की जायेगी कि इनके उपन्यासों में कल्पना शक्ति दूसरे उपन्यासकारों से किस तरह अलग है। मालूम हो कि 1988 के अन्त में सलमान रूश्दी द्वारा लिखित धॢमक व्यंग्य 'द सेटेनिक वर्सेस उपन्यास प्रकाशित किया गया जिससे पूरी दुनिया में कोहराम मच गया था।
दुनिया
के
मुस्लिम
बाहुल्य
देशों
में
इस
उपन्यास
का
भारी
विरोध
हुआ
था
और
इस
उपन्यास
की
प्रतियां
जलाई
गई
थीं।
उस
समय
सेटेनिक
वर्सेस
को
भारत,
बंगलादेश,
सूडान,
दक्षिणी
अफ्रीका,
श्रीलंका,
केन्या,
थाईलैंन्ड,
तन्जानिया,
वेनेजुएला,
पाकिस्तान,
इन्डोनेशिया
तथा
ङ्क्षसगापुर
जैसे
देशों
में
प्रतिबंधित
कर
दिया
गया
था।
ईरान
के
तत्कालीन
सर्वोच्च
आध्यात्मिक
नेता
अयातुल्ला
ने
सलमान
रूश्दी
के
विरूद्ध
तौहीने
इस्लाम
किए
जाने
के
आरोप
में
मौत
का
फतवा
जारी
किया
था।
जमियत उलेमा, माइनरटी एजूकेशन एसोसियेशन, और नेशनल मायनरटी फ्रन्ट जैसी कई सामाजिक संस्थाओं ने यूजीसी और मेरठ विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली पर चिन्ह लगाते हुए विवादित उपन्यास और उसके लेखक सलमान रूश्दी पर शोध किये जाने का विरोध किया है।