मुक्त युवतियों ने कहा हमें वेश्या ही रहने दो
युवतियों ने तर्क रखा कि वे हर हाल में जीबी रोड़ के कोठे पर ही रहना चाहती हैं। हाईकोर्ट ने भी स्पष्ट कर दिया है कि युवतियों को जबरन उनके प्रदेश नहीं भेजा जा सकता। अब इन युवतियों को समझाकर पुनर्वास का जिम्मा राष्ट्रीय महिला आयोग और दिल्ली महिला आयोग ने उठाया है।न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट्ट और न्यायमूर्ति एसपी गर्ग ने इन युवतियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए इस बात पर हैरानी जताई कि संबंधित मजिस्ट्रेट ने इन युवतियों के साथ कोठे से मुक्त करवाई अन्य प्रदेशों की 55 युवतियों को तो तुरंत रिहा कर दिया ताकि वे कहीं भी जा सकें, लेकिन इन 15 युवतियों को उनकी इच्छा के विपरीत निर्मल छाया में फरवरी से रखा गया है।
इन युवतियों को जबरन आंध्रप्रदेश नहीं भेजा जा सकता, बल्कि वे कहीं भी जाने के लिए स्वतंत्र हैं। मामले की गंभीरता को देखकर अदालत में उपस्थित राष्ट्रीय महिला आयोग व दिल्ली महिला आयोग के सदस्यों ने खंडपीठ से आग्रह किया कि वे उन्हें इन युवतियों से मिलकर उनकी राय जानने का समय प्रदान करें, ताकि वे युवतियों को पुनर्वास के लिए मना सकें। खंडपीठ ने उन्हें कल तक रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है। वहीं, दिल्ली पुलिस के स्थायी अधिवक्ता पवन शर्मा ने युवतियों के उस तर्क को गलत बताया कि पुलिस ने जबरन उन्हें बंधक बनाकर रखा है।
दरअसल, आंध्रप्रदेश पुलिस और कमला मार्केट पुलिस ने जारी वारंट के आधार पर फरवरी में कोठों से 72 युवतियों को मुक्त करवाया था। इनमें से दो नाबालिग सहित 17 युवतियां आंध्रप्रदेश की थीं। दो नाबालिग को पुनर्वास के लिए पहले ही वापस भेजा जा चुका है, लेकिन इन युवतियों ने वापस जाने से इंकार कर दिया। जबकि प्रदेश पुलिस इनके पुनर्वास के लिए ले जाना चाहती हैं। अत: जो कुछ भी हुआ अदालत के आदेश से हुआ।