स्पिरूलीना से संवर जाएगी गरीब बच्चों की जिंदगी
भारत में स्पिरूलीना की कैंडी (कुल्फी, चॉकलेट या चिक्की के रूप में) को तमिलनाडु के नीलगिरी जिले में स्थित दो हजार आदिवासी बच्चों पर आजमाया गया और इसका सकारात्मक असर देखा गया। इससे वैज्ञानिक उत्साहित हैं। चाइल्ड फंड इंडिया (सीएफआई) के राष्ट्रीय निदेशक डोला महापात्र के अनुसार, अध्ययन के दौरान बच्चों के दो समूह बनाए गए। एक समूह को ‘स्पिरूलीना कैंडी’ दी गई और दूसरे समूह को दैनिक भोजन। नियमित रूप से स्पिरूलीना का सेवन करने वालों की सेहत (कद और वजन) में दूसरे समूह के बच्चों के मुकाबले उत्साहजनक सुधार दिखा। महापात्र के अनुसार अध्ययन से स्पष्ट है कि स्पिरूलीना के प्रयोग को देश के आदिवासी इलाकों में बड़े पैमाने पर दीर्घ काल के लिए चलाया जाना चाहिए। सीएफआई जल्दी ही ‘स्पिरूलीना’ के प्रयोग का दूसरा चरण उदयपुर (राजस्थान) के आदिवासी इलाकों में करने की तैयारी कर रहा है। जानी-मानी न्यूट्रिशियनिस्ट इशी खोसला कहती हैं कि स्पिरूलीना सुरक्षित, पौष्टिक और सस्ता आहार है। खास तौर पर आदिवासी इलाकों में बहुत कारगर।
उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र ने 1974 में ही स्पिरूलीना को धरती के लिए ‘भविष्य का सर्वश्रेष्ठ आहार’ घोषित कर दिया था। इस शैवाल में करीब 60 फीसदी प्रोटीन होता है। 80 और 90 के दशक में नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने अपने प्रयोगों के बाद कहा था कि लंबे समय के अंतरिक्ष कार्यक्रमों के दौरान अगर भोजन की समस्या से निपटना है, तो स्पिरूलीना मददगार हो सकता है क्योंकि इसे अभियानों के दौरान भी उगाया जा सकता है। यूनिसेफ के अनुसार भारत में चार वर्ष से कम उम्र के 60 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं और दुनिया में कुपोषण के शिकार तीन बच्चों में से एक बच्चा भारत का है।