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क्‍या यूपी चुनाव में राहुल के भाषण इतने कमजोर थे?

By Ajay Mohan
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Rahul Gandhi
अजय मोहन

उत्‍तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के ठीक एक महीने बाद हार की समीक्षा करने बैठे राहुल गांधी ने तमाम चर्चा के बाद हार का ठीकरा केंद्रीय मंत्रियों पर फोड़ दिया। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक वो तीन केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा, श्रीप्रकाश जायसवाल और सलमान खुर्शीद हैं। अब सवाल यह उठता है कि अगर वाकई में इन तीनों मंत्रियों की बयानबाजी से कांग्रेस यूपी में हारी है तो पार्टी यूथ आइकन कहे जाने वाले राहुल गांधी के खुद के भाषणों में कोई दम नहीं था। यानी राज्‍य के हर बड़े जिले के ऊंचे-ऊंचे मंचों से दिये गये राहुल के भाषण इतने कमजोर थे कि उनके आगे इन नेताओं के बयान भारी साबित हुए।

अगर आप यूपी में हुईं कांग्रेस की रैलियों की तरफ मुड़ कर देखें तो आपको इस बात का अंदाजा खुद हो जायेगा कि कांग्रेस की हार के लिए ये तीन मंत्री जिम्‍मेदार हैं या खुद राहुल गांधी। इन मंत्रियों की बात करें तो सलमान खुर्शीद ने चुनाव के दौरान मुस्लिम आरक्षण पर कई बयान दिये, वहीं श्रीप्रकाश जायसवाल और बेनी वर्मा ने चुनाव आयोग के खिलाफ बयानबाजी की। हालांकि इन दोनों के कई बयानों में मायावती से हाथ मिलाने की बातें भी की गई थीं।

जरा सोचिये राहुल ने चुनाव के दौरान 200 से ज्‍यादा स्‍थानों पर जाकर भाषण दिये। साथ में टीवी चैनलों से भी कई बार वो मुखातिब हुए। अब अगर तीन मंत्रियों के बयान अगर राहुल गांधी के सैंकड़ों भाषणों की तुलना में इतने ज्‍यादा दमदार थे कि लोगों ने कांग्रेस को वोट देना मुनासिब नहीं समझा, तो इससे साफ जाहिर है कि राहुल गांधी के उन भाषणों में कतई दम नहीं था। अगर दम होता तो कांग्रेस किसी अन्‍य पार्टियों के न सही कम से कम समाजवादी पार्टी के वोट काटने में तो सफल हो ही जाती।

क्‍या होता था राहुल के भाषणों में

अगर हम फ्लैशबैक में जायें तो राहुल गांधी के अधिकांश भाषण गुस्‍से से भरे होते थे। उनके अधिकांश भाषणों में तो ऐसा लगता था जैसे रिपीट टैलीकास्‍ट हो रहा हो। मंच पर खड़े होकर तथाकथित घोषणा पत्र को फाड़ना, बार-बार यही कहना कि हाथी पैसा खा गया, हाथी पैसा खा गया... राहुल के मंच पर आम बात थी। यहां पर अखिलेश यादव की वो बात जरूर याद दिलाना चाहूंगा, जिसमें उन्‍होंने कहा था, "कांग्रेस के युवराज कहते हैं हाथी पैसा खा गया, मैं पूछता हूं आखिर उसे पैसा खाने किसने दिया... जब मनरेगा और एनआरएचएम जैसी योजनाएं केंद्र की थीं, तो पैसे पर नियंत्रण उन्‍हें रखना चाहिये था।"

जी हां यह बात बिलकुल सही है और पब्लिक भी यह बखूबी जानती है। वो भी वो पब्लिक जो पिछले दो सालों से केंद्र दो बड़े घोटाले देख चुकी है। और हम आपको बता दें कि यह वही जनता है, जो राहुल गांधी को सुनने कम उन्‍हें देखने ज्‍यादा जाते थे।

कुल मिलाकर देखा जाये तो राहुल गांधी ने एक बार फिर वही गल‍ती दोहरायी है, जो उन्‍होंने बिहार में की थी। तब भी हार का ठीकरा पार्टी नेताओं पर फोड़कर आगे चल दिये थे। अब देखना यह है कि 2014 में होने वाले चुनावों में राहुल कौन सा फार्मूला लेकर आते हैं।

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English summary
The strict action against central ministers means there was no power in Rahul Gandhi's speeches he gave in UP elections.
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