कब तक टलती रहेगी बलवंत जैसे हत्यारों की फांसी?
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह को फांसी पर चढ़ाए जाने का उग्र विरोध बेहद दुखद और चिंतनीय है। एक हत्यारे के बचाव में आई पंजाब सरकार और समर्थन में आए कुछ संगठनों का उग्र प्रदर्शन, एक बड़ा सवाल खड़ी करती है। केंद्र सरकार भी इनके दबाव में आ गयी और उसने फांसी की सजा पर रोक लगा दी। अब सवाल यह उठता है कि दबाव में आकर फांसी टालना या रोकना किस हद तक सही है और वो भी उसकी फांसी जिसने किसी राज्य के मुख्यमंत्री की हत्या की हो?
यह महज कुछ संगठनों द्वारा धर्म के नाम पर की जा रही ओछी राजनीति है, लेकिन एक हत्यारे को क्यों माफ किया जाए? अगर ऐसा होता है तो कल शायद किसी को फांसी ना हो क्योंकि जो आज बलवंत की फांसी का विरोध कर रहे हैं वो कल किसी दूसरे हत्यारे को बचाने का विरोध करेंगे।
अपराधी को सजा देना कानून का काम है, कानून ने तो अपना काम कर दिखाया, लेकिन उन संगठनों और राजनीतिक पार्टीयों को कानून के पालन के बारे में भी सोचना चाहिए। यह समाज का दुर्भाग्य ही नहीं, संविधान की अवहेलना भी है कि धर्म की आड़ में कुछ लोग इस हत्यारे को बचाने को आमादा हैं।
बलवंत सिंह की फांसी रद्द मामले को लेकर पंजाब के मुख्यमंत्री द्वारा राष्ट्रपति से मिलना, प्रदेश या देश ही नहीं संविधान के लिए भी घातक है। अब ऐसी राजनीति को धर्म की राजनीति माना जाए या वोट बैंक की? जो लोग ऐसी राजनीति में शामिल है, वे कानून व्यवस्था को ताक पर रखकर राजनीति करते हैं।
पंजाब को आतंकवाद ने ऐसे हजारों घाव दिये हैं, जिनकी भरपाई कई पीढि़यां खर्च कर नहीं कर सकते। यह भी एक सच है कि कानून ने पंजाब को आतंकवाद से उबारा है, जिसके कारण पंजाब में शांति व्यवस्था स्थापित हुई। अब वहां की सरकार इसी कानून व्यवस्था को ताक पर रखकर एक हत्यारे को बचाने में लगी हैं।
बलवंत की फांसी का विरोध पूरे पंजाब में हुआ, और आम जनता काफी परेशान हुई यहां तक एक युवक की मौत भी हो गई। एक ऐसा माहौल पैदा किया गया कि अगर फांसी हुई तो पंजाब एक बार फिर आतंकवाद की आग में जलता दिखेगा। सरकार ने इसी आशंका को देखते हुए फांसी की सजा को टाल दिया, वास्तव में सरकार ने समाधान नहीं, एक नयी समस्या की नीव डाल दी है।