केजरीवाल के डकैत को गालियां और तोमर को तालियां?
आज सिनेमाई दर्शक फिल्मी कैनवस पर पान सिंह तोमर का लुत्फ उठा रहे हैं। एक धावक से डकैत बनने की कहानी पर आधारित यह फिल्म लोगों के लिए खासी चर्चा का विषय बनीं हुई है। फिल्म के प्रदर्शित होने से पहले ही इस फिल्म को कलात्मकता की श्रेणी में रख दिया गया है। फिल्म में अभिनेता इरफान खान और माही गिल के गर्मा-गर्म सींस से भी दर्शकों को खींचने की कोशिश की गयी है लेकिन इस फिल्म की सबसे बड़ी खास बात है कि यह फिल्म अब टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल को बचा सकते हैं। आप सोच रहे होंगे यह कैसे संभव है और केजरीवाल को किससे बचाने की बात हो रही है।
इस फिल्म का वो डॉयलाग जो लोगों की पहली पसंद बना हुआ है, औऱ वो डॉयलॉग है ...जंगल में बागी रहते हैं, डकैत तो संसद में रहते हैं...
इस डॉयलाग को हर चैनल पर बार-बार दिखाया जा रहा है, फिल्म आज सिल्वर स्क्रीन पर पहुंच गयी है। सोचिए फिल्म का नायक जब इस तरह के संवाद पर्दे पर बोलता है तो लोग तालियां बजाते हैं, लेकिन जब कोई रीयल हीरो लोगों को रियलिटी से रूबरू करता है तो लोग उसे खलनायक बना देते हैं। हम बात कर रहे हैं टीम अन्ना के अर्जुन अरविंद केजरीवाल की। जिन्होंने नोएडा के जनसभा में कहा था कि संसद मे तो बलात्कारी, डकैत और कातिल बैठे हैं।
इधर केजारीवाल के मुंह से यह शब्द निकले नहीं कि एक-दूसरे को जमकर गरियाने वाले सारे नेतागण एक हो गये।। सबने कहना शुरू कर दिया कि केजरीवाल ने संसद का अपमान किया है। इसलिए उनके ऊपर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाये। सारे सांसद बजट सत्र में केजारीवाल के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए ज्ञापन लायेंगे।
सोचिए कितना फर्क है दोनों ही बातों में। जब फिल्म का नायक संवाद बोले तो लोग सीट पर उछल-उछल कर तालियां और सीटी बजाते हैं और जब वो ही बात कोई आम व्यक्ति भरे मंच में बोलें तो उन्हें गालियां मिलती है। अब आप ही बताइये देश कहां जा रहा है? आखिर तस्वीर के दोनों ही पहलूओं में इतना अंतर क्यो हैं? क्यों फिल्म का नायक तारीफें बटोर ले जाता हैं और एक आम आदमी के खिलाफ लोग खड़े हो जाते हैं? आखिर क्यों केजरीवाल के डकैत को लोगों की गालियां मिलती है और पान सिंह के तोमर के डकैत को लोगों की तालियां?
जाहिर है अगर हमारे देश के सांसदों ने तोमर को इस डायलॉग पर कुछ नहीं कहा गया, तो निश्चित तौर पर केजरीवाल को भी इस मामले से मुक्त कर देना चाहिये।
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